Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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२७२/गो. सा. जीवकाण्ड
गाथा १६४-१६६
गाथार्थ-एक निगोद शरीर में द्रव्यप्रमाण की अपेक्षा देखे गये जीव सब अतीन काल के द्वारा सिद्ध हुए जीबी से भी अनन्तगुण हैं ।।१६६।।
विशेषार्थ-संसारी जीवों की व्युच्छित्ति कभी नहीं होती। उसका एक हेतु इस गाथा में कहा गया है। एक निगोदशरीर में द्रव्यप्रमाण की अपेक्षा अनन्त जीव हैं ।
शंका-बे कितने हैं ? समाधान --अतीत काल में जो सिद्ध हुए हैं, उनसे अनन्तगुणे एक निगोद शरीर में होते हैं।' शङ्का ..वह कौनसी युक्ति है जिससे एक निगोद शरीर में अनन्त जीव उपलब्ध होते हैं ? समाधान-सब जीव राशि का अनन्त होना यही युक्ति है।
पायरहित जिन संख्याओं का व्यय होने पर सत्त्व का विच्छेद होता है वे संख्याएं संख्यात और असंख्यात संज्ञावाली होती हैं। प्राय से रहिए जिन संख्याओं का संख्यात और असंख्यात रूप से व्यय होने पर भी विच्छेद नहीं होता है, उनकी अनन्त संज्ञा है और सब जीवराशि अनन्त है, इसलिए वह विच्छेद को नहीं प्राप्त होती, अन्यथा उसके अनन्त होने में विरोध आता है ।
शडा-अर्धपुद्गलपरिवर्तन के साथ व्यभिचार आता है, क्योंकि अर्धवृद्गल परिवर्तन काल अनन्त होते हुए भी उसका विच्छेद होता है ?
समाधान- यह कहना ठीक नहीं है, क्योंकि अनन्त संज्ञाबाले केवलज्ञान का ही विषय होने से उसकी (उपचार से) अनन्तरूप से प्रसिद्धि है। मेय में मान की संज्ञा प्रसिद्ध है, यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि प्रस्य से मापे गये यवों में प्रस्थ संज्ञा की उपलब्धि होती है।
शंका-सब अतीत काल के द्वारा जो सिद्ध हुए हैं, उनसे एक निगोदशरीर के जीव अनन्तगुरणे हैं, यह के से जाना जाता है ?
समाधान-युक्ति से ही जाना जाता है। यथा-प्रसंग्यातलोक प्रमाण निगोदशरोरों में यदि सब जीवराशि उपलब्ध होती है तो एक निगोद शरीर में कितने जीव प्राप्त होंगे। इस प्रकार फलराशि से गुणित इच्छाराशि में प्रमाणराशि का भाग देने पर एक निगोदशरीर में जीदों का प्रमाण सब जीवराशि के असंख्यातवें भाग प्रमाण होता है। परन्तु सिद्ध जीव यदि अतीतकाल के प्रत्येक समय में यदि असंख्यात लोकप्रमाण सिद्ध होवें तो भी अतीत काल से असंख्यात गुरणे ही होगे। परन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि सिद्ध जीव अतीत काल के असंख्यातवेंभाग प्रमाण ही उपलब्ध होते हैं।
शङ्का-राब जीवराशि अतीत काल से अनन्त गुणी है यह किस प्रमाण से जाना जाता है ? समाधान- षोड़शपदिक अल्प बहुत्व से जाना जाता है । शङ्का-षोड़शपदिक अल्पबहुत्व किस प्रकार है ?
१. घवल पु. १४ पृ. २३५।
२. धवल पु. १४ पृ. २३५-२३६ ।