Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा ११४-१६६
कायमार्गग्गा /२७१
जोवराशि प्राय रहित और ध्यय सहित हैं। क्योंकि उसमें मोक्ष जाने वाले जीव उपलब्ध होते हैं। किन्तु संसारी जीवों का प्रभाव प्राप्त नहीं होता। इसकी सिद्धि के लिए आगे की गाथा कही जाती है
स्कन्ध, अण्डर, पायास, पुलवि व निगोद शरीरों का स्वरूप व संख्या खंधा असंखलोगा अंडर-प्रावास-पुलवि-देहा वि । हेदिल्लजोरिणगाप्रो असंखलोगेष गुरिगदकमा ।।१६४॥ जम्बूदीनं परहो सोसल सायद तपाई वा । खंधंडरावासापुलविशरीराणि विट्ठता ॥१६॥
गाथार्थ-जम्बूद्वीप, जम्बूद्वीप में भरत क्षेत्र, भरत क्षेत्र में कोशल देश, कोशल देश में साकेतनगरी और साकेतनगरी में घर होते हैं, उसी प्रकार स्कन्ध, स्कन्ध में अण्डर, अण्डर में प्रावास, आवास में पुलवि और पुल वि में निगोदशरीर होते हैं ।।१६५॥ स्कन्ध असंख्यात लोकप्रमाण हैं । अण्डर, आवास, पुलवि और निगोदशरीर ये उत्तरोत्तर असंख्यातगुणित क्रम से स्थित हैं ॥१६॥
विशेषार्थ-स्कन्ध, अण्डर, आवास, पुलवि और निगोद शरीर ये पांच हैं। उनमें से जो बादरनिगोद का आश्रयभूत है, बहुत वक्खारों से युक्त है तथा वलेजंत-वारिणय-कच्छउड समान है ऐसे मूली, थअर और लता आदि संज्ञा को धारण करने वाला स्कन्ध कहलाता है। वे स्कन्ध असंख्यात लोक प्रमाण होते हैं, क्योंकि बादरनिगोद प्रतिष्ठित जीव असंख्यातलोक प्रमाण पाये जाते हैं। जो उन स्कन्धों के अवयव हैं और जो बलंज प्रकच्छउड के पूर्वापर भाग के समान हैं,
उन्हें प्रण्डर कहते हैं। जो अण्डर के भीतर स्थित हैं तथा कच्छउडअण्डर के भीतर स्थित वक्रवार । के समान हैं उन्हें प्रावास कहते हैं। एक-एक स्कन्ध में असंख्यात लोक प्रमाण अण्डर होते हैं। ३ तथा एक-एक अण्डर में असंख्यात लोक प्रमागा प्रावास होते हैं। जो प्रावास के भीतर स्थित हैं
और जो कच्छउड-अपहर-वक्खार के भीतर स्थित पिशवियों के समान हैं. उन्हें पुलवि कहते हैं। एक-एक आवास में असंख्यात लोकप्रमाण (पुलवियों) होती हैं। तथा एक-एक आवास को पृथकपृथक एक-एक पुरन वि में असंख्यात लोकप्रमाण निगोदशरीर होते हैं, जो औदारिक, तंजस और कार्मण पुद्गलों के उपादान कारण होते हैं और जो कच्छउड अण्डर ववस्वार पुलवि के भीतर स्थित द्रव्यों के समान पृथक-पृथक् अनन्तानन्त निगोद जीवों से श्रापूर्ण होते हैं। अथवा जम्बूद्वीप, भरत, जनपद, ग्राम और पुर के समान स्कन्ध, अण्डर, आवास, पुलवि और शरीर होते हैं।'
एक निगोदशरीर में द्रव्य की अपेक्षा जीवों का प्रमाण एगणिगोदशरीरे जीवा दन्बप्पमारणदो विट्ठा । सिद्ध हि अणतगुणा सध्धेरण वितीयकालेण ॥१६६।।
11. पवल पु. १४ पृ. ८६। २. धवल पु. १४ पृ. २३४ मूल गा. १२८; धवल पु. १ पृ. २७० व ३६४, पु. ४
पृ.४७८; प्रा.पं.सं. पृ. १७ गा. ८४, मूलाचार पर्याप्त्यधिकार १२ गा. १६३ ।