Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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२३६ / गो. सा. जीवकाण्ड
गाथा १६६-१६७
है, जैसे- जो चला जाए, वह रस है । तथा जिस समय प्रधानरूप से पर्याय विवक्षित होती है, उस समय द्रव्य से पर्याय का भेद बन जाता है, अतः जो उदासीनरूप से प्रवस्थित भाव है, उसी का कथन किया जाता है । इस प्रकार रस के भावसाधनपना भी बन जाता है । जैसे- प्रास्वादन में श्राने रूप क्रियाधर्म को रस कहते हैं ।
शङ्कास्पर्शन और रसना इन दो इन्द्रियों की उत्पत्ति किस कारण से होती है ?
समाधान- वीर्यान्तराय और स्पर्शन व रसनेन्द्रियावरण ( मतिज्ञानावरण) कर्म का क्षयोपशम होने पर शेष इन्द्रियावरण कर्म के सर्वघाती स्पर्द्ध कों के उदय होने पर अङ्गोपाङ्गनामकर्म के उदय के अवलम्बन से तथा द्वीन्द्रिय जाति नामकर्म के उदय की वशवर्तिता होने पर स्पर्शन श्रीर रसना ये दो इन्द्रियाँ उत्पन्न होती हैं।"
जिनके तीन इन्द्रियाँ होती हैं वे त्रीन्द्रिय जीव हैं ।
शङ्का -- वे तीन इन्द्रिय जीव कौन से हैं ?
समाधान कुन्यु और खटमल आदि श्रीन्द्रिय जीब हैं। कहा भी है-
--
कुथु पिपीलिक मक्कुण विच्छिन जू इंवगोष गोम्ही य । गिट्टियावि तोदिया जीवा ॥१३७॥
मा
अर्थात् कुथु, पिपीलिका, खटमल बिच्छू, जू, इन्द्रगोप कनखजूरा, उत्तिरंग, नट्टियादिक ये सब श्रीन्द्रिय जीव हैं ।
शंका- वे तीन इन्द्रियाँ कौन-कौन सी हैं ?
समाधान - स्पर्शन, रसना और घ्राण ये तीन इन्द्रियां हैं। स्पर्शन - रसना का स्वरूप पहले कहा जा चुका है।
शंका- प्राणेन्द्रिय किसे कहते हैं ?
समाधान घ्राण शब्द करणसाधन है, क्योंकि पारतन्त्र्य विवक्षा में इन्द्रियों के करणसाधन होता है, इसलिए वीर्यान्तराय और घ्राणेन्द्रियावरण ( मतिज्ञानावरण) कर्म के क्षयोपशम तथा अंगोपांग नामकर्म के उदय के आलम्बन से जिसके द्वारा सूंघा जाता है, वह प्राणेन्द्रिय है । अथवा इन्द्रियों की स्वातंत्र्य विवक्षा में धारणशब्द कर्तृ साधन भी होता है, क्योंकि लोक में इन्द्रियों की स्वातन्त्र्य विवक्षा भी देखी जाती है। जैसे - यह मेरी आँख अच्छी तरह से देखती है, मेरा कान सुनता है, अतः पहले कहे हुए वीर्यान्तरायादि के क्षयोपशमादि कारण मिलने पर जो सूंघती है, वह घ्राण इन्द्रिय है ।
घ्राणेन्द्रिय का विषय गन्ध है। जो सूंघा जाए वह गंध है अथवा सुघे जाने रूप क्रिया गन्ध है। वीर्यान्तराय और स्पर्शन - रसना घ्राणेन्द्रियावरण कर्म के क्षयोपशम से, अंगोपांग नामकर्मोदय के
१. घ. पु. १ पू. २४२ । २. घ. पु. १. २४५ ३. ध. पु. १ पृ. २४५