Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा १७६-१७७
गतिमार्गगा २४७ इन्द्रियाँ नहीं होने से उनके ग्रहण नहीं होने का प्रसंग प्राप्त हो जायगा ।
शंका-क्षयोपशम को इन्द्रिय कहते हैं, द्रव्येन्द्रिय को इन्द्रिय नहीं कहा गया है। इसलिए अपर्याप्त काल में द्रव्येन्द्रियों के नहीं रहने पर भी द्वीन्द्रिय आदि पदों के द्वारा उन जीवों का नहण हो जाता है ?
समाधान-यदि इन्द्रिय का अर्थ क्षयोपशम किया जाय तो जिनका अयोपशम नष्ट हो गया है, ऐसे सयोगकोचलो के प्रनिन्द्रियपने का प्रसंग प्राजाता है।
शङ्का-ग्रागाने दो। समाधान नहीं, क्योंकि सूत्र सयोगकेवली को पंचेन्दिय रूप से प्रतिपादित करता है ।।
शडा ये द्वीन्द्रिय प्रादि सर्व जीवराशियाँ सर्वकाल आय के अनुरूप व्यय से युक्त होने के कारण कभी विच्छेद को प्राप्त नहीं होती हैं, फिर 'असंख्यात अवसपिरिणयों-उत्सपिरिणयों के द्वारा अपहृत होती हैं यह कथन कसे घटित हो सकता है ?
समाधान-यह सत्य है कि द्वीन्द्रियादि जीव राशियाँ विच्छिन्न नहीं होती हैं, किन्तु इन राणियों का पाप के बिना यदि व्यय ही होता तो निश्चय से ये विच्छिन्न हो जातीं। यदि ऐसा न माना मार्गदर गाय तो 'हीन्द्रिा प्राविमा इरशंसा है' यह कथन नहीं बन सकता।'
इसी प्रकार पंचेन्द्रिय जीव, एनेन्द्रिय पर्याप्त और पंचेन्द्रिय अपर्याप्त जीव भी असंख्यात हैं।
एकेन्द्रिय जीत्रों में पर्याप्त और अपर्याप्त की अपेक्षा भागाभाग का कथन तसहीगो संसारी एयक्खा तारण संखगा भागा। पुण्गाणं परिमाण संखेज्जदिम . अपुण्णाणं ।।१७६॥ बादरसुहमा तेसिं पुण्णापुण्णेत्ति छविहाणपि ।
तक्कायमगरवाये भरिगज्जमारणकमो यो ।।१७७॥ गाथार्थ—स जीवराशि से हीन संसारो जीत्रराशि एकेन्द्रिय जीव हैं। उसका संख्यात ब्रहृभाग पर्याप्त है और संख्यात एक भाग अपर्याप्त हैं ।।१७६॥ एकेन्द्रिय जीव सूक्ष्म पीर बादर के भेद से दो प्रकार के हैं, उनमें भी पर्याप्त और अपर्याप्त होते हैं। इस प्रकार एकेन्द्रियों की ६ राशियों की संख्या का क्रम कायमार्गणा में कहा जायगा, ऐसा जानना 1॥१७॥
विशेषार्थ सम्पूर्ण जीवराशि में प्रनिन्द्रिय जीवों (मुक्त जीवों) को कम कर देने पर संसारी जीवों का प्रमाण प्राप्त होता है। उसमें से दोन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जीवों को अथवा श्रम जीवों को कम कर देने पर एकेन्द्रिय जीत्र राशि का प्रमारण प्राप्त होता है 1 इम एकेन्द्रिय जीवराशि में बादर-एकेन्द्रिय-पर्याप्त जीव सबसे स्तोक हैं। बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीव इनसे
१. धवन पू. ३ पृ. ६११ ।
२. धवल पु. ३ पृ. ३१२ ।