Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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२६२ / मो. सा. जीवकाण्ड
गाथा १८५
समाधान यह ग्राशंका आपत्तिजनक नहीं है, क्योंकि पृथिवीकाय आदि को प्रत्येकशरीर मानना इष्ट ही है ।
शङ्का - तो फिर पृथिवीकाय आदि के साथ भी प्रत्येक विशेषण क्यों नहीं लगाया ?
समाधान- नहीं, क्योंकि जिस प्रकार वनस्पतियों में प्रत्येक वनस्पति से निराकरण करने योग्य साधारण वनस्पति पाई जाती है, उस प्रकार पृथिवी आदि में प्रत्येकमारीर से भिन्न अर्थात् साधारणशरीर ऐसा कोई भेद नहीं पाया जाता, इसलिए पृथिवी आदि में यह विशेषण देने की कोई प्राव श्यकता नहीं है ।"
शङ्का प्रत्येक वनस्पति में बादर और सूक्ष्म ये दो विशेषण नहीं पाये जाते हैं, इसलिए प्रत्येक वनस्पति को अनुभयपना प्राप्त हो जाता है । परन्तु बादर और सूक्ष्म इन भेदों को छोड़कर अनुभयरूप कोई तीसरा विकल्प पाया नहीं जाता है, इसलिए प्रनुभयरूप विकल्प के अभाव में प्रत्येकशरीर वनस्पतियों का भी प्रभाव प्राप्त हो जाएगा ?
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समाधान - ऐसा नहीं है, क्योंकि प्रत्येक वनस्पति का बादररूप से अस्तित्व पाया जाता है, इसलिए उसका प्रभाव नहीं हो सकता ।
शङ्का - प्रत्येक वनस्पति को बादर नहीं कहा गया है, फिर कैसे जाना जाय कि प्रत्येक वनस्पति बादर ही होती है ।
समाधान- नहीं, क्योंकि प्रत्येक वनस्पति का दूसरे रूप से अस्तित्व सिद्ध नहीं हो सकता है, इसलिए बादर रूप से उसके अस्तित्व की सिद्धि हो जाती है ।
शङ्का प्रत्येक वनस्पति में यद्यपि सूक्ष्मता - विशिष्ट जीव की सत्ता सम्भव है, क्योंकि सत्वान्यथानुपपत्ति रूप से उसकी सिद्धि हो जाती है । इसलिए यह सत्वान्यथानुपपत्ति रूप ग्रनैकान्तिक हैं।
समाधान- नहीं क्योंकि बादर यह लक्षण उत्सर्ग रूप ( व्यापक ) होने से संपूर्ण प्राणियों में पाया जाता है। इसलिए प्रत्येकवनस्पति जीव बादर ही होते हैं, सूक्ष्म नहीं, क्योंकि जिस प्रकार साधारण शरीर में उत्सर्गविधि की बाघक अपवादविधि पाई जाती है अर्थात् साधारणशरीरों में बादर भेद के अतिरिक्त सूक्ष्म भेद भी पाया जाता है, उसी प्रकार प्रत्येक वनस्पति में अपवाद विधि नहीं पाई जाती । उनमें सूक्ष्मभेद का सर्वथा अभाव है ।
शङ्खा – प्रत्येक वनस्पति में बादर मह लक्षण उत्सर्गरूप है, यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान- नहीं, क्योंकि प्रत्येकवनस्पति और बसों में बादर और सूक्ष्म ये दोनों विशेषण नहीं पाये जाते, इसलिए सूक्ष्मत्व उत्सर्गरूप नहीं हो सकता, क्योंकि आगम के बिना प्रत्यक्षादि प्रमाणों से सूक्ष्मत्व का ज्ञान नहीं हो सकता, यतएव प्रत्यक्ष आदि से प्रसिद्ध सूक्ष्म को बादर की तरह उत्सर्ग
मानने में विरोध आता है।
१. वयल गु. १ पृ. २६
२. घवल पु. १ पृ. २६९ ।
३. धवल पु. १ पृ. २६९ ।