Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा १८२
काश्रमार्गणा / २५५
सीसा, चांदी, सोना, वज्र ( हीरा ), हरिताल, हिंगुल, मैनसिल, हरे रंगवाला सस्यक, अंजन, मूंगा, भोडल, चिकनी और चमकती हुई रेती, कर्केतनमरिण, राजवर्तकमणि, पुलकवर्ग मरिण, स्फटिकमरिंग, परागमणि, चन्द्रकान्तमरिण, बेडूर्यमणि, जलकान्तमणि सूर्यकान्तमरिण, गेरु, रुधिराक्षमणि, चन्दनगंधमणि, मरकतमरिंग, पुखराज, नीलमरिण और विद्र ुममणि ये सब पृथिवी के भेद हैं। इनके भेद से पृथिवीकायिक जीव भी छत्तीस प्रकार के हो जाते हैं ।
प्रोसा य हिमो धूमरि हरवणु सुद्धोदवो धणुवगे । ते जाण श्राउजीवा जारिणत्ता परिहरेवण्या ॥ १३३॥ २
प्रोस, बर्फ, कुहरा, स्थूल विन्दु जय, सूक्ष्म बिन्दुरूप जल चन्द्रकान्तमणि से उत्पन्न हुआ जल भरना प्रादि से उत्पन्न हुआ जल, समुद्र, तालाब और धनवात प्रादि से उत्पन्न हुमा घनोदक अथवा हरदणु अर्थात् तालाब और समुद्र आदि से उत्पन्न हुआ जल तथा घनोदक अर्थात् मेघ आदि से उत्पन्न हुआ जल ये सब जिनशासन में जलकायिक जीव कहे गये हैं । 3
इंगाल- जाल अच्ची-मुम्मुर सुद्धागणी य प्रगणी य । अष्णे वि एवमाई तेउबकाया समुद्दिट्ठा ॥"
-- अंगार, ज्वाला, अचि (अग्निकरण, स्फुलिंग), सुर ( कण्डे की अग्नि ), शुद्ध - अग्नि (बिजली या सूर्यकान्त आदि से उत्पन्न हुई अग्नि ), धूमादि सहित सामान्य ग्रग्नि । ये सब अग्निकाय जीव कहे गये हैं।
याब्भामो उक्कलि मंडली गुजा महा घण सणु य । एदे उ वाउकाया जीवा जिरण इंद- णिद्दिट्ठा ॥
-- सामान्य वायु, उद्भ्राम (चक्रवात), उत्कलि ( जलतरंगों के साथ तरंगित होने वाली वायु), मण्डली ( पृथिवी से स्पर्श करके घूमता हुआ वायु), गुंजा (गुंजायमान वायु), महावात ( श्रांधी ), धनवात और तनुवात ये सब वायुकायिक जीव हैं ।
पृथिवी, जल, अग्नि और वायु इनमें से प्रत्येक चार प्रकार का है। पृथिवी, पृथिवीकाय, पृथिवी कायिक पृथ्वीजीव, जल, जलकाय, जलकायिक, जलजीव; अग्नि, अग्निकाय, अग्निकायिक, afrata: वायु, वायुकाय, वायुकायिक, वायुजीव |
पृथिवी मार्ग में उपमदत धूलि पृथिवी है। यह प्रचेतन और कठिन गुण को धारण करती
१. वि. प. २/११-१४: धवल १/२७४ : प्रा. पं. १/७७ सि. सर. दीपक ११/३२-३५, धवल पू. १३. २७२-२७३ सूत्र ४२ की टीका । २. मुलाचार पत्राचार अधिकार ५ का १३ । ३. धवल पु. १ पृ. २७३ सूत्र ४२ की टीका | ४. मूलाचार पंचाचार अधिकार ५ गा. १४, धवल पु. १ गा. १५१ सि.सा. दीपक १९/४५४५ । ५. धवल पू. १ पृ. २७६ सूत्र ४२ की टीका । ६. धवल पु. १. २७३ गा. १५२; मूलाचार पंचाचार अधिकार ५ गा. १५ । ७. तत्त्वार्थ वृत्ति र सू. १३१. ६३-६४ | मुलाबार (फलटन से प्रकाशित) पु. १२०-१२१ ।