Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
View full book text
________________
२३४/गो. सा. जीरकाण्ड
गाथा १६५-१६७
शङ्का-जबकि परमाणुओं में रहने वाला स्पर्श इन्द्रियों के द्वारा ग्रहण नहीं किया जा सकता है, तो उसको पर्श संज्ञा कैसे दी जा सकती है ?
समाधान- नहीं, क्योंकि परमाणुगत स्पर्श के इन्द्रियों द्वारा ग्रहण करने की योग्यता का सदैव प्रभाव नहीं है।
शङ्का-परमाणों में रहनेवाला स्पर्श इन्द्रियों के द्वारा कभी भी ग्रहण करने योग्य नहीं है ।
समाधान-नहीं, क्योंकि जब परमाणु स्थूल कार्यरूप से परिमात होते हैं तब तद्गत धर्मों को। इन्द्रिय द्वारा ग्रहण करने की योग्यता पाई जाती है।
शङ्का-वे एकेन्द्रिय जीव कौन-कौन से हैं ? समाधान-पृथिवी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति ये पांच एकेन्द्रिय जीव हैं।
शा--इन पाँचों के एक स्पर्शन इन्द्रिय ही होती है, शेष इन्द्रियाँ नहीं होतीं, यह कैसे जाना जावे ?
समाधान- नहीं, क्योंकि पृथ्वी आदि एकेन्द्रिय जीव एक स्पर्शन इन्द्रिय वाले होते हैं, इसप्रकार कथन करने वाला प्रार्षवचन पाया जाता है ।
शङ्का-वह प्रार्षवचन कौन सा है ? समाधान --वह पार्षवचन यह है--
'जागदि पस्सवि भुजवि सेवदि पासिविएण एक्केण ।
कुणदि य तस्सामित्तं थायरु एइंवितो तेण ॥१३५।। अर्थ-क्योंकि स्थावरजीव एक स्पर्शनेन्द्रिय के द्वारा ही आनता है, देखता है, खाता है, सेवन करता है और उसका स्वामीपन करता है, अतः वह एकेन्द्रियजीव है ।
अथवा, वनस्पत्यन्तानामेकम्" तस्वार्थसूत्र के इस वचन से जाना जाता है कि उनके एक स्पर्शनेन्द्रिय ही होती है। इस सूत्र का अर्थ इसप्रकार है-'अन्त' शब्द अनेक अर्थ का वाचक है। कहीं पर अवयवरूप अर्थ में प्राता है; जसे-'वस्त्रान्त:' वस्त्र का अवयव । कहीं पर समीपता अर्थ में आता है, जैसे-'उदकान्तं गतः जल के समीप गया। कहीं पर अवसानरूप अर्थ में आता है, जैसे 'संसारान्तं गतः संसार के अन्त को प्राप्त हुना। उनमें यहाँ विवक्षा से 'अन्त' शब्द का भवसानरूप अर्थ जानना चाहिए। तात्पर्य यह हुआ कि वनस्पति पर्यन्त जीवों के एक स्पर्शनेन्द्रिय होती है।
शङ्का-पृथ्वी से लेकर बनस्पतिपर्यन्त जीवों के पाँच इन्द्रियों में से कोई एक इन्द्रिय प्राप्त होती है, क्योंकि 'एक' स्पर्शन-इन्द्रिय का बोधक नहीं है, वह तो सामान्य से संख्यावाची है, इसलिए पाँच इन्द्रियों में से किसी एक इन्द्रिय का ग्रहण किया जा सकता है ?
१. घ.पु. १ पृ. २३६, प्रा.पं.स. १/६६।
२. त.सू.प्र. २ सूत्र २२ ।