Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा १६६-१६७
इन्द्रियमाणा / २३३
गाथार्थ - स्पर्श-रस- गन्ध-रूप और शब्द का ज्ञान जिनका चिह्न है, ऐसे एकेन्द्रिय द्वीन्द्रिय- श्रीन्द्रियचतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जीव हैं और वे अपने-अपने भेदों सहित हैं ।। १६६ ।। एकेन्द्रियजीव के एक स्पर्शन-इन्द्रिय ही होती है, शेष जीवों के क्रम से जिह्वा, घाण, चक्षु और श्रोत्र बढ़ते जाते हैं ।। १६७ ।। विशेषार्थ जिनके एक ही इन्द्रिय पाई जाती है वे एकेन्द्रिय जीव हैं ।
शङ्का - वह एक इन्द्रिय कौनसी है ?
समाधान - वह एक इन्द्रिय स्पर्शन है ।
शङ्का - स्पर्शनेन्द्रिय किसे कहते हैं ?
समाधान- बीर्यान्तराय और स्पर्शनेन्द्रियावरणकर्म के क्षयोपशम से तथा अड्गोपाङ्ग नामकर्म के उदयरूप आलम्बन से जिसके द्वारा आत्मा पदार्थों को स्पर्ण करता है अर्थात् पदार्थगत स्पर्शगुण की मुख्यता से जानता है, वह स्पर्शन- इन्द्रिय है ।
स्पर्शनेन्द्रिय का यह लक्षण करणकारक की अपेक्षा से है । इन्द्रिय की स्वतंत्रविवक्षा में साधन भी होता है। जैसे - वीर्यान्तरायकर्म के क्षयोपशमादि पूर्वोक्त कारणों के रहने पर जो स्पर्श करती है उसे स्पर्शन इन्द्रिय कहते हैं ।
शङ्का - स्पर्शन इन्द्रिय का विषय क्या है ?
समाधान स्पर्शन इन्द्रिय का विषय स्पर्श है ।
शङ्का - स्पर्श का क्या अर्थ है ?
समाधान --- जिस समय द्रव्यार्थिकनय की प्रधानता से वस्तु ही विवक्षित होती है, उस समय इन्द्रिय के द्वारा वस्तु का ही ग्रहण होता है, क्योंकि वस्तु को छोड़कर स्पर्शादिक धर्म पाये नहीं जाते । इसलिए इस विवक्षा में जो स्पर्श किया जाता है, उसे स्पर्श कहते हैं और वह स्पर्श वस्तुरूप ही पड़ता है तथा जिस समय पर्यायार्थिकनय की प्रधानता से पर्याय विवक्षित होती है, उस समय पर्याय का द्रव्य से भेद होने के कारण उदासीन रूप से अवस्थितभाव का कथन किया जाता है, अतः स्पर्श में भावसाधन भी बन जाता है। जैसे स्पर्शन ही स्पर्श है ।
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शङ्कर - यदि ऐसा है तो सूक्ष्म परमाणु आदि में स्पर्श का व्यवहार नहीं बन सकता, क्योंकि उसमें स्पर्शनरूप क्रिया का भाव है ?
समाधान यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि सूक्ष्म परमाणु प्रादि में भी स्पर्श है, अन्यथा परमाणु के कार्यरूप स्थूल पदार्थों में स्पर्धा की उपलब्धि नहीं हो सकती थी, किन्तु स्थल पदार्थों में स्पर्श पाया जाता है, इसलिए सूक्ष्म परमाणुत्रों में भी स्पर्श की सिद्धि हो जाती है, क्योंकि न्याय का यह सिद्धान्त है कि जो अत्यन्त असत् होते हैं उनकी उत्पत्ति नहीं होती है । यदि सर्वथा असत् की उत्पत्ति मानी जाए तो अतिप्रसङ्ग हो जाएगा। इसलिए यह समझना चाहिए कि परमाणुत्रों में स्पर्शादिक अवश्य पाये जाते हैं, किन्तु वे इन्द्रियों के द्वारा ग्रहण करने योग्य नहीं होते ।