Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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२३८/गो. सा. जीवकाण्ड
गाथ १६ अर्थात् स्वेदज, संमूच्छिम, उद्भिज्ज, प्रौपपादिक, रसज, पोत, अण्डज और जरायुज ये सभी पञ्चेन्द्रियजीव हैं। स्पर्शन, रसना, घ्राण और चक्षुइन्द्रिय के सम्बन्ध में पूर्व में कहा जा चुका है।
शंका-'श्रोत्रेन्द्रिय किसे कहते हैं ?
समाधान--वीर्यान्तराय और श्रोत्रइन्द्रियावरण कर्म के क्षयोपशम तथा अगोपाग नामकर्म के पालम्बन से जिसके द्वारा सुना जाता है प्राथवा जो सुनती है वह थोरेन्द्रिय है ।
शंका-श्रोत्रेन्द्रिय का विषय क्या है ? समाधान -श्रोत्रेन्द्रिय का विषय शब्द है । जो सुना जाए वह शब्द है । अथवा ध्वनिरूप क्रिया को शब्द कहते हैं । शंका–पाँचों इन्द्रियों की उत्पत्ति के कारण क्या हैं ?
समाधान-वीर्यान्त राय और स्पर्शन, रसना, प्राण, चक्षु तथा श्रोग्रेन्द्रियावरण कर्म के क्षयोपशम तथा अङ्गोपाङ्ग नामकर्म के आलम्बन के साथ-साथ पञ्चेन्द्रियजाति नामकर्म के उदय की वशवर्तिता पाँचों इन्द्रियों की उत्पत्ति के कारण हैं।
___ यद्यपि वीर्यान्तराय व इन्द्रियावरणकर्म के क्षयोपशम से इन्द्रियों की उत्पत्ति होती है, तथापि यहाँ जाति नामकर्मोदय की प्रधानता है । मनुष्य, देव और नारकी तो पञ्चेन्द्रिय ही होते हैं, नियंत्रों में भी सिंह, मृग, शुक, मछली आदि पञ्चेन्द्रिय होते हैं।
पाँचों इन्द्रियों का विपक्षेत्र धणुवीसडवसयकदी, जोयणछादाल-हीपतिसहस्सा ।
प्रटुसहस्स धणूरणं, विसया दुगुणा असगि त्ति ॥१६८।। गाथार्थ-स्पर्शनादि इन्द्रियों का विषयक्षेत्र क्रमशः (स्पर्शन) बीस की कृति (वर्ग) अर्थात् ४०० धनुष, (रसना) पाठ का वर्ग ६४ धनुष, (घ्राण) दस का वर्ग १०० धनुष, (चक्ष) दो हजार नव सौ चौपन योजन तथा (श्रोत्र) पाठ हजार धनुष प्रमाण है । आगे असंजीपञ्चेन्द्रिय पर्यन्त विषयक्षेत्र दुगुना-दुगुना होता गया है। .
विशेषार्थ-एकेन्द्रिय जीव के स्पर्शन इन्द्रिय का उत्कृष्ट विषयक्षेत्र वीस का वर्ग अर्थात ४०० धनुष प्रमाण है, द्वीन्द्रिय के स्पर्शन इन्द्रिय का ही उत्कृष्ट क्षेत्र ८०० धनुष, त्रीन्द्रिय के १६०० धनुष, चतुरिन्द्रिय जीव के ३२०० धनुष और असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय जीव के ६४०० धन्य है। इस प्रकार एकेन्द्रिय से असंज्ञो पञ्चेन्द्रिय तक स्पर्शन इन्द्रिय सम्बन्धी उत्कृष्ट विषयक्षेत्र दूना-दूना जानना चाहिए।
द्वीन्द्रिय जीव के रसना इन्द्रिय का उत्कृष्ट विषयक्षेत्र ६४ धनुष प्रमाण है, श्रीन्द्रिय जीव के
१. घ. पु. १ पृ. २४६।
२. प. पु. १ पृ. २५० ।
३. ध. पु. १ पृ. २४ ।