Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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२२० / गो. सा. जीवकाण्ड
गाय १६०-१६३
जगत्प्रतर प्रमाण है, किन्तु यदि यह प्रभाग सामान्यदेवों का है तो २५६ सूच्यङ्गुल के वर्ग प्रमाण सामान्यदेव सम्बन्धी अवहारकाल में प्रतराङ्गुल का संख्यातवाँ भाग मिला देने से ज्योतिषीदेवों का अवहारकाल प्राप्त होता है। इस अवहारकाल से जगत्प्रतर को भाजित करने पर ज्योतिषीदेवों का प्रमाण प्राप्त होता है ।
शङ्का - "सौधर्म, ऐशान कल्पवासी देव द्रव्यप्रमाण से कितने हैं ?
समाधान - सौधर्म, ऐणानकल्पवासीदेव द्रव्यप्रमाण से असंख्यात है ।
शङ्का - क्षेत्र की अपेक्षा सोधर्म, ऐशानकल्पवासीदेव कितने प्रमारण हैं ?
समाधान --- क्षेत्र की अपेक्षा सौधर्म - ऐशानकल्पवासी देव असंख्यात जगच्छ्रेणी प्रमाण हैं। अथवा जगत्प्रतर के प्रसंख्यातवें भाग प्रमाण हैं । उन असंख्यात जगच्छ्रेणियों की विष्कम्भसूची सूच्यङ्गुल के तृतीय वर्गमूल से गुणित सूच्यङ्गुल के द्वितीय वर्गमूल प्रमाण है ।
सूच्यगुल के द्वितीय वर्गमूल (तृतीय वर्गमूल X तृतीय वर्गमूल ) को सूच्यङ्गुल के ही तृतीय वर्गमूल से गुणित करने पर - ( सूच्यगुल तृतीय वर्गमूल xसू. तु. वर्गमूल सू. तृ. वर्गमूल ) नागुल का तृतीय वर्गमूल प्राप्त होता है, अतः घनाङ्गुल के तृतीय वर्गमूल प्रमाण सौधर्म -ऐशान कल्पों में देव हैं।
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शङ्का - काल की अपेक्षा सौधर्म - ऐशानकल्पवासी देव कितने हैं ?
समाधान-काल की अपेक्षा सौधर्म - ऐशान कल्पवासीदेव असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणीउत्सर्पिणियों से अपहृत होते हैं ।"
शङ्का - सानत्कुमारकरूप से सहस्रारकल्प तक के देवों का कितना प्रमाण है ?
समाधान - सानत्कुमारकरूप से सहस्रारकल्प तक के देवों का प्रमाण ज. श्रे के प्रसंख्यातवें भागप्रमाण है । सामान्य से ज. श्र. के असंख्यातवें भागत्व की अपेक्षा सप्तमपृथ्वी के नारकियों से कोई भेद नहीं है । विशेष की अपेक्षा भेद है, क्योंकि यहाँ यथाक्रम से ग्यारहवां, नौवाँ, सातवाँ, पाँचव और चौथा, इन ज. के वर्गमूलों की श्रेणीभागहाररूप मे उपलब्धि है ।" अर्थात् सानत्कुमार माहेन्द्रकल्प में ग्यारहवें वर्गमूल से भाजित ज श्रे, ब्रह्म ब्रह्मोत्तरकल्प में नवें वर्गमूल से भाजित ज ., लान्तवकापिष्ठ कल्प में सातवें वर्गमूल से भाजित ज श्रे, शुक्र- महाशुक्रकल्प में पाँचवें वर्गमूल से भाजित ज. . तथा शतार - सहस्रारकल्प में चतुर्थ वर्गमूल से भाजित ज थे. प्रमाण देवराशि है ।
शङ्का -- श्रानत से अपराजित विमान तक के विमानवासी देव द्रव्यप्रमारण से कितने हैं ?
समाधान प्रान्त से अपराजित विमानतक के विमानवासीदेव द्रव्यप्रमाण से पत्योपम के श्रसंख्यातवें भाग प्रमारण हैं । यहाँ अन्तर्मुहूर्त से पत्थोपम अपहृत होता है।
टोका ।
१. ध.पु. ७ पृ. २६४, सूत्र४५-४६ । २. ध.पु. ७ पृ. २६५, सूत्र ४०-५० । ३. व. पु. ७ पृ. २६५, सूथ ५० की ४. ध. पु. ७ पृ. २६४, सूत्र ४७ ।. ५. घ. पु. ७ पृ. २६६ ॥ ६. प. पु. ७ पृ. २६६, सूत्र ५२-५४ ।