Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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२१४ / गो. सा. जीवकाण्ड
गाथा १५३-१५४
शक्ति होते हुए भी वे लोक के अग्रभाग में स्थित हो जाते हैं । माण्डलिक कार्य के होने में निमित्त को नहीं मानता, अतः उसके खण्डन के लिए यह विशेषण दिया गया है।
नरकगति में जीवों की संख्या
सामण्णा रइया घणभंगुलाब दियमूलगुणसेढी । बिदियादि बारवस छत्तिदुरिण अपदहिया सेवी ।। १५३ ।। हेमिपुढचीणं रासिविहोरो दु सन्यराती दु । पदमावरिणमि रासी णेरइयाणं तु रिद्दिट्ठो ॥ १५४॥
गाथार्थ - घनांगुल के द्वितीय वर्गमूल से जगच्छ्रेणी को गुरिगत करने पर जो लब्ध प्राप्त हो, उतना सामान्य से सर्वनारकी जीवों का प्रसारण है। द्वितीय आदि अधस्तन छह नरकों में नारकियों का प्रमाण क्रमशः बारहवें वर्गमूल से भाजित, दसवें वर्गमूल से भाजित, आठवें वर्गमूल से भाजिल, वर्गमूल से भाजित, तीसरे वर्गमूल से भाजित तथा द्वितीय वर्गमूल से भाजित जगच्छ्रेणी प्रमाण है। नीचे की छह पृथिवियों के नारकियों का जितना प्रमाण हो उसको सम्पूर्ण नारक राशि में से घटाने पर जो शेष रहे उतना प्रथम पृथिवी के नारकियों का प्रमाण है ।। १५३ - १५४ ।।
विशेषार्थ धवल ग्रन्थ में प्रमाण तीन प्रकार से बतलाया गया है मादा की अपेक्षा, काल की अपेक्षा और क्षेत्र की अपेक्षा । यहाँ पर मात्र क्षेत्र की अपेक्षा नारकियों का प्रमाण बतलाया गया है । गणना की अपेक्षा नारकी असंख्यात हैं । काल की अपेक्षा नारकी जीव प्रसंख्याता संख्यात अवसर्पिणी और उत्सर्पिरिंग से अपहृत होते हैं।' क्षेत्र की अपेक्षा नारकी जीव असंख्यात जगच्छ्रेणी प्रमाण हैं जो जगत्प्रतर के असंख्यात भागप्रमाण हैं। उन जगच्छ गियों की विष्कम्भसूची सूच्यंगुल के द्वितीय वर्गमूल से मुणित उसी का प्रथम वर्गमूल है।
शंका-उपयुक्त गाथा १५३ में घनांगुल का द्वितीय वर्गमूल कहा गया है और धवलग्रन्थ में 'शुच्यंगुल के द्वितीय वर्गमूल से गुणित प्रथम वर्गमूल' कहा गया है। इन दोनों प्रार्थग्रन्थों में विषमता क्यों है ?
समाधान--- इन दोनों प्राग्रन्थों में विषमता नहीं है, मात्र शब्दों की विभिन्नता है। दोनों की राशि का प्रमाण समान है, उसमें विभिन्नता नहीं है ।
शङ्का - समानता किस प्रकार है ?
समाधान-सूच्यंगुल के द्वितीय वर्गमूल से सूच्यंगुल के द्वितीय वर्गमूल को गुणा करने पर सूच्यंगुल का प्रथम वर्गमूल आता है। सूच्यंगुल का प्रथम वर्गमूल गुरिणत द्वितीय वर्गमूल अर्थात् द्वितीय वर्गमूल गुणित द्वितीय वर्गमूल पुनः गुणित द्वितीय वर्गमूल (द्वितीय वर्गमूल x द्वितीय वर्गमूल X द्वितीय वर्गमूल ) । इस प्रकार परस्पर गुणित करने पर सूच्यंगुल के द्वितीय वर्गमूल का घन (सूच्यंगुल का द्वितीय वर्गमूल ) प्राप्त होता है जो प्रांगुल के द्वितीय वर्गमूल के समान है ।
१. ध. पु. ७ पृ. २४४ सूत्र २-३ । २. पू. ७ . २४५ सूत्र ४-५ । ३. घ. पु. ७ पृ. २४६ सूत्र ६ ।