Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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२१८ /मो. सर. जीव काण्ड
गाथा १५६
प्रक्षिप्त करने योग्य इन छह राशियों के मिलाने पर छह द्रव्य प्रक्षिप्त राशि होती है । इसप्रकार तीन बार वर्गित संवर्गित राशि से अनन्तगुणे और छह द्रव्य प्रक्षिप्त राशि से अनन्तगुणे हीन इस मध्यम अनन्तानन्त की जितनी संख्या होती है तम्मात्र जीवराशि है ।"
यह
शङ्का "अनन्तानन्त अवसर्पिणियों और उत्सर्पिणियों के द्वारा जीव अपहृत नहीं होते, " कहना उचित नहीं है, क्योंकि जीवराशि से काल के समय अनन्तगुणे हैं ? कहा भी है
धम्या मागास निणि वि तुला होंति थोवाणि । astig जीव- पोग्गल - कालागासा प्रणतगुणा ॥१६॥
अर्थात् "धर्मद्रव्य अधर्मद्रव्य और लोकाकाश इनके प्रदेश समान होते हुए भी स्तोक हैं तथा जीवद्रव्यराशि इससे अनन्तगुणी हैं। उससे पुद्गलराशि अनन्तगुणी है, उससे काल के समय अनन्तगुणे हैं, उससे आकाश के प्रदेश अनन्त गुणे हैं।" इससे जाना जाता है कि जीवराशि भले ही समाप्त हो जाओ, किन्तु काल के समय समाप्त नहीं हो सकते, क्योंकि जीवराशि से काल के समय अनन्तगुणे हैं।
ही ग्रहण किया है। जिसप्रकार लोक में प्रस्थ ( विभक्त है, अनागत, वर्तमान और अतीत। है । जो बनाया जा रहा है वह वर्तमान प्रस्थ है है वह अतीस प्रस्थ है। एक गाथा इसप्रकार है
समाधान- यह कोई दोष नहीं, क्योंकि जीवराशि का प्रमाण निकालने में प्रतीत काल का धान्य मापने का काष्ठ का माप विशेष ) तीनप्रकार उनमें से जो निष्पन्न नहीं हुआ है वह अनागत प्रस्थ और जो निष्पन्न हो चुका है और व्यवहार के योग्य उनमें से अतीत प्रस्थ के द्वारा सम्पूर्ण बीज मापे जाते हैं। इस सम्बन्ध में
* पत्यो तिहा विहतो अरगागदो वट्टमारतीवो य ।
एवेसु अवोषेण तु मिजिये सब बीजं तु ॥२०॥
प्रस्थ तीन प्रकार का है, अनागत, वर्तमान और अतीत। इनमें से अतीत प्रस्थ के द्वारा सम्पूर्ण बीज मापे जाते हैं। इसी प्रकार काल भी तीन प्रकार का है अनागत, वर्तमान और अतीत | उनमें से प्रतीत काल के द्वारा सम्पूर्ण जीवराशि का प्रमाण जाना जाता है। और भी कहा है
"कालो तिहा विहतो प्रणागयो बट्टमाशतीदो य । एदेसु प्रदीदेण दु मिज्जिदे जीवरासी वु ॥२१॥
काल तीन प्रकार का है, अनागत काल, वर्तमान काल और अतीतकाल । इनमें से प्रतीतकाल के द्वारा सम्पूर्ण जीवराशि का प्रमाण जाना जाता है । इसलिए जीवराशि का प्रमाण समाप्त नहीं होता है, परन्तु अतीत काल के सम्पूर्ण समय समाप्त हो जाते हैं । सोलह राशिगत अल्पबहुत्व से यह जाना जाता है। वह सोलह राशिगत अल्पबहुत्व इस प्रकार है वर्तमान काल सबसे स्तोक । अभव्य जीवों का प्रमाण वर्तमान काल से जधन्ययुक्तानन्तगुणा है । अभव्य राशि से
१. धवला पु. ३ पृ. २४-२५-२६ । २. ध. पु. ३ पृ. २६ । ३. घ. पु. ३ पृ. २६
४. ध.पु. ३ पृ. २१ ।