Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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१७/गो.सा. जीवकाण्ड
गाथा १२८
प्रकीर्णक, आभियोग्य और किल्बिषिक देवों में, नीचे के छह नरकों में सर्वप्रकार की स्त्रियों में, नपुसकवेद में, एकेन्द्रियों में, विकलत्रयों में, लब्ध्यपर्याप्तक जीवों में और कर्मभूमिज तिर्यचों में मसयतसम्यग्दृष्टि का उत्पत्ति के माथ विरोध सिद्ध हो जाता है । इसलिए इतने स्थानों में सम्यम्दष्टजीव उत्पन्न नहीं होते हैं।'
सौधर्म-ऐशान स्वर्ग से लेकर उपरिम अवेयक के परिमभाग पर्यन्न देवों में मिथ्याष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में जीव पर्याप्त भी होते हैं और अपर्याप्त भी होते हैं ।
शक्षा...सानत्कुमार स्वर्ग से लेकर ऊपर स्त्रियाँ उत्पन्न नहीं होती हैं, क्योंकि सौधर्म और ऐशान स्वर्ग में देवांगनाओं के उत्पन्न होने का जिस प्रकार कथन किया गया है, उस प्रकार आगे के स्वर्गों में उनकी उत्पत्ति का कथन नहीं किया गया है इसलिए वहां स्त्रियों का प्रभाव रहने पर । जिनका स्त्री-सम्बन्धी संताप शान्त नहीं हुआ है, ऐसे देवों के देवाङ्गनाओं के बिना मुम्म कैसे हो सकता है ?
समाधान नहीं, क्योंकि सानत्कुमार आदि कल्पसम्बन्धी स्त्रियों की उत्पनि सौधर्म व ऐशान स्वर्गों में होती है।
शङ्का-तो सानत्कुमार आदि कल्पों में स्त्रियों के अस्तित्व का कथन करना चाहिए ?
समाधान नहीं, क्योंकि जो दूसरी जगह उत्पन्न हुई हैं तथा जिनको देश्या, आयू और बल सानत्कुमारादि कल्पों में उत्पन्न देवों से भिन्न प्रकार के हैं : ऐसी स्त्रियों का सानत्कुमार आदि कल्पों में उत्पत्ति की अपेक्षा अस्तित्व मानने में विरोध पाता है ।
भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी देव तथा सौधर्म-रेशान कल्पवासी देव मनुष्यों के समान शरीर से प्रवीचार करते हैं। मैयन-सेवन को प्रवीचार कहते हैं। जिनका काय में प्रवीचार होता हैं, उन्हें काय से प्रवीचार करने वाले कहते हैं। सानत्कुमार और माहेन्द्र कल्प में देव स्पर्श से प्रवीचार करते हैं अर्थात ये देव देवाङ्गनाओं के स्पर्शमात्र से ही अत्यन्त प्रीति को प्राप्त होते हैं। इसी प्रकार वहाँ की देवियां भी देवों के स्पर्शमात्र से अत्यन्त प्रीति को प्राप्त होती हैं। ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर, लान्तवापिष्ठ कल्पों में रहनेवाले देव अपनी देवाङ्गनामों के शृंगार, प्राकार, बिलास, प्रशस्त तथा मनोज्ञ देष व रूप के अवलोकन मात्र से ही परमसुख को प्राप्त होते हैं इसलिए वे रूप से प्रवीचार करने वाले हैं। शुक्र, महाशुक्र, शतार और सहस्रार कल्पों में रहने वाले देव देवाङ्गनायों के मधुर संगीत, कोमल हास्य, ललित शब्दोच्चार और भूषणों के शब्द सुनने मात्र से ही परमप्रीति को प्राप्त होते हैं, इसलिए वे शब्द से प्रवीचार करने वाले हैं। प्रानत, प्रागत. आरण और अच्युत कल्पों के देव अपनी देवाङ्गनामों का मन में संकल्प करने मात्र से ही परमसुख को प्राप्त होते हैं इसलिए वे मन से प्रबोचार करने वाले
१. ध. पु. १ पृ. ३३.७ । २. सोधम्मीमारग-प्पहडि जाव उपरिम-उमरिम-गेवजे ति विमाला वासिय-देशेसु मिच्छाइदिठ-सत्यम्प सम्माइटि-असंजदसम्माइटिट-ट्टागो सिया गज्जत्ता सिया अपम्जता ॥६८|| (व. पु. १ पृ. ३३७) ।