Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा १४६
गतिमागणा/२०५
विषय में विचार करके निश्चय करते हैं, अवधारण करते हैं, आचरण करते हैं, सूक्ष्म रहस्य को जानते हैं, दूरदर्शी हैं, जिनके चिरकाल तक धारणा बनी रहती है और जो सातिशय उपयोग से विशिष्ट हैं, वे मनुष्य हैं । अथवा जब भोगभूमि का काल समाप्त होने लगा और कर्मभूमि का काल प्रारम्भ होने लगा तब प्रतिश्रुत प्रथम मनु (कुलकर) से लेकर भरत चक्रवर्ती पर्यन्त १६ मनु (कुलकर) युग (चतुर्थकाल) की प्रादि में हर जिन्होंने उस समय की कठिनाइयों को दूर करने का उपाय प्रजा को बतलाया और जीवन सुखरूप रहे ऐसा उपदेश दिया, इसलिए वे पिता तुल्य हुए। कर्म भूमि में जो मनुष्य हैं बे सब उनकी सन्तान हैं। मनु की सन्तान होने के कारण उनकी भी मनुष्य संज्ञा है।
मनुष्य मानुषोत्तर पर्वत तक ही पाये जाते हैं २ मानुषोत्तर पर्वत से परे मनुष्य नहीं पाये जाते। मनुष्यों का स्थान जम्बूद्वीप, धातकीखण्ड और आधा पुष्कर वरद्वीप ये ढाईद्वीप तथा लवणसमुद्र व कालोदधि ये समुद्र जिनकी विष्कम्भसूची ४५००००० योजन है, वहीं तक है । अर्थात् अन्य तीन गतियों की अपेक्षा मनुष्यों का स्थान सबसे अल्प है अर्थात् असंख्यातवें भाग प्रमाण है।
शङ्का----मनुष्यों का क्षेत्र ४५००००० लाख योजन होने का क्या कारण है ?
समाधान-मनुष्यगति से ही जीव मुक्त होकर सिद्ध अवस्था को प्राप्त होता है, अन्य तीन गतियों से मुक्ति प्राप्त नहीं हो सकती। सिद्धक्षेत्र का प्रमाण ४५००००० योजन है, अतः मनुष्यक्षेत्र का प्रमाण भी ४५७०००० योजन है ।
शङ्का-किसी भी स्थान से जीव मुक्त होकर सिद्धक्षेत्र पर जा सकता है, ऐसा क्यों न मान लिया जाये?
समाधान- मुक्त जीवों की गति एक समय मात्र में मोड़ा रहित होती है। जिस स्थान से जीब मुक्त होता है, ऋजुगति से जाकर ठीक उस स्थान के ऊपर सिद्धक्षेत्र में जाकर विराजमान हो जाता है। यदि सिद्धक्षेत्र के नीचे के स्थान के अतिरिक्त अन्यस्थान से मुक्ति हो तो सिद्धक्षेत्र में जाने के लिए उस जीव को मोड़ा लेना पड़ेगा और आर्ष से विरोध आ जाएगा।
शङ्का--नारकियों को मुक्ति की प्राप्ति क्यों नहीं होती ?
समाधान--नारकियों के नित्य ही अशुभ लेश्या होती है। कृष्णा, नील, कापोत अशुभ लेश्या हैं । अशुभलेश्यावाला संयम धारण नहीं कर सकता और संयम. के बिना मुक्ति नहीं हो सकती।
शङ्का-देवों के शुभ लेश्या ही होती है फिर देव मुक्ति क्यों नहीं प्राप्त करते हैं ?
समाधान-देवों के शुभ लेश्या होते हुए भी उनके अाहार प्रादि की पर्याय नियत है। जिनकी पर्याय नियत होती हैं वे संयम धारण नहीं कर सकते, क्योंकि वे स्वेच्छापुर्वक आहारादि का
१. श्रीमदभयचन्द्रसूरि कृत टीका। २. "प्राङ् मानुषोत्तरान्मनुष्या." स. सू. प्र. ३ सूः ३५। ३. "अविग्रहा जीवस्य" प्र. २ सू. २७"(त. सू.)। ४. "नारकानित्माशुभतरलेश्या......."[प्र. ३. सू. ३ त. सू.] ।