Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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माया ११२
जीतसमास १५३
से चार वृद्धियों द्वारा निगोद प्रतिष्ठित पर्याप्तक की जघन्य गहना तक बढ़ाना चाहिए । यहाँ गुणकार पल्य का असंख्यातवांभाग है। फिर इस अवगाहना को एकप्रदेश अधिक इत्यादि कम से असंख्यातभागवृद्धि द्वारा निगोद प्रतिष्ठित नित्यपर्याप्तक की उत्कृष्ट अवगाहनातक बढ़ाना चाहिए। फिर इस अवगाहना को एकप्रदेश अधिक इत्यादि ऋम से असंख्यातभागवृद्धि द्वारा निगोदप्रतिष्ठित पर्याप्तक की उत्कृष्ट अवगाहना तक बढ़ाना चाहिए। तत्पश्चात् इस अवगाहना को एकप्रदेश अधिक इत्यादि कम से चारों वृद्धियों द्वारा बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्यापतक की जघन्य अवगाहना तक बढ़ाना चाहिए। यहाँ गुणकार पत्योपम का असंख्यातवाँभाग है। फिर इस अवगाहना को एकप्रदेश अधिक इत्यादि क्रम से चारों वृद्धियों द्वारा द्वीन्द्रिय पर्याप्तक की जघन्य अवगाहना तक बढ़ाना चाहिए । यहाँ गुणकार पत्य का असंख्यातवाँभाग है।'
अब उत्सेधनांगुल का भागहार संख्यातरूपप्रमाण हो जाता है । इसके आगे इस अवगाहना को एकप्रदेश अधिक इत्यादि क्रम से तीनद्धियों (असंख्यातभागवृद्धि, संख्यातभागवृद्धि, संख्यातगुणवृद्धि) द्वारा श्रीन्द्रिय पर्याप्तक की जघन्य अवगाना तक बढ़ाना चाहिए । यहाँ गुणकार संख्यात समय है । फिर इस अवगाहना को एकप्रदेश अधिक इत्यादि तीनवृद्धियों द्वारा चतुरिन्द्रिय पर्याप्तक की जघन्य अवगाहना तक बढ़ाना चाहिए। फिर इस प्रवगाहना को एक प्रदेश अधिक इत्यादि क्रम से तीन बृद्धियों द्वारा पंचेन्द्रिय पर्याप्तक की जघन्य अवगाहना तक बढ़ाना चाहिए। फिर इस प्रवगाहना को एकप्रदेश अधिक इत्यादि क्रम से तीन बद्धियों द्वारा श्रीन्द्रिय नित्यपर्याप्तक की उत्कृष्ट अवगाहना तक बढ़ाना चाहिए। पश्चात् इस अवगाहना को एकप्रदेश अधिक इत्यादि ऋम से तीनवृद्धियों द्वारा चतुरिन्द्रिय निर्वृत्त्यपर्याप्तक की उत्कृष्ट अवगाहना तक बढ़ाना चाहिए । तत्पश्चात् इस अवगाहना को एकप्रदेश अधिक इत्यादि क्रम से तीन वृद्धियों द्वारा द्वीन्द्रिय निवृत्त्यपर्याप्तक की उत्कृष्ट अवगाहना तक बढ़ाना चाहिए। पश्चात् इस अवगाहना को एकप्रदेश अधिक इत्यादि क्रम से तोनवृद्धियों द्वारा बादरवनस्पतिकायिक शरीर निर्वृत्यपर्याप्तक की उत्कृष्ट अवगाहना तक बढ़ाना चाहिए। फिर इस अवगाहना को एकप्रदेश अधिक इत्यादि क्रम से तीनवृद्धियों द्वारा पंचेन्द्रिय नित्यपर्याप्तक की उत्कृष्ट प्रवगाहना तक बढ़ाना चाहिए । फिर भी इस अवगाहना को एक प्रदेश अधिक इत्यादि क्रम से तीन वृद्धियों द्वारा त्रीन्द्रिय पर्याप्तक की उत्कृष्ट अवगाहना तक बढ़ाना चाहिए । पश्चात् इस अवगाहना को एक प्रदेश अधिक इत्यादि क्रम से तीन वृद्धियों द्वारा चतुरिन्द्रिय पर्याप्तक को उत्कृष्ट अवगाहना तक बढ़ाना चाहिए। फिर इस अवगाहना को एक प्रदेश अधिक इत्यादि क्रम से तीनवृद्धियों द्वारा हीन्द्रिय पर्याप्तक की उत्कृष्ट अवगाहना तक बढ़ाना चाहिए, फिर इस अवगाहना को एक प्रदेश अधिक इत्यादि क्रम से तीन वृद्धियों द्वारा बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्तक की उत्कृष्ट प्रदगाहना तक बढ़ाना चाहिए । तत्पश्चात् एक प्रदेश अधिक इत्यादि क्रम से तीन वृद्धियों द्वारा पंचेन्द्रिय पर्याप्तक की उत्कृष्ट अवगाहना तक बढ़ाना चाहिए।
मत्स्यरचना की अपेक्षा पूर्वोक्त स्थानों में प्रवगाहना मेदों का अन्तर्भाव हेद्रा जेसि जहष्णं वारं उक्कस्सयं हवे जत्थ । तत्थंतरगा सव्ये तेसि उग्गाहरण वि अप्पा ।।११२॥
१. धवल पु. ११ पृ. ४६ ।
२. ध, पु ११ पृ. ४० से ५१ ।