Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
View full book text
________________
१६६/गो. सा, जीवकाण्ड
गाथा १२६
विशेषार्थ - तेरहवें गुणस्थानवर्ती सयागकेवली के यद्यपि प्रौदारिकशरीर पूर्ण है और पर्याप्त नामकर्म का उदय भी है तथापि समुद्घात के काल में औदारिकमिश्र व कामणकापयोग होते हैं। ये दोनों योग अपर्याप्त अवस्था में होते हैं,' पर्याप्तावस्था में नहीं होते अतः इन दो योगों की संज्ञा अपूर्णयोग दी गई है। इन अपूर्णयोगों के कारण हो सयोगकेवली को कपाट, प्रतर व लोकपूरण अवस्था में अपर्याप्त कहा गया है ।
राङ्का-समुद्घात किसे कहते हैं ?
समाधान - घातनेरूप धर्म को धात कहते हैं। जिसका प्रकृत में अर्थ कर्मों की स्थिति और अनुभाग का विनाश होता है। उत्तरोत्तर होने वाले घात उद्घात है और समीचीन उद्घात
समुद्घात है ।
शडा-'समुद्घात' शब्द में न तो स्थिति-अनुभागधात कहा गया है और न उसका अधिकार है। यहाँ समुद्घात में कर्मों की स्थिति व अनुभाग का घात विवक्षित है, यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान - प्रकरणवश यह जाना जाता है कि केवलिसमुद्भात में कर्मों को स्थिति और अनुभाग घात विवक्षित है।
शा-इस घात में समीचीनता है, यह कंसे सम्भव है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि बहुत काल में सम्पन्न होने वाले धातों से एक समय में होने वाले इस घात में समीचीनता का अविरोध है ।।
शङ्का केवलियों के समुद्घात सहेतुक होता है या निर्हेतुक ? निर्हेतुक होता है, यह दूसरा विकल्प तो बन नहीं सकता, क्योंकि ऐसा मानने पर सभी केवनियों को समुद्घात करने के अनन्तर ही मोक्षप्राप्ति का प्रसङ्ग प्राप्त हो जाएगा। यदि कहा जाए कि सभी केवली समुद्घातपुर्वक ही मोक्ष जाते हैं, ऐसा मान लिया जाए तो इसमें क्या हानि है ? सो भी कहना ठीक नहीं है, क्योंकि ऐसा मानने पर लोकपूरण समुद्घात करने वाले केवलियों की वर्षपृथक्त्व के अनन्तर बीस संख्या होती है, यह नियम नहीं बन सकता है। केलियों के समुद्घात सहेतुक होता है, यह प्रथम पक्ष भी नहीं बनता है, क्योंकि केबलिस मुद्घात का कोई हेतु नहीं है। यदि कहा जाय कि तीन अघातिया कर्मों की स्थिति से प्रायुकर्म की स्थिति की असमानता ही समुद्घात का कारण है सो भी कहना ठीक नहीं है, क्योंकि क्षीणकषाय गुणस्थान की चरम अवस्था में सम्पूर्ण कर्म समान नहीं होते हैं, इसलिए सभी केबलियों के समुद बात का प्रसंग पा जाएगा।
१. पोरालिमिस्सकायजोगो अपज्जत्ताणं बघ.पु. १ पृ. ३१५) अपर्याप्नेदेव कामणकाययोग इति निश्चीयते । (व.पु. १ पृ. ३१६) २. “घानं घात: स्थित्यनुभवयोविनाश इति यावत् 1 जपरिघात उप्रातः, समीचीन: उद्घात: समुद्घातः ।” (ध.पु. १ पृ. ३००) ३. "कथममुक्तमनधिकृतं पावगम्यत इति चेन्न, प्रकरण घालदवगतेः। कयमस्य घातस्य ममीचीनत्वमिति चेन, भूयःकालनिष्पाद्यमानपातेभ्योऽस्यकसमयिकस्य समीचीनत्वादिशेचात् ।" (च.पु. १ पृ. ३००-३०१)।