Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा १२८
पर्याप्ति/१७५
नियम से पर्याप्तक होते हैं।'
शंका हुण्डावसर्पिणी कालसम्बन्धी स्त्रियों में सम्यग्दृष्टि जीव क्यों उत्पन्न नहीं होते ? समाधान-उनमें सम्यग्दृष्टिजीव नहीं उत्पन्न होते !
शङ्का—यह किस प्रमाण से जाना जाता है ? मार्गदर.
समाधान—इसी पार्षसूत्र से जाना जाता है। शङ्का-तो इस पागम से द्रव्यस्त्रियों का मुक्ति जाना भी सिद्ध हो जाएगा?
समाधान नहीं, क्योंकि वस्त्रसहित होने से द्रव्यस्त्रियों के संयतासंयत्तगुणस्थान होता है प्रतएव द्रव्यस्त्रियों के संयम की उत्पत्ति नहीं हो सकती है।'
शङ्का-वस्त्रसहित होते हुए भी उन द्रव्यस्त्रियों के भावसंयम के होने में कोई विरोध नहीं पाता।
समाषान-द्रव्यस्त्रियों के भावसंयम भी नहीं है, क्योंकि भावसंघम के मानने पर उनके भाव असंयम का अविनाभावी वस्त्रादि का ग्रहण करना नहीं बन सकता है।
शङ्का-तो फिर स्त्रियों में चौदह गुणस्थान होते हैं, यह कथन कैसे बन सकता है ?
समाधान नहीं, क्योंकि भावस्त्री में अर्थात् स्त्रीवेद युक्त द्रव्यपुरुष में चौदहगुणस्थानों का सद्भाव मान लेने में कोई विरोध नहीं आता है।
शङ्का-बादरकषायगुरणस्थान के ऊपर भाववेद नहीं पाया जाता इसलिए भाववेद में चौदह गुणस्थानों का सद्भाव नहीं हो सकता है ।
समाधान नहीं, यहाँ पर वेद की प्रधानता नहीं है, किन्तु गतिप्रधान है और वह पहले नष्ट नहीं होती है।
शङ्कायद्यपि मनुष्यगति में चौदहगुणस्थान सम्भव हैं फिर भी उसे वेद विशेषण से युक्त कर देने पर उसमें चौदहगुणस्थान सम्भव नहीं हैं ?
समाधान-नहीं, क्योंकि विशेषण के नष्ट हो जाने पर भी उपचार से उस विशेषण युक्त संज्ञा को धारण करने वाली मनुष्यगति में चौदह गणस्थानों का सदभाव मान लेने में कोई बिरोध नहीं आता है। यहाँ वेदों की प्रधानता नहीं है, किन्तु गति की प्रधानता है। गति पहले नष्ट नहीं होती, अर्थात् मनुष्यगति तो १४ वे गुणस्थान तक रहती है और उसी को प्रधानता से चौदहगुणस्थान कहे गए हैं।
१. मणुसिणीसु मिच्छाइट्ठी-सासणसम्माइछि ठाणे सिमा पनिज तायाम्रो सिवा अपजत्तियानो १६२॥ सम्मामिच्छाइट्ठि असंजदसम्माइछि संजदासजद संजदाणे णियमा पम्मत्तियायो ।।६३।। (च. पु. १ पृ. ३३२) । २. प. पु १ पृ. ३३२-३३ । ३. प. पु. १ पृ. ३३२-३३३ ।