Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा
जीवसमास/१३३ और एकेन्द्रियों के संतयोनियां होती हैं, विकलेन्द्रिय जीवों के विवृतयोनियाँ होती हैं । गर्भजों के मिथ (संवृत-विवृत मिली हुई) योनियाँ होती हैं। मूलाधार में भी कहा है--
एइंदिय रहया संपुडजोरणी हवंति देवा य ।
विलिविया य वियडा संपुडवियडा य गम्भेसु ॥१२/५८।। (पर्या. प्रवि.) है एकेन्द्रिय, नारकी तथा देवों के संवतयोनियां होती हैं। विकलेन्द्रिय अर्थात् द्वीन्द्रिय, श्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों के विवृतयोनियां होती हैं । गर्भजों में संवृत-विवृत अर्थात् मिश्रयोनियाँ होती हैं। राजवातिक व मूलाचार इन दोनों ग्रन्थों में सम्मुर्छन जन्मवाले पंचेन्द्रियजीवों की योनि के विषय में कथन नहीं किया, किन्तु गो. सा. जीवकाण्ड की उक्त गाथा ८७ के उत्तरार्ध में सम्मूछनपंचेन्द्रियजीवों को विवतयोनि बसलाई गई है।
उपपादजन्म में कहीं शीतयोनि है और कहीं उष्णयोनि है । जैसे रत्नप्रभा प्रथम पृथ्वी से लेकर घूमप्रभा नामक पाँचवीं पृथ्वी के तीन चौथाई तक नरकबिलों में उष्णयोनि है। पांचवें नरक के भेष चौथाई बिलों में, छठे व सातवें नरकों के समस्त बिलों में शीतयोनि है। शेष मर्भज व सम्मळुन जीवों में शीत, उष्ण व मिथ तीनों प्रकार की योनियों होती हैं, किन्तु मूलाचार अ. १२
मा.६० में तेजकायिक जीबों के उष्ण योनि कही है तथा संस्कृतटीका में सिद्धान्तचक्रावर्ती श्री । इसुनन्दि आचार्य ने अप्कायिक के मात्र शीतयोनि बतलाई है। उपपादजन्म में एकेन्द्रियरूप सम्मुर्छन सन्म में संवृतयोनि होती है जैसे सम्पुट शय्या व उष्ट्र मुखाकार उपपादस्थान, इनमें विवक्षितजीव की उत्पत्ति के अनन्तर और दूसरे जीव के उत्पन्न होने से पूर्व नियम से संवृत रहती है, पुनः विकलेन्द्रियरूप सम्मळून जन्म में विवृतयोनि होती है । गर्भजन्म में संवृत-विवृत मिश्रित होती है, क्योंकि 1. पुरुषशरीर से गलितशुक्र विवृत है और स्त्री का शोरिणत संवृत है, इन दोनों का मिश्रण गर्भ है अत:
गर्भजन्म में संवृत-विवृत मिश्रयोनि होती है । अन्य दो अर्थात् संवृत या विवृतयोनि नहीं होती। । पंचेन्द्रियों के सम्मळुन जन्म में विकलेन्द्रिय के समान विवृतयोनि ही होती है।' कहा भी है
२एइंदिय णेरड्या संपुडोणी हवंति देवा य । विलंबिया य वियजा संपुरबियडा य गम्भेसु ॥ सीदुण्हा खलु जोपी गेरइयाणं तहेव देवाणं । तेऊण उसिण जोणी तिथिहा जोगी बु सेसाणं ॥
योनियों की संख्या सामण्णेरण य एवं एव जोगीयो हवंति वित्थारे ।
लक्खाण चतुरसीवी जोगीरो होंति रिणयमेण ॥८॥ . गाथार्य-सामान्य से योनियां नौ प्रकार की हैं। विस्तार से योनियों के नियम से चौरासी लाख भेद हैं ।।८८||
१. म. प्र. हीका के प्राधार से।
२. मनाचार १२/५८ ६ ६२ (पर्याप्ति अधिकार) ।