Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा ७-१००
जीवसमास/१४३
पश्चात् पर्याप्त अप्रतिष्ठितप्रत्येक वनस्पतिकायिक, पर्याप्त द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय-पंचेन्द्रिय की जघन्य अवगाहना, तत्पश्चात् अपर्याप्त त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय-द्वीन्द्रिय-अप्रतिष्ठित प्रत्येक-सकल अर्थात् पंचेन्द्रिय की उत्कृष्ट प्रवगाहना तत्पश्चात् पर्याप्तत्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय-द्वीन्द्रिय-अप्रतिष्ठित प्रत्येकपंचेन्द्रिय की उत्कृष्टअवगाहना ये सब स्थान क्रम से लिखने चाहिए। इनमें से ४२ स्थान गुणकार: ।हैं ॥॥ आदि केस
के सोलहस्थान अपर्याप्तक की जघन्य अवगाहना के हैं। प्रथमश्रेणी में पर्याप्तक को जघन्य अवगाहना, द्वितीयश्रेणी में अपर्याप्तक को उत्कृष्ट अवगाहना, तृतीयश्रणो में पप्तिक की उत्कृष्ट अवगाहनावाले जीव हैं ||६|| तृतीय श्रेणी के पश्चात् पाँचस्थान पर्याप्त की जघन्य अवगाहना के, पुनः पत्रिस्थान अपर्याप्तक को उस्कृष्ट अवगाहना के हैं। द्वीन्द्रिय पर्याप्तक की जघन्य अवगाहना पर्यन्त असंख्यात गुणकार हैं, उसके पश्चात् संख्यात गुणकार हैं ॥१०॥
विशेषार्थ--इन गाथानों में प्रतिपादित विषय ध.पु. ११ के 'जीवसमासों में अवगाहना दण्डक' से लिया गया है अत: उसो अवगाहना दण्डक के अनुसार यहाँ विशेष स्पष्टीकरण किया गया है ।
१. सूक्ष्म निगोद-अपर्याप्तकजीव की जघन्य अवगाहना सबसे स्तोक है, वह अवगाहना एक उत्सेधधनांगुल में पल्योपम के असंख्यातवेंभाग का भाग देने पर जो लब्ध पावे, उतनी है । २. सूक्ष्मवायुकायिक अपर्याप्तक को जघन्य अवगाहना उससे असंख्यातगुणी है। यहाँ गुणकार प्रावली का असंख्यातवांभाग है । "प्रचप्ति' कहने पर लब्ध्यपर्याप्तक ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि नित्यपर्याप्तक को जघन्य अवगाहना आगे कही जाने वाली है। ३. उससे सूक्ष्मतेजकायिक अपर्याप्तक की जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है। गुरणकार मावली का असंख्यातवा भाग है । यहाँ लब्ध्यपर्याप्तक ही ग्रहण करना चाहिए। ४. उससे सूक्ष्मजालकायिक अपर्याप्तक की जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है । गुणकार प्राबली का असंख्यातवां भाग है । यहाँ भी लब्ध्यपर्याप्तक ही ग्रहण करना चाहिए । ५. सूक्ष्मपृथ्वीकायिक लब्ध्यपर्याप्तक की जघन्य अवगाहना उससे असंख्यातगुणी है। गुणकार आवली का असंख्यातवा भाग है। ६. उससे बादर वायुकायिक अपर्याप्तक की जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है। यहाँ गुणकार पल्य का असंख्यातवाँ भाग है। ७. उससे बादरतेज. कायिक अपर्याप्तक की जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है । गुणकार पल्योपम का असंख्यातवा भाग है। ६. उससे बादर जलकायिक अपर्याप्तक की जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है । गुणकार पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग है। ६. उससे बादर पृथ्वीकायिक अपर्याप्तक की जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है । गुणकार पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग है। १०, उससे बादरनिगोदजीव अपर्याप्तक की जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है । गुणकार पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग है। ११. उससे निगोद प्रतिष्ठित प्रत्येक अपर्याप्तक की जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है । गुरणकार पस्योपम का असंख्यातवाँ भाग है। १२. उससे बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर अपर्याप्तक की जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है । गुणकार पल्योपम का असंख्यातनां भाग है। १३. उससे द्वीन्द्रिय अपर्याप्तक की जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है । गुणकार पल्योपम का असंख्यातवा भाग है । १४, त्रीन्द्रिय अपर्याप्तक की जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है। गुणकार पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग है। १५. चतुरिन्द्रिय अपर्याप्तक की जघन्य अवगाहना उससे असंख्यातगुणी है । गुणकार पल्योपम का असंख्यातवा भाग है। १६. उससे पंचेन्द्रिय अपर्याप्तक की जघन्य अवगाहना असंख्यातगुरणो है । गुणकार पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग है । ये पूर्व प्ररूपित सर्व जघन्य अवगाहनाएं लब्ध्यपर्याप्तक की हैं । आगे निवृत्तिपर्याप्तक और नित्यपर्याप्तक की कही जायेंगो। १७. उससे
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