Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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१२० गो. सर. जीव काण्ड
गाथा ७३
तेजकायिक अथवा अग्निकायिक, वाउकायिक अर्थात् वायुकायिक ये चार स्थावरकाय तो प्रत्येक शरीरबाले ही होते हैं। जो साधारण शरीरवाले वनस्पतिकायिक जीव हैं, वे निगोदिया होते हैं । निगोद दो प्रकार का है - नित्यनिगोद और चतुर्गतिनिगोद । पृथ्वी कायिक अपकायिक, तेजकायिक, वायुकायिक, नित्यनिगोद और चतुर्गतिनिगोद इन छह में प्रत्येक के बादर और सूक्ष्मभेद होने से ( ६x२) बारह भेद हो जाते हैं । प्रत्येकशरीरवाली वनस्पतिकायिक भी प्रतिष्ठित और अप्रतिष्ठित के भेद से दो प्रकार की है । प्रत्येकवनस्पति बादर ही होती है (सूक्ष्म नहीं होती ) अतः इसमें सूक्ष्म बादर ऐसे दो भेद नहीं होने से दो भेद ही हैं। इन्हें बारह भेदों में मिलाने से (१२२) १४ भेद स्थावर कायसम्बन्धी होते हैं । त्रस के पाँच भेद हैं- द्वीन्द्रिय, श्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, संज्ञीपंचेन्द्रिय, श्रसंज्ञीपंचेन्द्रिय ।
सजीव भी सब बादर ही होते हैं । स्थावरकायसम्बन्धी उपयुक्त १४ भेदों में त्रसकायसम्बन्धी ये पाँच भेद जोड़ देने से जीवसमास के १६ भेद हो जाते हैं । इन १६ जीवसमासों में प्रत्येक के पर्याप्त और . दो प्रकार के पर्याप्तरूप (निवृत्ति - अपर्याप्त, लब्धि अपर्याप्तरूप) तीन-तीन भेद होने से (१९४३) ५७ भेद जीवसमास के हो जाते हैं ।"
जाति-जीवों के सद्यपरिणाम को जाति कहते हैं। यदि जाति नामकर्म न हो तो. खटमल खटमलों के साथ, बिच्छू बिच्छयों के साथ, चींटियाँ चींटियों के साथ, धान्य-धान्य के साथ और शालि शालि के साथ समान नहीं होंगे, किन्तु इनमें परस्पर सदृशता दिखाई देती है । अथवा जो कर्म एकेन्द्रिय द्वीन्द्रिय, श्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय भाव का बनाने वाला है, वह जाति नामकर्म है । शङ्का -- जाति तो सदृशप्रत्यय ग्राह्य है, परन्तु तृण (घास ) और वृक्ष में समानता है नहीं, क्योंकि दोनों में सदृशभाव उपलब्ध नहीं होता (यद्यपि दोनों के एकेन्द्रियजाति नामकर्म का उदय है ) । समाधान- नहीं, क्योंकि जल व याहार ग्रहण करने की अपेक्षा दोनों में समानता पाई जाती है।
स- जिस कर्म उदय से गमनागमन भाव होता है, वह त्रस नामकर्म है । जिस कर्म के उदय से जीव के सपना होता है, वह सनामकर्म है। जिसके उदय से हीन्द्रियादिक में जन्म होता है वह बस नामकर्म है ।
स्थावर - जिस कर्म के उदय से जीवों के स्थावरपना होता है वह स्थावर नामकर्म है ।" यदि स्थावर नामकर्म न हो तो स्थावर जीवों का प्रभाव हो जावेगा, किन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि स्थावर जीवों का सद्भाव पाया जाता है। जिसके निमित्त से एकेन्द्रियों में उत्पत्ति होती है वह स्थावर नामकर्म है । वे स्थावरजीव पाँच प्रकार के हैं, पृथ्वी, आप, तेज, वायु र वनस्पति ।
शङ्का - जल, अग्नि और वायुकायिक जीवों का संचरण होता है. अतः वे स हैं ?
समाधान - जल, श्रग्नि और वायुकायिक जीवों में जो गमन होता है वह गमनरूप परिणाम पारिणामिक है, अतः वे नम नहीं हैं ।
१. मं. प्र. टीका के धाधार से । २. ध. पु. ६ पृ. ५१ । ३. ध. पु. ५. ध. पु. ६ पृ. ६१ । ६. सर्वार्थसिद्धि । ७. ध. पु. १३ पृ. ३६३ । =/201
१३ पृ. ३६३ । ४. घ. पु. १३ पृ. ३६५ ।
८. ध. पु. ६ पृ. ६१ ।
६. सर्वार्थसिद्धि