Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा ६३-६४.
गुणस्थान५ अनुपालन कर उसके समाप्त होने पर इसके बाद अनन्तर समय में केवलि समुद्घात करता है, यह इस सूत्र का अर्थ के साथ सम्बन्ध है।
शङ्खा-केवलिसमुद्घात किसका नाम है ?
समाधान-कहते हैं, उद्गमन का अर्थ उद्घात है 1 इसका अर्थ है-जोव के प्रदेशों का फैलना । समीचीन उद्घात को समुद्घात कहते हैं। केवलियों के समुद्घात का नाम केवलिसमुद्धात है। प्रघातिकर्मों की स्थिति को समान करने के लिये केवलीजीव के प्रदेशों का समय के अविरोधपूर्वक ऊपर, नीचे और तिरछे फैलना केवलिसमुद्घात है, यह उक्त कथन का तात्पर्य है ।
यहाँ केवलिसमुद्वात पद में 'केवलि' विशेषरा शेष समस्त समुदघात विशेषों के निराकरण ३ करने के लिए जानना चाहिए, क्योंकि उन समुद्घातों का प्रकृत में अधिकार नहीं है । वह यह केवलिसमुद्घात दण्ड, कपाट, प्रतर और लोकपूर के भेद से चार अवस्थारूप जानना चाहिए।'
शङ्का-केबलियों के समुद्घात सहेतुक होता है या निर्हेतुक ? निहें तुक होता है यह दूसरा विकल्प तो बन नहीं सकता, क्योंकि ऐसा मानने पर तो सभी केवलियों को समुद्घात करने के । अनन्तर हो मोक्ष का प्रसंग पाएगा। यदि यह कहा जावे कि सभी केवली समुद्घात पूर्वक ही : मोक्ष जाते हैं। ऐसा मान लिया जाए तो क्या हानि है ? तो ऐसा कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि
ऐसा भागने पर लोकमा समुधाता मारो नाले फेशियों की वर्षपृथक्त्व में २० संख्या ही होती है । यह नियम नहीं बन सकता है । केवलियों के समृद्घात सहेतुक होता है यह प्रथम पक्ष भी नहीं बनता
है, क्योंकि, केवलिसमुदघात का कोई हेतु नहीं पाया जाता है। यदि यह कहा जावे कि तीन अघातिया कर्मों की स्थिति से प्रायुकर्म की स्थिति की असमानता हो समुद्घात का कारण है, सो भी कहना ठीक नहीं है, क्योंकि क्षीणकषाय मुरगस्थान की चरम अवस्था में संपूर्ण कर्म समान नहीं होते हैं, इसलिए सभी केवलियों के समुद्घात का प्रसंग पाजाएगा ।
समाधान—यतिवृषभाचार्य के उपदेशानुसार क्षीणकषाय गुणस्थान के चरम समय में संपूर्ण अधातिया कर्मों को स्थिति ममान नहीं होने से सभी केवली समुद्घात करके हो मुक्ति को प्राप्त होते । हैं परंतु जिन प्राचार्यों के मतानुसार लोकपूरण समुद्घात करनेवाले केवलियों की बीस संख्या का नियम है, उनके मतानुसार कितने ही केवली समुद्घात करते हैं और कितने नहीं करते हैं ।
शङ्का-कौन से केवली समुद्रात नहीं करते हैं ?
समाधान—जिनकी संसार-व्यक्ति अर्थात् संसार में रहने का काल वेदनीय आदि नीन कर्मों की स्थिति के समान है वे समुद्धात नहीं करते हैं, शेष केवली समुद्घात करते हैं ।
शङ्का—अनिवृत्ति आदि परिणामों के समान रहने पर संमारव्यक्ति-स्थिति और शेष तीन कर्मों की स्थिति में विषमता क्यों रहती है ?
समाधान नहीं, क्योंकि, व्यक्तिस्थिति के घात के कारणभूत अनिवृनिरूप परिणामों के
१. जयधयल मूल पृ. २२७८; धवल पु. १ पृ. ३०० सूत्र ६० को टीका। २. धवल पु. १ पृ. ३०१-३०२ ।