Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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८६/गो. सा. जीवकाण्ड
गाथा ६३-६४ समान रहने पर संसार को उसके अर्थात् तीन कर्मों की स्थिति के समान मान लेने में विरोध प्राता है।
शक्षा-संसार के विच्छेद का क्या कारण है ?
समाधान-द्वादशांग का ज्ञान, उनमें तीव्र भक्ति, केवलिसमुद्घात और अनिवृत्तिरूप परिणाम ये सब संसार के विच्छेद के कारण हैं । परन्तु ये सब कारण समस्त जीवों में संभव नहीं हैं, क्योंकि दश पूर्व और नौ पूर्व के धारी जीवों का भी क्षपकश्रेणी पर चढ़ना देखा जाता है। अतः वहाँ पर संसार-व्यक्ति के समान कर्म स्थिति नहीं पाई जाती है। इस प्रकार अन्तर्मुहर्त में नियम से निपतन स्वभावाले ऐसे पल्योपम के असंख्यातवें भागप्रमाण या संख्यात पावलीप्रमाण स्थितिकाण्डकों का निपतन करते हुए कितने ही जीव समुद्घात के बिना ही आयु के समान शेष कर्मों को कर लेते हैं। तथा कितने ही जीव समुद्घात के द्वारा शोष कर्मों को प्रायुकर्म के समान करते हैं । परन्तु यह संसार का घात केबली में पहले संभव नहीं है, क्योंकि, पहले स्थितिकाण्डक के घात के समान सभी जीवों के समान परिणाम पाये जाते हैं।
शङ्का-जबकि परिणामों में कोई अतिशय नहीं पाया जाता है अर्थात् सभी केवलियों के परिणाम समान होते हैं तो पीछे भी संसार का पात मत होनो ?
समाधान--नहीं, क्योंकि, वीतरागरूप परिणामों के समान रहने पर भी अन्तर्मुहूर्तप्रमारण पायुकर्म की अपेक्षा से आत्मा के उत्पन्न हुए अन्य विशिष्ट परिणामों से संसार का घात बन जाता है।
शा-अन्य प्राचार्यों के द्वारा नहीं न्याम्यान किये गये इस अर्थ का इस प्रकार व्याख्यान करने वाले प्राचार्य सूत्र के विराद्ध जा रहे हैं. ऐसा क्यों न माना जाय ?
समाधान- .. नहीं, क्योंकि, वर्षपृथक्त्व के अन्तराल का प्रतिपादन करने वाले सूत्र के वशवर्ती प्राचार्यों का हो पूर्वोक्त कथन से विरोध आता है।
शा--छह माह प्रमागा आयुकर्म के शेष रहने पर जिस जीव को केवलज्ञान उत्तान हुआ है वह समुद्घात करके ही मुक्त होता है। शेष जीव समुद्घात करते भी हैं और नहीं भी करते हैं । यथा--
धम्मासाउबसेसे उप्पणं जस्स केवलं जाणं ।
स-समुग्यानो सिन्झइ सेसा भज्जा समुग्घाए ॥१६७।। इस गाथा का उपदेश क्यों नहीं ग्रहण किया है ?
समाधान नहीं, क्योंकि, इस प्रकार विकल्प के मानने में कोई कारण नहीं पाया जाता है, इसलिए पूर्वोक्त गाथा का उपदेश नहीं ग्रहण किया है ।
जिन जीवों के नाम, गोत्र और वेदनीयकर्म की स्थिति प्रायुकर्म के समान होती है, वे समुद्घात नहीं करके हो मुक्ति को प्राप्त होते हैं। दूसरे. जीव समुद्घात करके ही मुक्त होते हैं ।।१६।।
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१. घवल पु. १ पृ. ३०३ । २. धवल पु. १ पृ. ३०४ ।