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छक्खंडागम
आठों कर्मोंकी जघन्य क्षेत्रवेदनाके स्वामीकी प्ररूपणा करते हुए बतलाया गया है कि जो ऋजुगतिसे उत्पन्न होकर तद्भवस्थ होनेके तृतीय समय में वर्तमान और तृतीय समयवर्ती आहारक है, जघन्य योगवाला है, तथा सर्व जघन्य अवगाहनासे युक्त है, ऐसे सूक्ष्मनिगोदिया लब्ध्यपर्याप्तक जीवके आठों कर्मोंकी सर्व जघन्य क्षेत्रवेदना होती है । इस जघन्य क्षेत्रवेदनासे भिन्न अजघन्य क्षेत्रवेदना जाननी चाहिए ।
वेदनाका स्वामित्व
आयुकर्मके सिवाय शेष सात कर्मोंकी उत्कृष्ट कालवेदनाके खामीकी प्ररूपणा करते हुए बतलाया गया है कि जो संज्ञी पंचेन्द्रिय मिथ्यादृष्टि जीव सर्व पर्याप्तियोंसे पर्याप्त है, साकारोपयोग से उपयुक्त और श्रुतोपयोगसे संयुक्त है, जागृत है, तथा उत्कृष्ट स्थितिबन्धके योग्य संक्लेश परिणामोंसे, अथवा ईषन्मध्यमसंक्लेश परिणामोंसे युक्त है, उसके सातों कर्मोंकी उत्कृष्ट कालवेदना होती है । उपर्युक्त विशेषण - विशिष्ट जीव कर्मभूमिया ही होना चाहिए, भोगभूमिया नहीं; क्योंकि भोगभूमिया जीवोंके उत्कृष्ट स्थितिवाला बन्ध सम्भव नहीं है । इसके अतिरिक्त चाहे वह अकर्मभूमिज देव नारकी हो, या कर्मभूमि- प्रतिभागज अर्थात् स्वयम्प्रभपर्वत के बाह्य भागमें उत्पन्न तिर्यंच हो । वह चाहे संख्यातवर्षकी आयुवाला हो, और चाहे असंख्यातवर्षकी आयुवाला हो, चारों गतियोंमेंसे किसी भी गतिका हो, तिर्यंचोंमेंसे जलचर, थलचर या नभचर कोई भी हो सकता है । उपर्युक्त उत्कृष्ट कालवेदनासे भिन्न अनुत्कृष्ट कालवेदना जाननी चाहिए ।
आयुकर्मकी उत्कृष्ट कालवेदनाके स्वामीकी प्ररूपणा करते हुए बतलाया गया है कि उत्कृष्ट देवायुके बन्धक सम्यग्दृष्टि संयत मनुष्य ही होते हैं । उत्कृष्ट नरकायुके बन्धक संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त कर्मभूमिया मिथ्यादृष्टि तिर्यंच और मनुष्य दोनों होते हैं । इससे भिन्न अनुत्कृष्ट कालवेदना जाननी चाहिए ।
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ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तरायकर्मकी जघन्य कालवेदना बारहवें गुणस्थानके अन्तिम समयवर्ती क्षीण - कषाय- वीतराग छद्मस्थसंयतके होती है । मोहनीयकर्मकी जघन्य कालवेदना दशवें गुणस्थानके अन्तिम समयवर्ती सूक्ष्मसाम्पराय संयत क्षपक जीवके होती है । चारों अघातिया कर्मोंकी जघन्य कालवेदना अयोगिकेवलीके चौदहवें गुणस्थानके अन्तिम समयमें होती है । अपनी अपनी जघन्य कालवेदनाओंसे भिन्न उनकी अजघन्य कालवेदना जाननी चाहिए ।
वेदना भावस्वामित्व
ज्ञानावरणादि चारों घातिया कर्मोंकी उत्कृष्ट भाववेदनाके स्वामीकी प्ररूपणा करते हुए बतलाया गया है कि चारों गतियों में से किसी भी गतिका कोई भी ऐसा जीव हो जो संज्ञी हो,
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