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प्रस्तावना
उक्त प्रकारके क्षपितकांशिक जीवके दशवें गुणस्थानवर्ती क्षपकसंयतके अन्तिम समयमें जाननी चाहिए।
वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मकी जघन्य द्रव्यवेदनाका स्वामी कौन है, इस पृच्छाके उत्तरमें बतलाया गया है, कि उक्त क्षपितकर्मांशिक जीव उपर्युक्त प्रकारसे आकर और क्षपकश्रेणीपर चढकर चार घातिया कर्मोंका क्षय करके केवली बनकर देशोन पूर्वकोटी काल तक धर्मोपदेश देते हुए विहार कर जीवनके स्वल्प शेष रह जानेपर योग-निरोधादि सर्व क्रियाओंको करता हुआ चरमसमयवर्ती भव्यसिद्धिक होता है, ऐसे अर्थात् अन्तिमसमयवर्ती अयोगिकेवलीके उक्त तीनों कर्मोंकी सर्व जघन्य द्रव्यवेदना होती है । उनसे भिन्न जीवोंके अजघन्य द्रव्यवेदना जानना चाहिए।
___ आयुकर्मकी जघन्य द्रव्यवेदनाके स्वामीकी प्ररूपणा करते हुए बतलाया गया है कि जो पूर्वकोटीकी आयुवाला जीव सातवीं पृथिवीके नारकियोंमें अल्प आयुबन्धक कालके द्वारा आयुको बांधता है, उसे तत्प्रायोग्य जघन्य योगसे बांधता है, योगयवमध्यके नीचे अन्तर्मुहूर्त काल तक रहता है, प्रथम जीवगुणहानिस्थानान्तरमें आवलीके असंख्यातवें भाग काल तक रहता है, पुनः क्रमसे मरणकर सातवीं पृथिवीके नारकियोंमें उत्पन्न हुआ। उस प्रथम समयवर्ती आहारक और प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ जीवने जघन्य उपपादयोगके द्वारा आहारको ग्रहण किया, जघन्य वृद्धिसे वृद्धिको प्राप्त हुआ, सर्वदीर्घ अन्तर्मुहूर्त कालके द्वारा सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हुआ, वहांपर तेतीस सागरोपमप्रमाण भवस्थितिका पालन करता हुआ बहुत बहुत वार असातावेदनीयके बन्ध योग्य कालसे युक्त हुआ, जीवनके स्वल्प शेष रह जानेपर अनन्तर समयमें परभवकी आयुको बांधनेवाले उस नारकीके आयुकर्मकी जघन्य द्रव्यवेदना होती है। इससे भिन्न जीवोंके आयुकर्मकी अजघन्य द्रव्यवेदना जाननी चाहिए।
वेदनाक्षेत्र स्वामित्वक्षेत्रकी अपेक्षा ज्ञानावरणादि चार घातिया कर्मोंकी उत्कृष्ट वेदनाके स्वामीकी प्ररूपणा करते हुए बतलाया गया है कि जो एक हजार योजन लम्बा, पांच सौ योजन चौड़ा और अढाई सौ योजन मोटा (ऊंचा) महामच्छ स्वयम्भूरमण समुद्रके बाहिरी तटपर स्थित है, वहां वेदनासमुद्घातको करके जो तनुवातवलयसे संलग्न है, पुनः उसी समय मारणान्तिकसमुद्घातको करते हुए तीन विग्रहकाण्डकोंको करके अनन्तर समयमें नीचे सातवीं पृथिवीके नारकियोंमें उत्पन्न होनेवाला है, उसके चारों घातिया कर्मोकी उत्कृष्ट क्षेत्रवेदना होती है । इस उत्कृष्ट क्षेत्रवेदनासे भिन्न अनुत्कृष्ट क्षेत्रवेदना जानना चाहिए।
चारों अघातिया कर्मोंकी उत्कृष्ट क्षेत्रवेदनाके स्वामीकी प्ररूपणा करते हुए बतलाया गया है कि लोकपूरणसमुद्घातको प्राप्त हुए केवली भगवानके चारों अघातिया कर्मोंकी उत्कृष्ट क्षेत्रवेदना होती है।
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