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धनगार
दूसरा उदाहरण:
प्रद्युम्नः षडहोद्भवोऽसुरभिदः सौभागिनेयः कुधा, बत्वा प्राग्विगुणोऽसुरेण शिलयाऽऽक्रान्तो वने रुन्द्रया । तत्कालीनविपाकपेशलतमः पुण्यैः खगेन्द्रात्मजी,
कृत्याऽलभ्यत तेन तेन जयिना विद्याविभूत्यादिना ॥५८॥ प्रद्युम्न यद्यपि असुरोंका विनाश करनेवाले वासुदेवकी अत्यंत बल्लभा रुक्मिणीका पुत्र था; फिर भी | जिस समय वह केवल छह दिनका था उसी समय उसको असुर-ज्वलितधूमशिख नामका दैत्य क्रोधके वश होकर महाखदिरा नामकी अटवीमें हर कर लेगया; क्योंकि पूर्व भवमें-मधुराजाकी पर्यायमें प्रद्यम्नके जीवने उसकी वल्लभाका हठपूर्वक हरण कर अपकार किया था। उस अटवीमें एक बड़ी भारी शिलाके नीचे प्रद्यम्नको दाबकर । ऊपरसे पीडित किया। किंतु तत्काल ही उदयमें आये हुए और इसीलिये अत्यंत मधुर पुण्यकर्मके प्रतापसे विद्याधरोंके निःसंतान स्वामी-कालसंवरने उसको अपना पुत्र बनालिया। और अंतमें वह कालसंवरके भी सौ पुत्रोंको पराजित कर प्राप्त की गई विजयके साथ साथ प्रज्ञप्ती आदि विद्याओं तथा विद्याधरत्वके प्राप्त करानेमें समर्थ विभूतियों--सोलह अद्भुत लाभोंसे युक्त हुआ । तथा उसके ऊपर आई हुई और भी अनेक प्रकारकी आपत्तियां शांत हुई जिनका कि विशद वर्णन उनके चरित्र में पाया जाता है ।
मंत्रादिकके प्रयोगका भी विपत्तियोंका निवारण करनेकेलिये शिष्ट पुरुष व्यवहार किया करते हैं। फिर आप यह किस तरह प्रकाशित करते हैं कि उन विपत्तियोंको दूर करने में पुण्य ही समर्थ है? आपका कथन विरुद्ध क्यों नहीं है? इसका उत्तर देते हैं:
यश्वानुश्रूयते हर्तुमापदः पापपक्त्रिमाः।
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अध्याय