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पाइअसद्दमहण्णवो
अड्ढ-अणंत
महत (पंचा अण न [ऋणधारण
अड्ढ देखो अद्ध = अर्ध (हे २,४१; चंद १० अण पुं [अनस्] शकट, गाड़ी (धर्म २)। एक पुत्र, लव (पउम ६७,६)। सर पुं[शर] सुर ६, १२६ महा)। अण देखो अण्ण = अन्य ; 'मरणहिप्रमावि
काम के बाण (गा १०००)। "सेणा स्त्री अड्ढ वि [आढय १ संपन्न, वैभव-शाली, पिपाणं' (से ११, १६०२०)।
[सेना] द्वारका की एक विख्यात गरिएका धनी (पानः उवा)। २ युक्त, सहित (पंचा
अण न [ऋण १ करजा, ऋरण (हे १,१४१)। (गाया १, ५, १६) । १२)। ३ पूर्ण, परिपूर्णः 'विगुणमवि गुणड्द' २ कर्म (उत्त १)। धारग वि [धारक] अणंत पुं [अनन्त] चालू अवसर्पिणी काल के (प्रासू ७१)।
करजदार, ऋणी (गाया १, १५)। बल वि चौदहवें तीर्थकर-देव. दिमतगणंतं च जिणं' अड्ढअक्कली स्त्री [दे] देखो अट्टयक्कली [बल] उत्तमर्ण, लेनदार (पग्रह १, २)। (पडि)। २ विष्ण, कृष्ण (पउम ५, १२२) ।
भंजग वि[भञ्जक] देउलिया (पएह १,३)। ३ शेष नाग (से ६,८६)। ४ जिसमें अनन्त अड्ढत्त वि [आरब्ध] शुरू किया हुआ, प्रारब्ध अण देखो गण (से ६, ६६) ।
जीव हों ऐसी वनस्पति कन्द-मल वगैरह (प्रोष
४१) । ५ न. केवल-ज्ञान (गाया १, ८)। ६ अण देखो जण; 'अएणं महिलाअणं रमंतस्स' अड्ढाइन्न ! वि [अर्धेतृतीय] ढाई (सम
(गा ४४); ‘गुरुप्रणपरवस पिन किं ( काप अड्ढाइय १०१ सुर १,४४भविः विस
आकाश (भग २, २) । ७ वि. नाश-वजित, ६१); 'दासप्रणाणं' (अच्चु ३२) ।
शाश्वत (सूत्र १,१,४; परह १,३)। ८ निःसीम, १४०१)।
अपरिमित, असंख्य से भी कहीं अधिक (विसे)। अड्ढिय वि [कृष्ट] खींचा हुआ (से ५,७२)। अण देखो तण (मे ६, ६६)।
६ प्रभूत, बहुत, विशेष (प्रासू २६:ठा ४,१)। अटुट वि [अधेचतुर्थ] साढ़े तीन, 'अड्छु- अणअरद देखो अणवरय (नाट)।
काइय वि[ कायिक अनन्त जीववालो बनट्ठाई सयाई' (पि ४५०)।
अणइवर वि [अनतिवर] जिससे बड़कर स्पति, कन्द-मूल आदि (धर्म २)। काय पुं अड्डेज न [आढयत्व] धनीपन, श्रीमंताई
दूसरा न हो, सर्वोत्तम; 'प्रच्छरायो....... | [काय] कन्द-मूल आदि अनन्त जीववाली (ठा १०)। अणइवरसोमचारुरूवानो' (प्रौप) ।
वनस्पति (पएण १)। खुत्तो अ[कृत्वस्] अड्ढेजा स्त्री [आढयेज्या] श्रीमंत से किया
अणइवुटि स्त्री [अनतिवृष्टि] अवृष्टि, वर्षा का | अनन्त बार (जी ४४) । °जीव पुं [जीव] हुआ सत्कार (ठा १०)।
अभाव; 'दुभिक्खडमरदुम्मारिईइअइबुट्ठी अगइ- देखो काइय (परण १)। जीविय वि अड्ढोरुग पुं [अोरुक] जैन साध्वियों के | पहनने का एक वस्त्र (प्रोघ ३१५)। वुट्टी य' (संबोध २)।
[°जीविक] देखो काइय (भग ८,३)। णाण अगईइ वि [अनीति ईति-रहित, शलभादिअढ (अप) देखो अट्ठ = अष्टन् (पि ६७:३०४
न [ज्ञान] केवल-ज्ञान (दस २)। णाणि कृत उपद्रव से रहित 'अणईइपत्ता' (प्रौप)।
वि [ज्ञानिन] केवल-जानी, सर्वज्ञ (सूत्र १, ४४२, ४४५)। अणंग पुं[अनङ्ग] १ काम, विषयाभिलाष,
६)। दंसि वि [दशिन सर्वज्ञ (पउम ४८, अढाइस (अप) स्त्रीन [अष्टाविंशति] संख्याविशेष, अठाईस, २८ (पि ४४५) । रमणेच्छा (श्रा १६; आव ६)। २ कामदेव,
१०५)। पासि वि [दर्शिन ऐवत क्षेत्र
के बीसवें जिन-देव (तित्थ)। 'मिस्सिया स्त्री अढारसग देखो अट्ठारसग (पिंड ४०२) ।
मन्मथ (गा २३३; गउडा कप्पू)। ३ एक राजकुमार, जो आनन्दपुर के राजा जीतारि का पुत्र
[मिश्रिका] सत्यमिश्र भाषा का एक भेद अढारसम देखो अट्ठारसम (भग १८ णाया था (गच्छ २)। ४ न. विषय-सेवन के मुख्य जैसे अनन्तकाय से भिन्न प्रत्येक वनस्पति से
मिली हुई अनन्तकाय को भी अनन्तकाय कहना अण अ [अ, अन् ] देखो मैं (हे २,१६०; अंगो के अतिरिक्त स्तन, कुक्षि, मुख आदि अंग
(परण ११) । मासयन ["मिश्रक] देखो से ११, ६४)।
(ठा ५, २)। ५ बनावटी लिंग आदि (ठा ५, अण सक [अण्] १ आवाज करना। २ जाना।
'मिस्सिया (ठा १०)। रह पुं[रथ विख्यात २)। ६ बारह अंग-ग्रन्थों से भिन्न जैन शास्त्र
(विसे ८४४)। ७ वि. शरीर-रहित, अंग-हीन, राजा दशरथ के बड़े भाई का नाम (पउम २२, ३ जानना। ४ समझाना। प्रगइ (विसे
१०१)। विजय पुणविजय] भरतक्षेत्र के मृत, 'पहरइ कह णु अणंगो, कह णु हु विधंति ३४४१)।
कोसुमा बाणा' (गउड); पईवमज्झे पडई पयंगो, २४ वें और ऐरवत क्षेत्र के बीसवें भावी तीर्थअण पुं [अण] १ शब्द, आवाज । २ गमन,
रूवाणुरत्तो हवई अणंगो' (सत्त ४८) । धरिणी कर का नाम (सम १५४) । वारिय वि गति (विसे ३४४०)। ३ कषाय, क्रोध आदि | स्त्री [गृहिणी] रति, कामदेव को पत्नी (सुपा
[°वीर्य] १ अनन्त बलवाला। २ पुं. एक आन्तर शत्रु (विसे १२८७)। ४ गाली, ६६७)। पडिसेविणी स्त्री [प्रतिषेविणा] केवलज्ञानी मुनि का नाम (पउम १४,१५८)। आक्रोश, अभिशाप (तंदु)। ५ न. पाप (पएह अमर्यादित रीति से विषय-सेवन करनेवाली स्त्री ३ एक ऋषि, जो कार्तवीर्य के पिता थे (प्राचू १, १)। ६ कर्म (प्राचा)। ७ वि. कुत्सित, (ठा ५, २)। पविट्ट न [प्रविष्ट] बारह | १)। ४ भरतक्षेत्र के एक भावी तीर्थंकर का खराब (विसे २७६७ टी)।
अंग-ग्रन्थों से भिन्न जैन ग्रन्थ (विसे ५२७)। नाम (ती २१)। संसारय वि[संसारिका अण पुं[अन] देखो अणंताणुबंधि (कम्म २, "बाण पुं [वाण] काम के बारण (गा। अनन्त काल तक संसार में जन्म-मरण पाने५; १४; २६)।
७४८)। लवण पुं [लबन] रामचन्द्रजी का। वाला (उप ३८४)। संग पुं[ सेन] १ चौथा
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