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अट्ठावय-अड्डिया पाइअसहमहण्णवो
२७ अट्ठावय न [अर्थपद] गृहस्थ (दस ३,४)। अट्ठिय वि [आर्थिक] १ अर्थका कारण, अर्थ- अडडंग न [अटटाङ्ग] संख्या-विशेष, 'तुडिय अट्ठावय न अर्थपद अर्थ-शास्त्र, संपत्ति-शास्त्र । सम्बन्धी । २ मोक्ष का कारण (उत्त १)। या 'महातुडिय' को चौरासी लाख से गुणने (सूत्र १,६ पएह १,४)।
अट्रिय वि [अर्थित] अभिलषित, प्रार्थित पर जो संख्या लब्ध हो वह (ठा ३, ४)। अट्ठावीस स्त्रीन [अष्टाविंशति] अठाईस, २८ (उत्त १)।
अडण न [अटन] भ्रमण, धूमना (ठा ६)। (पि ४४२, ४४५)।
अद्विय वि [अस्थित] १ अव्यवस्थित, अनि- अडणी स्त्री [दे] मार्ग, रास्ता दे १. १६) । अट्ठावीसइ स्त्री [अष्टाविंशति] संख्या-विशेष,
यमित (पएह १, ३) । २ चंचल, चपल (से अडपल्लण न [दे] वाहन-विशेष (जीव)। अठाईस, २८ । विह वि [विध] अठाईस २, २४)।
अडयणास्त्री [दे] कुलटा, व्यभिचारिणी
अडया अद्विय वि [आस्थिक हड्डी-सम्बन्धी, हाड़ प्रकार का (पि ४५१)।
स्त्री (दे १, १८; पान; गा २.४% का; 'अट्ठियं रसं सुणा अट्ठावीरादा दि अष्टाविंश] १ अठाईसवाँ
६६२, वजा ८६)। ' (भत १४२)।
अद्विय वि [आस्थित] स्थित, रहा हुआ, (से | अडयाल न [दे] प्रशंसा, तारोफ (पराण २)। (पउम २८, १४१) । २ न. तेरह दिनों के | १, ३५)।
अडयाल स्त्रोन [अष्टचत्वारिंशत् ] अठलगातार उपवास (णाया १,३।। अट्रिय पुं[अस्थिक १ वृक्ष-विशेष । २ न.
अडयालीस तालीस, ४८ की संख्या (जीव अट्रासट्रि स्त्री [अष्टापष्टि] संख्या-विशेष, अठ
३; सम ७०)। सय न [शत एक सौ फल-विशेष, अस्थिक वृक्ष का फल (दस ५, सठ, ६८ (पिंग)।
और अठतालीस, १४८ (कम्म २, २५)। अट्रासि । स्त्री [अष्टाशीति] संख्या-विशेष
अडवडग न [दे] स्खलना, रुक-रुक चलना, अट्ठासीइ । अठासी, ८८ (पिंगः सम ७३)। आटुल्लय पुं [अस्थि] फल की गुट्ठी (पिंड
'तुरयावि परिस्संता अडवडणं काउमारद्धा' अट्ठासीय वि [अष्टाशीत] अठासीवाँ (पउम
(सुपा ६४५)। अट्ठुत्तर वि [अष्टोत्तर] पाठ से अधिक ८८, ४४)।
अडाव ! स्त्री [अटवि, वी] भयंकर जंगल, (प्रौप)। सय न [शत] एक सौ और अट्टाह न [अष्टाह] आठ दिन (णाया १,८)।
अडवी गहरा वन (पएह १, १; महा)।
आठ (काल)। सय वि [शततम] एक अडसहि स्त्री [अष्टषष्टि] अठसठ (पि ४४२)। अट्टाहिया स्त्री [अष्टाहिका] १ आठ दिनों सौ आठवाँ (पउम १०८, ५०)।
म वि [तम] अठसठवाँ (पउम ६८,५१)। का एक उत्सव (पंचा८)। २ उत्सव (पाया
अठ। देखो अट्र = अष्टन् (पिंग; पि ४४२, अडाड पुं[दे] बलात्कार, जबरदस्ती (दे १,८)। अड १४६; भगः सम १३४).।
१, १९)। अट्ठि वि [अर्थिन प्रार्थी, गरजवाला, अभि
अड सक [अट् ] भ्रमण करना, फिरनाः | अडिल्ल पुं[अटिल] एक जाति का पक्षी लाषी (प्राचा)।
'अडति संसारे (पराह १,१)। वकृ. अडमाण | (पएण १)। अद्वि [अस्थि] १ हड्डी, हाड़; 'अयं अट्ठी' (णाया १, १४)।
डिल्ला स्त्री [अडिल्ला] छन्द-विशेष (पिंग)। (सूत्र २, १, १६)। २ फल की गुट्ठी (दस
अड ' [अवट] १ कूप, इनारा (पास)। २ | अडोलिया स्त्री [अटोलिका] १ एक राज
कूप के पास पशुओं के पानी पीने के लिए पुत्री, जो युवराज की पुत्री और गर्दभराज की अट्टि स्त्रीन [अस्थि, क] १ हड्डी, हाड़
जो गत किया जाता है वह (हे १, २७१) । बहिन थी। २ मूषिका, चूही (बृह १)। अट्ठिग (कुमाः परह १, ३)। २ जिसमें
अड देखो तड = तट (गा ११७; से १, | अडोविय वि [अटोपित] भरा हुआ (पराह अट्ठिय बीज उत्पन्न न हुए हों ऐसा अपरिपक्व फल (बृह १) । ३ पु. कापालिक, 'अट्ठी अडइ । स्त्री [अटवि, वी] भयानक जंगल, अड्ड वि [दे] जो आड़े आता हो, बीच में विजा कुच्छियभिक्खू' (बृह १; वव २)। अडई वन (सुपा १८१, नाट)।
बाधक होता हो वहा 'सो कोहाडो अड्डो "मिजा स्त्री [मिआ हड्डी के भीतर का रस अडडज्झिय न [दे] विपरीत मैथुन (दे १, आवडिओं' उप १४६ टी)। (ठा ३,४) । सरक्ख [°सरजस्क कापा- ४२)।
अड्डक्ख सक [क्षिप् ] फेंकना, गिराना। लिक (वव ७)। सेण न [षेण] १ बत्स- अडखम्म सक [दे] संभालना, रक्षण करना। अड्डक्खइ (हे ४, १४३ षड् )। गोत्र की शाखारूप एक गोत्र। २ पुं. इस गोत्र कम. 'अडखम्मिज्जति सबरियाहि वणे' (दे १, | अड्डक्खिय वि [क्षिप्त] फेंका हुआ (कुमा)। का प्रवर्तक पुरुष और उसकी सन्तान (ठा ७)।
अड्डण न [अड्डन] १ चर्म, चमड़ा । २ ढाल, अद्विय वि [अर्थिक] १ गरजू, याचक, प्रार्थी | अडखम्मिअ वि [दे] संभाला हुआ, रक्षित फलक; 'नवमुग्गवरणपडणढकियाजाणभीस(सूत्र १, २, ३) । २ अर्थ का कारण, अर्थ
एसरीरा' (सुर २, ५)। सम्बन्धी । ३ मोक्ष का हेतु, मोक्ष का कारण अडड न [अटट] 'अटटांग को चौरासी | अड्डिा वि [दे] पारोपित (वव १ टी)। भूत; 'पसन्ना लाभइस्संति विउलं अट्ठियं सुयं' लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह अड्डिया स्त्री [अड्डिका] मल्लों की क्रिया-विशेष (उत्त १)। (ठा ३, ४)।
(विसे ३३५७)।
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