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अज्मावण-अट्ठ
पाइअसहमहण्णवो अज्झावण न [अध्यापन] पाठन (सिरि २७)। अज्झोववज्ज प्रक [अध्युप+ पद] प्रत्यासक्त अट्टमट्ट वि [दे] निरर्थक, व्यर्थ, निकम्मा अज्झावणा स्त्री [अध्यापना] पढ़ाना (कम्म होना, प्राक्ति करना। अज्झोववजइ (पि (सुख ५,८)। १,६०)।
७७)। भविप्रज्झोववजिहिइ (प्रौप)। अट्टमट्ट पुं[दे] १ आलवाल, कियारी (हे २, अज्मावय वि [अध्यापक ] पढ़ानेवाला, अझोववण्णा वि [अध्युपपन्न] अयंत १७४) । २ अशुभ संकल्प-विकल्प, पाप-संबद्ध शिक्षक, गुरु (वसु ; सुर ३, २६)। अझ चवन्न प्रासक्त (विपा १,२; गाया १, अव्यवस्थित विचार अज्भावस अक [अध्या + वस् ] रहना, २; महा; पि ७७)।
'प्रणवट्ठियं मणो जस्स झाइ बहुयाई भट्टमट्टाई। वास करना । वकृ. अमावसंत (उवा)। अभोववाय पुं [अध्युपपाद] अत्यन्त आस- तं चितियं च न लहइ, संचिणुइ य पावकम्माई' अज्झास पुं[अध्यास] १ ऊपर बैठना। २ | क्ति, तल्लीनता (पराह २,५) ।
(उव)। निवास स्थान (सुपा २०)। अझावणा देखो अज्झावणा; 'पसमो पसन्नव
| अट्टय पुं [अट्टक] १ हाट, दूकान (श्रा १२)। अज्भासणा स्त्री [अध्यासना] सहन करना| यणो विहिरणा सव्वाणझावरणाकुसलो' (संबोध
२ पात्र के छिद्र को बन्द करने में उपयुक्त २४)।
द्रव्य-विशेष (बृह १)। अज्झासिअ वि [अध्यासित] १ आश्रित, | अट। सक [ अद् ] भ्रमण करना, धूमना ।
अट्टयक्कली स्त्री द] कमर पर हाथ रखकर अधिष्ठित । २ स्थापित, निवेशित (नाट)। ।
अट्ट अटइ (षड् हे १,१६५); परिपट्टइ खड़ा रहना (पान)। अज्झाय वि [अध्याहत १ उत्तेजित, 'सीय(हे ४, २३०)।
अट्टहास पुं[अट्टहास] बहुत हंसना, खिलअट्ट सक [कथ ] क्वाथ करना। अट्टइ (हे लेणं सुरहिगंधमट्टियागंघेणं हत्थी अज्झाहो
खिला कर हंसना (पि २७१)। वणं संभरेई (महा)। ४, ११७ षड्, गउड)।
अट्टालग पुन [अट्टालक] महल का उपरि
अट्टालय भाग, अटारी (सम १३७; पउम अज्झीण वि [अक्षीण] १ अक्षय, प्रखूट । २ | अट्ट अक [शुष ] सूखना, शुष्क होना ।
२,६)। न. अध्ययन (विसे ६५८)। अटुंति (से ५, ६१)। वकृ. अटुंत (से ५,
अट्टि स्त्री [आति] पीड़ा, दुःख (प्राचा)। अभुववज देखो अज्झोववज (पि ७७ ७३)।
अट्ट वि [आत] १ पीड़ित, दुःखित (विपा प्रौप)।
| अट्टिय वि [आर्तित] शोकादि से पीड़ित, अभुववण्ण देखो अभोववण्ण (विपा १, १,१) । २ ध्यान-विशेष-इष्ठ-संयोग, अनिष्ट
'अट्टा अट्टियचित्ता, जह जीवा दुक्खसागरमुर्वेति' वियोग, रोग-निवृत्ति और भविष्य के लिए
(मोप)। अज्भुववाय देखो अज्मोववाय(उप पृ२८१)। चिन्ता करना (ठा ४,१)। °ण विज्ञ] ट्टिय वि [अदित व्याकुल, व्यग्रः 'अट्टदुहअज्झसिअ वि [अध्युषित] प्राश्रित (पिंड |
ट्टियचित्ता' (प्रौप)। ४५०)।
अट्ट वि [ऋत] गत, प्राप्त (गाया १, १, भग अट्ठ पुं[अथे] संयम (सूत्र १,२,२,१६) । अज्झसिर वि [अशुषिर] छिद्र-रहित (प्रोष १२,२)।
अट्ठ पुंन [अर्थ] ५ वस्तु, पदार्थ (उवा २; ३१३)।
अट्ट पुंन [अट्ट] १ दूकान, हाट (श्रा १४)। अच्चु); 'अट्ठदंसी (सूत्र १, १४), 'अट्ठाई, अज्झेउ वि [ अध्येता पढ़नेवाला (विसे | २ महल के ऊपर का घर, अटारी (कुमा) । ३ हेऊई, पसिणाई' (भग २, १)। २ विषय, १४६५)। आकाश (भाग) २०,२)।
"इंदियट्ठा' (ठा ६)। ३ शब्द का अभिधेय, अज्भेल्ली स्त्री [दे] दोहने पर भी जिसका दोहन | अट्ट वि [दे] १ कृश, दुर्बल। २ बड़ा, महान्। वाच्य (सूत्र १,६)। ४ मतलब, तात्पर्य (विपा हो सके ऐसी गैया (दे १,७)।
३ निर्लज, बेशरम । ४ आलसी, सुस्त। ५ पुं. २,१भास १८)। ५ तत्त्व, परमार्थ, 'तुब्भेअज्भसणा स्त्री [अध्येषगा] अधिक प्रार्थना, | शुक, तोता । ६ शब्द, आवाज । ७ न.
त्थ भो भारहरा गिराणं, अटुं न याणाह पहिज विशेष याचना (राज)। ८ भूठ, असत्योक्ति (दे १, ५०)।
वेए' (उत्त १२, ११); 'इनो चुएसु दुहमट्ठअज्झोयरग) [अध्यवपूरका १ साधु के अट्ट वि [दे] गया हुआ, गत (दे १,१०)। दुग्गं' (सूम १, १०, ६)। ६ प्रयोजन, हेतु अज्भोयरय लिए अधिक रसोई करना। २ अट्टहास पुं [अट्टहास] देखो अट्टहास (हे २,२३) । ७ अभिलाष, इच्छा, 'अठ्ठो भंते ! साधु के लिए बढ़ाकर की हुई रसोई (प्रौपः |
भागेहि, हंता अट्ठो' (णाया १,१६: उत्त ३)। पव ६७)।
अट्टण न[अट्टन] १ व्यायाम, कसरत (प्रौप)। ८ उद्देश्य, लक्ष्य (सूत्र १, २, १)। ६ धन, अझोल्लिआ स्त्री [दे] वक्षः-स्थल के आभू- | २ पुं. इस नाम का एक प्रसिद्ध मल्ल (उत्त पैसा (श्रा १४ प्राचा)। १० फल, लाभ; षण में की जाती मोतियों को रचना (दे १, ४)। साला स्त्री [शाला] व्यायाम-शाला, 'अट्ठजुत्तारिण सिक्खेज्जा णिरटारिण उ वजए' कसरत-शाला (प्रौपः कप्प)।
(उत्त १)। ११ मोक्ष, मुक्ति (उत्त १)। कर अज्मोवगमिय वि [आभ्युपगमिक स्वेच्छा | अट्टण न [अटन] परिभ्रमण (धर्म ३)। पुं[°कर] । १ मंत्री२ निमित्त शास्त्र का से स्वीकृत (पएण ३४)।
अट्टणा स्त्री [आवर्तना] प्रावृत्ति (प्राकृ ३१)। विद्वान् (ठा ४, ३) । जाय वि [जातार्थ]
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