Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ प्रथम प्रज्ञापनापद ] [ 49 पूई करंज सेण्हा (सहा) तह सोसवा य असणे य / पुग्णाग णागरुक्खे सोवणि तहा असोगे य // 15 // जे यावऽण्णे तहप्पगारा। एतेसि णं मूला वि असंखेज्जजीविया, कंदा वि खंधा वि तया वि साला वि पवाला वि / पत्ता पत्तेयजीविया / पुप्फा अणेगजीविया / फला एट्ठिया / से तं एगट्ठिया / [40 प्र] एकास्थिक (प्रत्येक फल में एक बोज-गुठली वाले) वृक्ष किस प्रकार के होते हैं ? [40 उ.] एकास्थिकवृक्ष अनेक प्रकार के कहे गए हैं / वे इस प्रकार हैं [गाथार्थ--] नीम, आम, जामुन, कोशम्ब (कोशाम्र = जंगली प्राम), शाल, अंकोल्ल (अखरोट या पिश्ते का पेड़), पीलू, शेलु (लिसोड़ा), सल्लकी (हाथी को प्रिय), मोचकी, मालुक, बकुल, (मौलसरी), पलाश (खाखरा या ढाक), करंज (नक्तमाल) / / 13 / / पुत्रजीवक (पितौझिया), अरिष्ट (अरीठा), बिभीतक (बहेड़ा), हरड या जियापोता, भल्लातक (भिलावा), उम्बेभरिया, खीरणि (खिरनी), धातकी और प्रियाल / / 14 / / पूतिक (निम्ब-निम्बौली), करञ्ज, श्लक्ष्ण (या प्लक्ष) तथा शीशपा, अशन और पुन्नाग (नागकेसर), नागवृक्ष, श्रीपर्णी और अशोक; (ये एकास्थिक वृक्ष हैं / ) इसी प्रकार के अन्य जितने भी वृक्ष हों, (जो विभिन्न देशों में उत्पन्न होते हैं तथा जिनके फल में एक ही मुठली हो; उन सबको एकास्थिक ही समझना चाहिए।) // 15 // इन (एकास्थिक वृक्षों) के मूल असंख्यात जीवों वाले होते हैं, तथा कन्द भी, स्कन्ध भी, त्वचा (छाल) भी, शाखा (साल) भी और प्रवाल (कोंपल) भी (असंख्यात जीवों वाले होते हैं ), किन्तु इनके पत्ते प्रत्येक जीव (एक-एक पत्ते में एक-एक जीव) वाले होते हैं / इनके फल एकास्थिक (एक ही गुठली वाले) होते हैं / यह हुआ—उस (पूर्वोक्त) एकास्थिक वृक्ष का वर्णन / 41. से किं तं बहुबीयगा? बहुबोयगा अणेगविहा पण्णत्ता / तं जहा अत्थिय तिदु कविठे अंबाडग मालिंग बिल्ले य। प्रामलग फणस दाडिम प्रासोत्थे उबर वडे य / / 16 / / जग्गोह णंदिरुक्खे पिप्परि सयरी पिलुक्खरुक्खे य / काउंबरि कुत्थु भरि बोधव्वा देवदाली य // 17 // तिलए लउए छत्तोह सिरीसे सत्तिवण्ण दहियन्ने / लोद्ध धव चंदणऽज्जुण णीमे कुडए कयंबे य // 18 // जे यावऽण्णे तहप्पगारा। एएसि णं मूला वि असंखेज्जजीविया, कंदा वि खंधा वि तया वि साला वि पवाला वि / पत्ता पत्तेयजीविया / पुष्फा अणेगजीविया / फला बहुबोया। से तं बहुबोयगा। से तं रुक्खा / __. [४१-प्र.] और वे (पूर्वोक्त) बहुबीजक वृक्ष किस प्रकार के हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org