Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ प्रथम प्रज्ञापनापद। [47 [2] ते समासतो दुविहा पण्णत्ता / तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्जगा य / [34-2] वे (पूर्वोक्त बादर वायुकायिक) संक्षेप में दो प्रकार के कहे गए हैं / यथा---पर्याप्तक और अपर्याप्तक / रणजे ते अपज्जत्तगा ते णं असंपत्ता। [34-3] इनमें से जो अपर्याप्तक हैं. वे असम्प्राप्त (अपने योग्य पर्याप्तियों को पूर्ण नहीं किये हुए) हैं। [4] तस्थ णं जे ते पज्जत्तगा एतेसि णं वण्णादेसेणं गंधादेसेणं रसादेसेणं फासादेसेणं सहस्सग्गसो विहाणाई, संखेज्जाई जोणियमुहसयसहस्साई। पज्जत्तगणिस्साए अपज्जत्तया वक्कर्मति–जस्थ एगो तत्थ णियमा असंखेज्जा / से तं बादरवाउक्काइया। से तं वाउक्काइया / [34-4] इनमें से जो पर्याप्तक हैं, उनके वर्ण की अपेक्षा से, गन्ध की अपेक्षा से, रस की अपेक्षा से और स्पर्श की अपेक्षा से हजारों प्रकार (विधान) होते हैं / इनके संख्यात लाख योनिप्रमुख होते हैं / (सूक्ष्म और बादर वायुकायिक की मिला कर 7 लाख योनियाँ हैं / ) पर्याप्तक वायुकामिक के पाश्रय से, अपर्याप्तक उत्पन्न होते हैं। जहाँ एक (पर्याप्तक वायुकायिक) होता है वहाँ नियम से असंख्यात (अपर्याप्तक वायुकायिक) होते हैं / यह हुआ--बादर वायुकायिक (का वर्णन / ) (साथ ही), वायुकायिक जीवों की (प्ररूपणा पूर्ण हुई।) _ विवेचन-वायुकायिक जीवों को प्रज्ञापना--प्रस्तुत तीन सूत्रों (सू. 32 से 34 तक) में वायुकायिक जीवों के दो मुख्य प्रकार तथा उनके भेद-प्रभेदों की प्ररूपणा की गई है। वनस्पतिकायिकों की प्रज्ञापना--- 35. से कि तं वणस्सइकाइया? वणस्सइकाइया दुविहा पण्णत्ता / तं जहा-सुहुमवणस्सइकाइया य बादरवणस्सतिकाइया य / {35 प्र. वे (पूर्वोक्त) वनस्पतिकायिक जीव कैसे हैं ? [35 उ.] वनस्पतिकायिक दो प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार-सूक्ष्म वनस्पतिकायिक और बादर बनस्पतिकायिक। 36 से कि तं सुहमवणस्सइकाइया ? सुहमवणस्सइकाइया दुविहा पनत्ता। तं जहा-पज्जत्तसुहमवणस्सइकाइया य अपज्जत्तसुहमवणस्सइकाइया य / से तं सुहुमवणस्सइकाइया। [36 प्र.] वे सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीव किस प्रकार के हैं ? [36 उ.] सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीव दो प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार—पर्याप्तकसूक्ष्मवनस्पतिकायिक और अपर्याप्तक सूक्ष्मवनस्पतिकायिक / यह हुआ सूक्ष्म वनस्पतिकायिक (का निरूपण)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org