Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 46) [प्रज्ञापनासूत्र वायुकायिक जीवों को प्रज्ञापना 32. से किं तं वाउक्काइया ? वाउक्काइया दुविहा पण्णत्ता / तं जहा-सुहुमवाउकाइया य बादरवाउक्काइया य / [32 प्र.] वायुकायिक जीव किस प्रकार के हैं ? [33 उ.] वायुकायिक जीव दो प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं-सूक्ष्म वायुकायिक और बादर वायुकायिक / 33. से कि तं सुहुमवाउक्काइया ? सुहुमवाउक्काइया दुविहा पन्नत्ता। तं जहा–पज्जत्तगसुहुमवाउक्काइया य अपज्जत्तगसुहुमवाउक्काइया य / से तं सुहुमवाउक्काइया / [33 प्र.] वे (पूर्वोक्त) सूक्ष्म वायुकायिक कैसे हैं ? [33 उ.] सूक्ष्म वायुकायिक जीव दो प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं-पर्याप्तक सूक्ष्म वायुकायिक और अपर्याप्तक सूक्ष्म वायुकायिक / यह हुआ, वह (पूर्वोक्त) सूक्ष्म वायुकायिकों का वर्णन / 34. [1] से किं तं बादरवाउक्काइया ? बादरवाउक्काइया अणेगविहा पण्णत्ता। तं जहा-पाईणवाए पड़ीणवाए दाहिणवाए उदीणबाए उड़वाए अहोवाए तिरियवाए विदिसीवाए वाउम्भामे वाउक्कलिया वायमंडलिया उक्कलियावाए मंडलियावाए गुंजावाए झंझावाए संवट्टगवाए घणवाए तगुवाए सुद्धवाए, जे यावऽण्णे तहप्पगारे / [34-1 प्र.] वे बादर वायुकायिक किस प्रकार के हैं ? [34-1 उ.] बादर वायुकायिक अनेक प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं-पूर्वी वात (पूर्वदिशा से बहती हुई वायु), पश्चिमी वायु, दक्षिणी वायु, उत्तरी वायु, ऊर्ध्ववायु, अधोवायु, तिर्यग्वायु (तिरछी चलती हुई हवा), विदिग्वायु (विदिशा से प्राती हुई हवा), वातोभ्राम (अनियतअनवस्थित वाय), वातोत्कलिका (समद्र के समान प्रचण्ड गति से बहती हई तुफानी हवा), वातमण्डलिका (वातोली), उत्कलिकावात (प्रचुरतर उत्कलिकाओं-आंधियों से मिश्रित हवा), मण्डलिकावात (मूलत: प्रचुर मण्डलिकानों---गोल-गोल चक्करदार हवाओं से प्रारम्भ होकर उठने वाली वायु), गुजावात (गूजती हुई-सनसनाती हुई-चलने वाली हवा), झंझावात (वृष्टि के साथ चलने वाला अंधड़), संवत कवात (खण्ड-प्रलयकाल में चलने वाली वायु अथवा तिनके आदि उड़ाकर ले जाने वाली आंधी), घनवात (रत्नप्रभादि पृथ्वियों के नीचे रही हुई सघन–ठोस वायु), तनुवात (घनवात के नीचे रही हुई पतली वायु) और शुद्धवात (मशक आदि में भरी हुई या धीमी-धीमी बहने वाली हवा)। अन्य जितनी भी इस प्रकार की हवाएँ हैं, (उन्हें भी बादर वायुकायिक ही समझना चाहिए / ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org