Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________ 44 ] [प्रज्ञापनासूत्र का पानी), घृतोदक (घृतवरसमुद्र का जल), क्षोदोदक (इक्षुसमुद्र का जल) और रसोदक (पुष्करवर समुद्र का जल)। ये और तथाप्रकार के और भी (रस-स्पर्शादि के भेद से) जितने प्रकार हों, (वे सब बादर-अप्कायिक समझने चाहिए / ) [2] ते समासतो दुविहा पन्नता / तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य / [28-2] वे (प्रोस प्रादि बादर अप्कायिक) संक्षेप में दो प्रकार के कहे गए हैं / वे इस प्रकार–पर्याप्तक और अपर्याप्तक / [3] तत्थ जे जे ते अपज्जत्तगा ते णं असंपत्ता। ___ [28-3] उनमें से जो अपर्याप्तक हैं, वे असम्प्राप्त (अपनी पर्याप्तियों को पूर्ण नहीं कर पाए) हैं। [4] तत्थ णं जे ते पज्जत्तगा एतेसि णं वण्णादेसेणं गंधादेसेणं रसादेसेणं फासादेसेणं सहस्सग्गसो विहाणाई, संखेज्जाइं जोणीपमुहसयसहस्साई। पज्जत्तगणिस्साए अपज्जत्तगा वक्कमंति--जत्य एगो तत्थ णियमा असंखेज्जा / से तं बादरग्राउक्काइया। से तं प्राउक्काइया / [28-4] उनमें से जो अपर्याप्तक है, उनके वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श की अपेक्षा से हजारों (सहस्रशः) भेद (विधान) होते हैं / उनके सख्यात लाख योनिप्रमुख हैं / पर्याप्तक जीवों के आश्रय से अपर्याप्तक पाकर उत्पन्न होते हैं / जहाँ एक पर्याप्तक है, वहाँ नियम से (उसके आश्रय से) असंख्यात (अपर्याप्तक उत्पन्न होते हैं / ) यह हुमा, बादर अप्कायिकों (का वर्णन / ) (और साथ ही) अप्कायिक जीवों की (प्ररूपणा पूर्ण हुई।) विवेचन–प्रकायिक जीवों की प्रज्ञापना-प्रस्तुत तीन सूत्रों (सू. 26 से 28 तक) में अप्कायिक जीवों के दो मुख्य प्रकार तथा उनके भेद-प्रभेदों की प्ररूपणा की गई है / तेजस्कायिक जीवों की प्रज्ञापना 26. से किं तं तेउक्काइया ? तेउक्काइया दुविहा पण्णत्ता / तं जहा-सुहुमतेउक्काइया य बादरतेउक्काइया य / [29 प्र.] वे (पूर्वोक्त) तेजस्कायिक जीव किस प्रकार के हैं ? [26 उ.] तेजस्कायिक जीव दो प्रकार के कहे गए हैं / वे इस प्रकार-सूक्ष्म तेजस्कायिक और बादर तेजस्कायिक / 30, से कि तं सुहमतेउक्काइया ? सुहुमतेउक्काइया दुविहा पन्नता। तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य / से तं सुहुमतेउक्काइया। [30 प्र.] सूक्ष्म तेजस्कायिक जीव किस प्रकार के हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org