Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ प्रथम प्रज्ञापनापद] [ 43 सख्यात लाख योनियां होती हैं। और वे सूक्ष्म और बादर सबकी सब मिलकर सात लाख योनियां समझनी चाहिए।' अप्कायिक जीवों को प्रज्ञापना 26. से कि तं प्राउक्काइया ? पाउकाइया दुविहा पण्णत्ता। तं जहा-सुहुमनाउक्काइया य बादराउक्काइया य / [26 प्र.] वे (पूर्वोक्त) अप्कायिक जीव किस (कितने) प्रकार के हैं ? [26 उ.] अप्कायिक जीव दो प्रकार के कहे गए हैं / वे इस प्रकार हैं-सूक्ष्म अप्कायिक और बादर अप्कायिक / 27. से कि तं सुहमाउक्काइया? सुहुमनाउक्काइया दुविहा पन्नत्ता। तं जहा-पज्जत्तसुहुमनाउक्काइया य अपज्जत्तसुहुमप्राउक्काइया य / से तं सुहमाउक्काइया। [27 प्र.] वे (पूर्वोक्त) सूक्ष्म अप्कायिक किस प्रकार के हैं ? [27 उ.] सूक्ष्म अप्कायिक दो प्रकार के कहे गए हैं / वे इस प्रकार हैं-पर्याप्त सूक्ष्मअप्कायिक और अपर्याप्त सूक्ष्म-अप्कायिक / (इस प्रकार) यह सूक्ष्म-अप्कायिक की प्ररूपणा हुई / 28. [1] से कि तं बादरमाउक्काइया ? बादरा उक्काइया अणेगविहा पण्णत्ता / तं जहा--प्रोसा हिमए महिया करए हरतणुए सुद्धोदए सोतोदए उसिणोदए खारोदए खट्टोदए अंबिलोदए लवणोदए वारुणोदए खोरोदए घनोदए खोतोदए रसोदए, जे यावऽण्णे तहप्पगारा। [28-1 प्र.] वे (पूर्वोक्त) बादर-अप्कायिक क्या (कैसे) हैं ? 28.1 उ.] बादर-अप्कायिक अनेक प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार--प्रोस, हिम (बर्फ), महिका (गर्भमासों में होने वाली सूक्ष्म वर्षा-धुम्मस या कोहरा), प्रोले, हरतनु (भूमि को फोड़ कर अंकुरित होने वाले गेहूँ घास आदि के अग्रभाग पर जमा होने वाले जलबिन्दु), शुद्धोदक (आकाश में उत्पन्न होने वाला तथा नदी आदि का पानी), शीतोदक (नदी आदि का शीतस्पर्शपरिणत जल), उष्णोदक (कहीं झरने आदि से स्वाभाविकरूप से उष्णस्पर्शपरिणत जल), क्षारोदक (खारा पानी), खट्टोदक (कुछ खट्टा पानी), अम्लोदक (स्वाभाविकरूप से कांजी-सा खट्टा पानी), लवणोदक (लवण समुद्र का पानी), वारुणोदक (वरुणसमुद्र का या मदिरा जैसे स्वादवाला जल), क्षीरोदक (क्षीरसमुद्र 1. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक 27-28 2. प्राचारांगसूत्रनियुक्तिकार ने बादर-अकाय के-"सुद्धोदए य 1 उस्सा 2 हिमे य 3 महिया य 4 हरतणू चेव 5 / बायरआउविहाणा पंचविहा वणिया एए // 108 // " इस गाथानुसार 5 ही भेदों का निर्देश किया है। तथा उत्तराध्ययनसूत्र अ. 36, गाथा 86 में भी ये ही पांच भेद गिनाए हैं, जबकि यहाँ अनेक भेद बताए हैं / —सं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org