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विविध शरीराङ्गों पर व्रणशोथ का प्रभाव प्रारम्भ हो जाता है। इसके कारण लसवहाओं की प्राचीर लाल और स्थूल ( thickened ) हो जाती है उसके आसपास की ऊतियों में पाक प्रारम्भ हो जाता है। यह पाक प्रक्रिया लसवहा के सम्पूर्ण मार्ग से लेकर पास की लसग्रन्थियों तक पहुँच जाती है जो उसे आगे बढ़ने से रोक देती हैं पर कभी कभी तो सार्वदैहिक रोगाणुरक्तता ( septicaemia) भी होती हुई देखी जाती है। वाहिनियों में लस आतंचित हो जाता है। समीपस्थ ऊतियों में हुए व्रणशोथ को परिलसीकापाक (perilymphangitis) कहते हैं। इन पाकों में पूयन प्रायः प्रारम्भ हो जाता है जिसके कारण एक प्रसी कोशोतिपाक (spreading cellulitis) हो सकता है या लसीका प्रन्थियों में बहुत बड़ी विद्रधि बन सकती है। - इस रोग का प्रारम्भ सहसा होता है और १०२-१०३ तक ज्वर हो जाता है जो कम्प के साथ चढ़ता है, नाड़ी द्रुत हो जाती है तथा रोगी की बेचैनी बढ़ जाती है उसे वमन और शिरःशूल भी होता है। जिस स्थान से पाक होता है वहाँ से लसग्रन्थियों तक लाल रेखाएँ बन जाती हैं जो सूजी हुई तथा स्पर्शाक्षम होती हैं। इनमें अत्यन्त दाह होता है । कभी कभी कई लसवहाओं में एक साथ पाक होने से एक लाल पट्टी सी बन जाती है जिसे छूना बिच्छू के डंक के समान लगता है आगे चलकर रोगाणुरक्तता के लक्षण प्रकट होने लगते हैं। यदि रोगाक्रमण निरन्तर हुआ तो तान्तव व्रणवस्तु बन जाने के कारण लसवहाएँ अभिलुप्त (obliterated ) हो जाती हैं जिससे लसीकाजन्य स्फाय या श्लीपद, ( elephantiasis ) बन जाती है। लसवहाओं में व्रणशोथ का परिणाम प्रायः पूयोत्पत्ति या पूयन में हुआ करता है। जिसके कारण धूमिल मांसवर्गीय गण्ड ( dusky brawny swelling ) प्रकट हो जाता है जो शीघ्र ही मृदु होकर उच्चावचन ( fluctuation) करने लगता है। कभी कभी विद्रधियों की एक श्रृंखला बन जाती है जो सदैव लस के प्रवाह की दिशा में होती है । समीपस्थ एक दो लसप्रन्थियाँ भी फूट कर विद्रधि का रूप धारण कर लेती हैं। ____जीर्ण लसवहापाक फिरङ्ग अथवा यक्ष्मा के कारण होता है जिसे फिरङ्ग और यक्ष्मा के अध्यायों में देख सकते हैं।
(६) जालिका-अन्तश्छदीय संस्थान पर व्रणशोथ का परिणाम _____जालिका-अन्तश्छदीय संस्थान ( reticulo-endothelial system) एक अंग में सीमित नहीं है, वह प्लीहा, अस्थिमजा, यकृत् , लसीकाग्रन्थियाँ तथा उन सभी स्थानों में जहाँ लसाभ अति है मिलता है। हम यहाँ पर केवल लसीकाग्रन्थिपाक (lymphadenitis) का वर्णन करेंगे। ___ लसीकाग्रन्थिपाक का प्रधान कारण उपसर्ग है। यह तीव्र और जीर्ण दो प्रकार का होता है। तीव्र लसीकाग्रन्थिपाक उत्तरजात रोग है। लसीकाग्रन्थि के द्वारा अपवहित क्षेत्र में उपसर्ग होने पर वहाँ से वह ग्रन्थि तक जाकर तीव्र पाक किया करता है। त्वचा या श्लेष्मल कला में चोट लगने तथा उपसर्ग हो जाने से भी प्रायः
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