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अर्बुद प्रकरण
७६६ हुआ पाया जाता है ऐसा कुछ तज्ज्ञों का अनुमान है। यह अर्बुद बहुधा गर्भपात के पश्चात् उत्पन्न हुआ करता है । कभी-कभी प्रसव के पश्चात् भी देखने में आता है और कभी-कभी यह बीजग्रन्थि या वृषणों में भी मिलता है। इसका आयु के साथ कोई महत्त्व का सम्बन्ध स्थापित नहीं किया जाता परन्तु इतना सत्य है कि गर्भावस्थाओं का इस पर अवश्य प्रभाव पड़ता है। जो स्त्री पाँच बार गर्भ धारण कर चुकी होती है उसमें यह अठगुना उस स्त्री की अपेक्षा पाया जाता है जो एक बार ही गर्भधारण कर पाई हो । गर्भावस्था या गर्भपात होने के कुछ ही सप्ताहों पश्चात् यह अर्बुद प्रकट होने लगता है। कभी-कभी पर बहुत कम यह उत्पन्न होने में वर्षों ले लेता है । जब गर्भधारण गर्भाशयेतर स्थलों में होता है तब भी यह उत्पन्न होता है और तब उसकी प्रथम सीट (स्थात्र ) गर्भाशयनाली में हुआ करती है।
जराय्वधिच्छदार्बुद के समय बीजग्रन्थियों में एक ओर या दोनों ओर असाधारण आकारप्राप्त पीतपिण्ड ( कार्पसल्यूटियम ) देखा जाता है। इन दोनों में कोई कार्यकारण का सम्बन्ध दृष्टिगोचर नहीं होता बल्कि ऐसा लगता है कि दोनों ही गर्भाशयविकार के परिणाम मात्र हैं। गर्भता नापने का अश्चीमझण्डक परीक्षण यहाँ सदैव अस्त्यात्मक (positive) हुआ करता है।
यह अर्बुद मातृ ऊतियों में न बनकर गर्भ की ऊतियों में ही बना करता है । इसका आरम्भ गर्भाशय पिण्ड में सर्वप्रथम अपरा में एक किनारे पर होता है । इसके कारण रक्तस्रावी, मृदुल लाल रंग का एक पुंज गर्भाशयगुहा में उठने लगता है । वह गर्भाशय के पेशीयभाग पर भी अपना आक्रमण करता है। इसके कारण योनि-प्राचीर तथा गर्भाशयग्रीवा में उत्तरजात वृद्धियाँ बनती हैं। आगे चलकर गर्भाशय के बाह्य धरातल तक रोग पहुँच जाता है। ___अण्वीक्षण करने पर पता चलता है कि जराय्वधिच्छदार्बुद सगर्भता में प्राप्त अवस्था का ही एक अतिप्रवृद्ध रूप मात्र है। अपरा के श्रोणिकभाग में जरायु-अङ्कुर ( chorionic villi ) होते हैं। इन अंकुरों का मुख्यभाग पोषरह ( trophoblast ) होता है जिसका कार्य है मातृरक्तस्रोतसों ( maternal blood sinuses ) का आक्रमण करना। इन पोषरहों में दो प्रकार का अधिच्छद हुआ करता है जिसमें अन्तःस्तर स्वच्छ घनाकारी कोशाओं से बनता है जिसमें बड़ी और पाण्डुर वर्ण की न्यष्टियाँ निवास करती हैं। इन कोशाओं को लैङ्गाहैन्सीय कोशा कहा जाता है तथा बाहर की ओर कायाणुरस का एक असितवर्ण का बहुन्यष्टीय बड़ा सा पुंज होता है जिसे भक्षक कोशास्तर ( syncitial cell layer ) कहा जाता है। जराय्वधिच्छदार्बुद में मुख्यरूप से लैङ्गहैन्सीय कोशा समूह रहता है तथा कुछ भक्षक कोशापुञ्ज रक्त के सरोवरों के मध्य में स्थित होता है। साधारणतया इन दो कोशाओं में जो प्रकृत सम्बन्ध रहने चाहिए वे रहते नहीं हैं और प्रत्यक्ष में लैङ्गहैन्सीय कोशा भक्षकस्तर के ऊपर हावी हो जाते हैं । इस अर्बुद में रक्तवाहिनियों का नाम भी नहीं होता क्योंकि
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