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विकृतिविज्ञान अस्थिरुह, का स्थिरुह या अन्य इसी प्रकार के कोशाओं के प्रकार इसमें पाये जाते हैं। अधिक अनभिनित होने पर कोशाप्रकार का पता लगाना कठिन हो जाता है। उस अवस्था में तन्तुरुह (fibroblast) आदि शब्दों का प्रयोग न करके गोलकोशीय संकट (round-cell sarcoma ) तङकोशीय संकट (spindle cell sarcoma) आदि नामों से उसे पुकारते हैं । इन अर्बुदों में अनेक बहुरूपीय (polymorphic) या बहुरचना वाले होते हैं, जिनमें कई प्रकार के कोशा एक साथ मिलते हैं। जो संकट द्रतगति से बढ़ते हैं उनमें सूत्रिभाजनाङ्क बहुत अधिक मिलते हैं पर जो मन्दगति से वृद्धि करते हैं उनमें वे इतने प्रमाण में नहीं मिलते। कणीय ऊति भी जब बहुत तेजी से बढ़ती है तो उसमें भी सूत्रिभाजनाङ्क अधिक पाये जाते हैं। इन सूत्रिभाजनाङ्कों के बल पर ही कोशीय तन्वर्बुद और संकट में विभेद किया जाता है। क्योंकि तन्वर्बुद में वे नहीं पाये जाते। अत्यधिक मारात्मक प्रकार के संकटार्बुद में अतिकायकोशा या महाकोशा (giant cells ) पाये जाते हैं । यदि किसी कारण से अर्बुद उपसृष्ट हो जाता है तो ये महाकोशा अनेकों सितकोशाओं का भक्षण कर लेते हैं।
संकटार्बुद का प्रसार संकटार्बुद का विस्तार होते होते वह एक विशालकाय पुंज का रूप धारण कर लेता है तथा साथ ही यह समीपस्थ ऊतियों में भरमार भी करता है। इसकी वृद्धि की गति बहुत अधिक बदलती रहती है। यह गति तब और अधिक बढ़ जाती है जब सङ्कटार्बुद का अपूर्णतया उच्छेद किया जाता है। इसलिए या तो इसका पूर्णतः उच्छेद किया जाना चाहिए अथवा इसे नहीं छूना चाहिए। कभी कभी जब संकट अतिवेग से बढ़ने लगता है तो कभी कभी अपनी रक्तपूर्ति का अतिक्रमण कर बैठता है । ऐसी दशा में अबुंद एकदम स्तब्ध हो जाता है और कभी कभी तो प्रतीपगमन ( retrogress ) करने लग जाता है। ऐसे अवसर पर तेजातु किरणों अथवा दहातुजम्बेय के प्रयोगों से उसके आकार को और भी कम किया जा सकता है। समीप की ऊतियों में संकटार्बुद भरमार किया करता है। उसके कोशास्तरीय पृष्ठ ( fascial plane ) पर पेशी तन्तुओं के मध्य में अस्थियों की निकुल्याओं आदि में होकर बढ़ते रहते हैं । इसी प्रवृत्ति के कारण इनका विनाश अथवा उच्छेद सदैव अपूर्ण रह जाता है और इनकी पुनरुत्पत्ति बहुधा देखी जाती है। __संकटार्बुद का विस्थायन या दूरगामी प्रसार (distant spread) रक्तवाहिनियों के द्वारा होता है । इसका कारण यह है कि एक तो रक्तवाहिनियाँ बहुत अधिक होती हैं। दूसरे इनकी प्राचीरें बहुत तनु होती हैं तीसरे संकटकोशा इन प्राचीरों को सरलता से पार करने की शक्ति रखते हैं। इस कारण से रक्तवाहिनियों में ये कोशा घुस जाते हैं। सबसे पहले फुफ्फुसों में इसके द्वारा विस्थाय बनता है । वैसे फुफ्फुस में होकर संकटकोशा किसी भी अंग को पहुँच कर वहाँ विस्थायोत्पत्ति कर सकते हैं ।
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