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विकृतिविज्ञान अधिक होती है। इसमें सितकायाणु ९०% मज्जरुह ( myeloblast ) हुआ करते हैं । तीव्र स्वरूप में लालकणों की संख्या बहुत घट जाती है।
आधुनिक खोज से पता चला है कि तीव्र सितरक्तता के जो रोगी लसकोशीय सितरक्तता के माने जाते थे वे भी मज्जाजन्य सितरक्तता के ही होते हैं यद्यपि उनमें आरम्भ में लसीय सितकोशाओं का आधिक्य रहता है। __ मज्जाजन्य सितरक्तता का जीर्ण स्वरूप प्रायशः देखा जाता है और मिलता भी बहुत है। इस रोग में कणात्मक सितकोशा (granular leucocytes ) की संख्या बहुत अधिक बढ़ जाती है। कणात्मक सितकोशा अपने पूर्वज ( primitive) तथा वयस्क ( adult ) दोनों रूपों में पाये जाते हैं। इन दोनों प्रकार के सितकोशाओं में बह्वाकारी, उपसिप्रिय तथा क्षारप्रिय तीनों ही कणात्मक कोशा में से कोई भी पाये जा सकते हैं।
रोग के आरम्भ में बह्वाकारी अगणित संख्या में मिला करते हैं। परन्तु आगे चल कर मज्जाकोशा ( myelocytes ) बढ़ने लगते हैं और सकल गणन का ५० प्रतिशत इन्हीं मज्जकोशाओं का देखा जाता है। मज्जकोशा के सम्बन्ध में लिखा हैMyelocyte is a large cell about double the size of a polymorphonuclear with a lobed or indented nucleus and plenty of cytoplasm containing granules which may be fine and neutrophil or coarse and eosinophil or basophil कि मजकोशा एक बड़े आकार का कोशा होता है जो एक बह्वाकारी सितकोशा से दुगुना बड़ा होता है। उसकी न्यष्टि खण्डों में विभक्त या दन्तुर होती है जिसमें प्रभूत मात्रा में कोशारस पाया जाता है जिनमें कण होते हैं ये कण सूक्ष्म कीबरज्य (न्यूट्रोफिल) या रूक्ष उपसिरंज्य अथवा पीठरञ्ज्य होते हैं। मजकोशाओं के भी पूर्वज जिन्हें मजरुह ( myeloblast ) कहते हैं वे इस रोग के तीव्ररूप में या जब रोगी का अन्तकाल निकट आता है तब देखे जाया करते हैं।
उपरोक्त सितकायाणुओं का सकलगणन ५० सहस्र से लेकर १० लाख तक हो सकता है । मजाभ उति के सब घटक इस अप्रिय अनृजु क्रिया में भाग लेते हैं । जिसे हम मज्जोत्कर्ष ( myelosis ) कह सकते हैं। लालकणों के पूर्वज भी इस रोग में रक्त में पर्याप्त संख्या में देखे जा सकते हैं। ऋजुरुहों की संख्या इस रोग में घातक रक्तक्षय की अपेक्षा बहुत अधिक मिला करती है। कभी-कभी परमकायाणु ( macrocytes ) तथा बृहद्रक्तरुह ( megaloblasts ) पर्याप्त संख्या में दृग्गोचर होने लगते हैं । जैसा कि अभी बतलाया है इस रोग के आरम्भ में बह्वाकारी सितकोशा
और उसके पूर्वज मजकोशा बढ़े हुए मिलते हैं। आगे चल कर उपसिप्रिय तथा पीठरञ्ज्य सितकोशा और उनके पूर्वजों की संख्या बढ़ने लगती है और वे रक्तप्रवाह में प्रकट होने लगते हैं।
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