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विकृतिविज्ञान सुप्तिः पार्धातिता यस्य गलज्जलघटध्वनिः। प्रवर्तते घटीयन्त्रात्सशब्दं मन्दवेदनम् ॥ द्वात्रिंशदिवसाद्वापि पक्षान्मासाच्च वासरात् । आमस्रावः सफेनश्च स्निग्धं शुद्धं घनं स्रवेत् ।। दिवाकोपो निशाशान्तिःशुष्ककम्पाङ्गकृद्भवेत् । ग्रहणी ह्यामवातेन दुश्चिकित्स्या भिषग्वरैः।।
(बसवराजीय) संग्रहग्रहणी तथा घटीयन्त्रग्रहणी इन दोनों का जो ऊपर वर्णन किया गया है वह स्पष्ट बतलाता है कि संग्रहग्रहणी दुर्विज्ञेया, दुश्चिकित्स्या तथा चिरकालानुबन्धिनी होती है तथा घटीयन्त्राख्यग्रहणी असाध्या मानी गई है। बसवराजीयकार ने इन दोनों को मिलाकर एक कर दिया है जिसे दुश्चिकित्स्य कहा गया है। संग्रहग्रहणी के निम्न लक्षण हैं
१. आँतों में कूजने का शब्द होना, यह शब्द पर्याप्त दूर से भी सुना जा सकता है। यह हर समय भी हो सकता है पर कभी अधिक और कभी शान्त रहता है।
२. आलस्य, अवसाद और दौर्बल्य प्रमुखतया मिलते हैं।
३. इस रोग में मल का विशेष लक्षण यह होता है कि वह बहुत सी आम लिए हुए (कच्चे अन्न के साथ) पिच्छिल (चिपचिपा), द्रव, शीतल, सघन, स्निग्ध (चरबीयुक्त) सफेन और मात्रा में बहुत सा देखा जाता है । मल का यह रूप जिसमें आम का स्राव होता है जो फेनयुक्त, शुद्ध स्नेहयुक्त अथवा सघन होता है प्रतिदिन, सप्ताह या पक्ष में एक बार या ३०-३२ दिन बाद दिखलाई पड़ता है। ऐसा मल आमविकार का द्योतक है।
४. मलत्याग के समय मन्द मन्द वेदना होती है।
५. इस रोग का प्रकोप दिन में खास कर प्रातःकाल हुआ करता है तथा रात्रि. काल में शान्ति मिलती है।
६. यह रोग शुष्कता और कम्पाङ्गता उत्पन्न कर सकता है। ये दोनों लक्षण वातिक विकार के द्योतक हैं।
घटीयन्त्रग्रहणी के निम्न लक्षण कहे जाते हैं१. रोगी को सोते समय पसलियों में पीड़ा रहती है।
२. उदर से प्रति समय सुराही से पानी उँडेलते समय जैसा गट गट शब्द होता है वैसा मलत्याग के समय होता रहता है। यह शब्द मलत्याग के अतिरिक्त कुछ कुछ कालोपरान्त सुनाई पड़ सकता है जो संग्रहग्रहणी की अन्त्रकूजनावस्था का और स्पष्ट रूप है।
आधुनिक विचारकों की दृष्टि में ग्रहणी या डिसेंद्री अन्त्रकी एक व्रणशोथावस्था है जिसमें आँतों में व्रणीभवन होता है तथा अन्त्र की श्लेष्मलकला का विस्तृत क्षेत्र नष्ट-भ्रष्ट हो जाता है जिसके कारण मल के साथ रक्त और आम ( mucus ) पर्याप्त मात्रा में निकलती है। यह तीव्र और चिरकालानुबन्धी दोनों ही रूपों में पाई जा सकती है। जीर्ण रूप में यह महीनों और वर्षों रह सकती है। ग्रहणी का रोग एक महामारी के रूप में भी आ सकता है तथा स्थानिक भी पाया जा सकता है। यह रोग सदैव वाहकों द्वारा एक
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