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विकृतिविज्ञान विविध शास्त्रकारों ने अपनी-अपनी दृष्टि से लिखे हैं। मल का लक्षण सभी ने लगभग एक सा दिया है कि वह सप्रवाहिका होता हैं ग्रथित, स्तोक, पिच्छानुगत, विबद्ध, सशूल, सफेन तथा सशब्द होता है । हारीत द्वारा विनिद्रता का जो लक्षण दिया हुआ है वह अनुभव के आधार पर और उचित है। वातार्श के मस्सों में इतने शूलाक्षेपादि रहते हैं कि रोगी सो नहीं सकता तथा शिश्न वृषण बस्ति वंक्षण और हृदयदेश में ग्रहता या जकड़न पाई जाती है कटि, पृष्ठ, त्रिक, पार्श्व, कुक्षि, बस्ति में शूल, शिर में अभिताप, छींकों का आना, डकाराधिक्य आदि लक्षण भी मिलते हैं । वाग्भट का कृष्णत्वनखनयनवदनमलाश्च भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। गुल्म, उदररोग, अष्ठीला, विसूचिका, शोफ आदि रोग भी उपद्रव स्वरूप मिल जाते हैं।
पित्तार्श १. दाहश्रमौ ज्वरपिपासि शरारतो वा मूरुिचिर्नयनदन्तमुखानि यस्य । ___ पीतच्छविर्भवति वा विटभेदनं च पित्तन जातगुदजस्य च लक्षणानि ॥ ( हारीत ) २. पित्तोत्तरा नीलमुखा रक्तपीता सितप्रभाः। तन्वस्रसाविणो विस्रास्तनवो मृदवः इलथाः।। शुकजिह्वा यकृत्खण्ड जलौकोवक्त्रसन्निमः । दाहपाकज्वरस्वेदतृणमूर्छाऽरुचिमोहदाः॥ सोष्माणो द्रवनीलोष्णपीतरक्ताऽभवर्चसः। यवमध्या हरितत्पीतहारिद्रत्वङ्नखादयः॥
(माधवनिदान) ३. पित्तान्नीलाग्रणी तनूनि विसर्पाणि पीतावभासानि यकृत्प्रकाशानि शुक्रजिव्हासंस्थानानि यवमध्यानि जलौकोवक्त्रसदृशानि प्रक्लिन्नानि च। तैरुपहतः सदाहं सरुधिरमतिसार्यते, ज्वरदाहपिपासामूश्चिोपद्रवा भवन्ति पीतत्वङ्नखनयनदशनवदनमूत्रपुरीषश्च पुरुषो भवति । ( सुश्रुत )
४. तत्र यानि मृदुशिथिलसुकुमाराणि स्पर्शासहानि रक्तपीतनीलकृष्णानि स्वेदोपक्लेदबहुलानि विस्रगन्धीनि तनुपीतरक्तस्रावीणि रुधिरवहाणि दाहकण्डशूलनिस्तोदपाकवन्ति शिशिरोपशयानि सम्भिन्नः पीतहरितवासि पीतविस्रगन्धिप्रचुरविण्मूत्राणि पिपासाज्वरतमकसम्मोहभोजनद्वेषकराणि पीतनखनयनत्वमूत्रपुरीषस्य पित्तोल्बणान्यीसीति विद्यात् । (चरक )
५. सज्वरं पिटकं तृष्णा तीक्ष्णवेगं सशोणितम् । उष्णद्रवं सदाहं च पित्ताशस्सूपलक्ष्यते ।।
पाण्डुवर्णश्च भवति पीताभासञ्च लक्ष्यते ॥ ( भेल ) पित्तार्श में पित्त के अनेक लक्षण प्रकट होते हैं। हारीत ने उनका स्वरूप वर्णन करते हुए लिखा है
सदाहाश्च विचित्राश्च पीतानीलावभासिकाः । लोहितं स्रवते सोष्णं पित्तेन गुदजा मताः ।। कि पित्तज अर्श दाह करने वाले विचित्र प्रकार के पीले वा नीली आभा वाले होते हैं उनसे गर्म रक्त निकला करता है। चरक ने साथ ही उनमें मृदुता, शिथिलता, सुकुमारता, स्पर्श न सहने की प्रवृत्ति, लाल, पीले, नीले वा काले रंग के बतलाये हैं जो स्वेद तथा उपक्लेद से युक्त होते हैं। वे आमगन्धि और जिनसे पतला पीला या रक्तमिश्रित स्राव होता है। साथ में जिनके दाहकण्डूशूल, तोद और पाक जैसी वेदना होती है। पित्ताशों का स्वरूप शुक (तोते) की जिह्वा जैसा या यकृत् के टुकड़े जैसा अथवा जलौका के मुख के सदृश हुमा करता है वह यवमध्य के समान बीच में मोटा
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