Book Title: Abhinav Vikruti Vigyan
Author(s): Raghuveerprasad Trivedi
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 1171
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra विषय ग्रन्थ्यर्बुद या कृत पोषणिका - ― - -- - B ग्रन्यर्बुद ग्रसनीकर्कट पाक ग्रहणी ग्रन्थिस्थ ७९६ लैङ्गरन्स द्वीपीय ७९२ ७९६ ७९१ ७९३ ७८३ कोष्ठ ७८६ सकोष्ठ साङ्कुर ७८४ सतन्तु ७८५ - वृक्कस्थ शिरस्थ श्लेषाभ संयोजी Wid - आम ww कीय ७८८ साङ्कुरकोष्टी ७८९९ • सतन्तु ७८ - ७८८ ७९१ ७९३ ७३२ १०५ ९८१ स्तनस्थ स्थूलान्न्रस्थ परिप्रणालि - आधुनिक विचारकों - --- पृष्ठ ७९१ की दृष्टि में ९९२ - क्या है ? घटीयन्त्र - - जीवाणुजन्य तथा अमीवाजन्य में उत्पत्ति में अग्नि का महत्व ९८५ - कीटाणु (बैलिण्टी डियल ) १००० ९८६ ९९२ ९९३, ९९६ तथा अतीसार अन्तर ९९१ - दण्डाण्विक - पैत्तिक • वातिक - श्लैष्मिक सङ्ग्रह का भेद ९८५ ९९८ ९८९ ९८१ ९९० ९९२ अकारादिरोगानुक्रमसूची www.kobatirth.org विषय पृष्ठ ग्रहणी सम्प्राप्ति १०६५ ९९१ - सान्निपातिक ग्राविझार्बुद ७९९, ७५१ ग्रैव अपरदन पाक जीर्ण घनात्र अन्तिम - - और आतंच घनास्रता परिवर्तन २६७ २६३ २६७ २६७ कन्दुकीय काचर तन्वि २६७ २६३ २६३ क्यों होती है पञ्चत्वप्राप्ति २६७ लक्षण और घना स्त्रोत्कर्ष घर्मेच्छा चर्मकील प्रकार या अर्बुद सम्प्राप्ति धर्मतन्त्वर्बुद चर्मार चातुर्थिक ज्वर विपर्यय चार्कट सन्धि चिप्प सम्प्राप्ति चूर्णीयन १७२ अभिमध्य का ज्ञान के स्थान ( यचमा) विस्थायिक २६५ દરે ३७० ७७७ ७७४ १०६६ ८२८ ७७५ ३३० ३३८ ५१, ६०४ १०६६ २५५ २५५ २५६ २५६ ५१४ २५७ चूणोंरकर्ष २५७ १८१ चूषकपाद चेतातन्त्वर्बुदोस्कर्ष ८२५ चेतापाक देखो वातनाडी पाक २२६ चेतालोमभक्षिकोशो त्कर्ष १८४ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विषय छर्दि शुष्क जतुमणि जनपदोद्ध्वंस जरावधिच्छदा --- सम्प्राप्ति संचय कारण सन्त्रास सन्धि जलोदर आन् - र्बुद ७९८, ७६३ १०३० १७ जागरण जठराग्नि की यक्ष्मा में ५६१ सम्प्राप्ति १२८, १०६६३६३ - १०८ महत्ता ३०५, ९५० जठराग्नि के प्रकार पृष्ठ ३६६ १०६६ ७७६ १०३७ ९५५ ( सुश्रुतोक्त ) जाठराग्नि चतुर्विध ९५४ जाड्य ३९७ ८६८ जालककायाणु जालकान्तश्छदीयोस्कर्ष जिहाकण्टक पाक २२१ ४५ अतिरक्तीय ९४९. ९३८ जालकोत्कर्ष जालकान्तश्छदीयसंस्थान पर व्रणशोथ का परिणाम ७५ १०२ १००१, १०२ जीर्ण जीवित्तक १०३ जीर्ण बाह्य १०२ ८९१ ८७० ८७१ ८६५ ३ २०४ ३१०, ४१० ३६७९ जीवतिक्ति ख२ जीवतिक्ति ग बीदर जीवरक्त जीवाणु जीवितक विक्षत जृम्भा जृम्भात्यर्थं

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