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रोगापहरणसामर्थ्य
१०२७ प्रकट होने में कौन-कौन कारण हो सकते हैं इस पर विचार करने से पता चलता है कि रोगाणु सजीवावस्था में ऐसे अनेक पदार्थ उत्पन्न करते रहते हैं जो स्वयं उनके लिए ही हानिप्रद हो सकते हैं जिनके कारण उन रोगाणुओं की मृत्यु हो जाती है। मृत रोगाणुओं के शरीर से किण्व निकलते हैं जो उनका विलयन करते हैं। इस आत्मांशन (autolysis ) विधा के द्वारा भी अन्तर्विषों की उत्पति होती है। अन्तर्विषकारक रोगाणु से उपसृष्ट प्राणी के शरीर में उनकी मृत्यु होती रहती है जिसके कारण प्राणी के भीतर अन्तर्विष बनता और प्रचूषित होता रहता है। अन्तर्विष उत्पादक रोगाणुओं का सबसे अधिक महत्त्व का उदाहरण है विसूचिका (cholera) का वक्राणु । दूसरा है आन्त्रज्वर (typhoid) का दण्डाणु और तीसरा उदाहरण मस्तिष्कगोलाणुज मस्तिष्कच्छदपाक ( meningococcal meningitis) का दिया जा सकता है।
रोगाणुओं के अन्तर्विषों और बहिर्विषों की यदि तुलना की जावे तो ज्ञात होगा कि १-जहाँ बहिर्विष अति शीघ्र थोड़ी गर्मी या सूर्यधूप में नष्ट किए जा सकते हैं वहाँ अन्तर्विप देर तक गर्मी को सह सकते हैं ( तापसह )।२-संग्रह करने पर बहिर्विष जितने शीघ्र विघटित हो जाते हैं उतने शीघ्र अन्तर्विष विघटित नहीं होते।३-बहिर्विषों को जहाँ पावितघोल (filtrate)में ढूंढा जा सकता है वहाँ अन्तर्विष अनुपस्थित मिलते हैं। ४-बहिर्विष पर रासायनिक पदार्थों की क्रिया द्वारा उन्हें विषाभों (toxoids) में परिवर्तित कर सकते हैं परन्तु अन्तर्विषों से विषाभ बनते ही नहीं। ५-जहाँ बहिर्विष के अन्तर्वेध से प्राणी के शरीर में प्रतिविष बनने लगता है, वहाँ अन्तर्विष के अन्तर्वेध द्वारा प्रवेश करने से भी कोई प्रतिविष बनता होगा इसमें बहुत सन्देह है। इन थोड़े से भेदों से ही इन दोनों प्रकार के महाभयानक पदार्थों की विभिन्नता का पर्याप्त बोध हो चुका होगा। ___व्यंशियाँ-उन पदार्थों को व्यंशि कहा जाता है जो शरीरधातुओं (ऊतियोंtissues ) के परमाणुओं (कोशाओं-cells) का पाचन कर लेते हैं। ये बहिर्विर्षों की बहनें हैं। बहिर्विष तो कोशाओं का नाश ही करते हैं परन्तु ये आगे बढ़कर कोशाओं का नाश कर उनका पाचन भी कर लेती हैं। संरचना की दृष्टि से व्यंशियों की तुलना विकरों ( enzymes ) से की जा सकती है। व्यंशियों के नामकरण की दो पद्धतियाँ प्रचलित हैं। एक पद्धति के अनुसार जिस जीवाणु के द्वारा वह बनाई जाती हैं उसके नाम पर नाम पड़ सकता है जैसे पुंजव्यंशि (Staphylolysin )। दूसरी पद्धति उस देहधातु के नाम पर नाम डालना है जिसको वह नष्ट करके भक्षण कर लेती है जैसे शोणव्यंशि या शोणांशि ( haemolysin )। ___ अग्रापकारि (aggressins )—यह वह पदार्थ है जो केवल प्राणियों के शरीर में ही प्रकट होता है। ये रोगाणुओं के द्वारा ही उत्सृष्ट होती हैं। ये विषाक्त होती हैं। इनका परखनली में संवर्धन ( culture ) नहीं किया जा सकता। ऐसा प्रसिद्ध है कि वे भक्षिकायाणुओं की वृद्धि को रोक लेती हैं तथा उनकी क्रिया को भी मन्द कर देती हैं । हो सकता है कि उनका यह कार्य अन्तर्विषजन्य ही कोई घटना हो । यदि
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