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१०३८
विकृतिविज्ञान शीतमत्युष्णमतिरूक्षमत्यभिष्यन्दिनमतिभैरवारावमतिप्रतिहतपरस्परगतिमतिकुण्डलिनमसात्म्यगन्धबाष्पसिकतापांशुधूमोपहतमिति ।
उदकन्तु खल्वत्यर्थविकृतगन्धवर्णरसस्पर्शवत् क्लेदबहुलम् अपक्रान्तजलचरविहङ्गमुपक्षीणजलाशयमप्रीतिकरमपगतगुणं विद्यात् ।
देशं पुनः प्रकृतिविकृतवर्णगन्धर सस्पर्श क्लेदबहुलमुपसृष्टं सरीसृपव्याल-मशक-शलभ-मक्षिकामूषिकोलूक-इमाशानिकशकुनिजम्बूकादिभिः तृणोलूपोपवनवन्तं प्रतानादिबहुलं अपूर्ववद वपतित शुष्कनष्टशस्यं धूम्रपवनं च प्रध्मातपतत्रिगणम् उत्कृष्टश्वगणमद्भ्रान्तव्यथितविविधमृगपक्षिसंघम् उत्सृष्टनष्टधर्मसत्यलज्जाचारशीलगुणजनपदं शश्वत्क्षुभितोदीर्णसलिलाशयं प्रततोल्कापातनिर्घातभूमिकम्पञ्च प्रतिभयावाररूपम् रूक्षताम्रारुणसिताभ्रजालसंवृतार्कचन्द्रतारकमभीक्ष्णं सम्भ्रमोद्वेगमिव सत्रासरुदितमिव सतमस्कमिव गुह्यकाचरितम् इवाक्रन्दितशब्दबहुलञ्च अहितं विद्यात् ।
कालन्तु खलु यथर्तुलिङ्गमतिलिङ्गहीनलिङ्गञ्चाहितमेव व्यवस्येत् ।
इमानेवं दोषयुक्तान् चतुरो भावान् जनपदोद्ध्वंसकरान् वदन्ति कुशलाः। बहुत संक्षेप में परन्तु महामारी के होने के सम्पूर्ण कारणों पर जिस वैशिष्टय के साथ महर्षि ने लिखा है वह पूर्णतः माननीय है। वे कहते हैं कि हे अग्निवेश यह मैं मानता हूँ कि मनुष्यों की प्रकृति, आहार, देहबल, सात्म्य, सत्व तथा आयु भिन्न-भिन्न हैं परन्तु कुछ ऐसे भी भाव हैं जो सबके लिए समान हैं। जब इन भावों में विगुणता आती है तो एक ही समय में एक से लक्षणों वाली व्याधियाँ उत्पन्न होकर जनपदों का नाश करती हैं। जनपदों में वायु, जल, देश और काल ये समान होते हैं ।
वात में वैगुण्य आने से ऋतु विपरीत, अत्यन्त निश्चल, अत्यधिक चलायमान, अतिकर्कश, अति शीतल, अत्युष्ण, अतिरूक्ष, अत्यधिक क्लेदक, अत्यधिक भीषण शब्द करने वाली, विभिन्न दिशाओं से उठकर परस्पर टकराने वाली, बवण्उर या कुण्डली रूप में उठने वाली, असात्म्यगन्धवाली बाष्प, बालू, रेत और धुएँ से युक्त हो जाती है।
जल भी अत्यन्त विकृत गन्ध युक्त, विकृत वर्ण युक्त, विकृत रस वाला, स्पर्श में विकृत, सड़ांदवाला, जलचर और पनी जिसे छोड़ चुके हों, जलाशय का जल सूख कर थोड़ा रहा हो, पीने में अप्रिय और गुण रहित हो जाता है।
देश का वर्ण बिगड़ जाता है, गन्ध खराब आती है, रस और स्पर्श बेकार हो जाता है। सडांद उठती है, साँप-हिंस्रजन्तु-मच्छर-पतंगा-मक्खियाँ-मूषक ( चूहे ) उल्लू-गृद्ध-गीदड़ादि से युक्त हो जाता है। तृण, धास बहुत उत्पन्न हो जाती है, बेलें और प्रतान बहुत हो जाते हैं, धान्य पहले सा न होकर बीच में ही सूख जाता है, वायु धूम्र वर्ण की दिखाई देती है, पक्षी भद्दे शब्द करते हैं, कुत्ते रोते हैं, पशुपक्षी इतस्ततः दुख से भागते हैं,धर्म, सत्य, लज्जा, आचार, शील और गुणों से रहित नागरिक देखे जाते हैं, जलाशय क्षुब्ध हैं, उल्कापात, भूकम्प होते हैं। उनके भयावह शब्द सुनाई पड़ते हैं, चन्द्रमा और तारागण रूक्ष, ताम्रवर्ण, अरुण, श्वेत बादलों में छिपे से दिखते हैं, संभ्रम, त्रास, रुदन, तम, देवों द्वारा आक्रान्त, शब्दबहुल देश दिखलाई और सुनाई पड़ता है।
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