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विकृतिविज्ञान स्थानिक प्रतीकारिता के अतिरिक्त रक्त में भी प्रसमूहियाँ बनती हैं। ज्वरातिसार और विसूचिका में भी स्थानिक प्रतीकारिता उत्पन्न की जा सकती है। पुंजगोलाणुओं के मांसरससंवर्ध ( broth culture ) पावित ( filtrate )में ऐसे पदार्थ होते हैं जिन्हें त्वचा पर लगाने से पुंजगोलाणु उपसर्ग त्वचा पर नहीं हो पाता। इस पावित को प्रतिविषाणु (antivirus) कहते हैं। प्रतिविषाणु साधारण मांसरस ( broth) से अधिक प्रभावित हो सकता है इसका कोई प्रमाण नहीं ।
रोगापहरणसामर्थ्य के विविध सिद्धान्त क्षमता शब्द इम्म्यूनिटी के लिए प्रयोग किया गया है। इसके लिए दूसरा अधिक उपादेय शब्द रोगप्रतीकारिता या प्रतीकारिता है जिसे हमने रोगापहरणसामर्थ्य कहा है । प्रतीकारिता शब्द का प्रयोग इस दिशा में वैद्यकीय अभिनव ग्रन्थों में कम चलता है, क्षमता अधिक । इसी कारण हमने उसे अपनाया है परन्तु प्रतीकारिता शब्द के लेने से अंग्रेजी दृष्टि से जो इम्म्यूनिटी से अनेक शब्द बनते हैं उन्हें हिन्दी में व्यक्त करना सरल होगा अतः अब हम प्रतीकारिता को क्षमता के स्थान पर प्रयुक्त करेंगे।
प्रतीकारिता के जो वाद आज तक प्रकट हुए हैं उनमें निम्न महत्त्व के हैं१. अहर्लिक का पार्श्व शृङ्खला वाद २. अर्हीनियस तथा मदसेन का वाद ३. बोर्डे का वाद ४. साम्परीक्ष अवलोकन ५. आधुनिक वाद हम नीचे इन्हीं पाँचों का कुछ प्रकाश करेंगे ।
अहर्लिकीय पार्श्वशृङला वाद (Side chain theory of Eherlich)अहर्लिक का ऐसा विश्वास था कि कोशा के प्ररसीय व्यूहाणु में एक स्थिर न्यष्ठीला होती है तथा उसकी चयापचयिक क्रियाएँ उसके पार्श्व में सम्बद्ध विभिन्न परमाणुसमूहों के द्वारा सम्पन्न होती हैं जिन्हें 'पार्श्व शृङ्खला' नाम दिया जा सकता है। ये पाव शृङ्खलाएँ अन्य मूलों से मिलने की शक्ति रखती हैं। इस सम्मिलन क्षमता के कारण उन्हें आदाता (Receptors ) नाम दिया जा सकता है। आदाताओं के द्वारा एक कोशा का सम्बन्ध आस-पास के विभिन्न पदार्थों से हो सकता है। इन्हीं के द्वारा कोशा को खाद्य सामग्री पहुँचती है जो वहीं पर कोशा के अनुरूप परिवर्तित होकर कोशा के द्वारा ग्रहण की जाती है। कोई भी हानिप्रद पदार्थ जब तक वह कोशा के इन आदाताओं से अपना सम्बन्ध नहीं जोड़ लेता तब तक कोशा की कोई हानि नहीं हो पाती। यदि कोई विष अधिक मात्रा में एकत्र होकर कोशा के सब आदाताओं से सम्बद्ध हो जाता है और खाद्य पहुँचाने का कोई मार्ग नहीं रह जाता तब कोशा नष्ट हो जाता है तथा उसकी मृत्यु हो जाती है। पर यदि हानिप्रद पदार्थ की स्वल्प मारक
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