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अग्नि वैकारिकी
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बदल जाता है । स्वस्थावस्था में २ अम्ल और १ से ४ क्लीब स्नेह रहता है जो हटकर १ या ५ अम्ल और १ क्लीब स्नेह ऐसा हो जाता है ( थौम्सनादि ) । स्नेह के प्रचूषण के अभाव का एक प्रमाण यह है मल को दाब कर उससे स्नेहांश निकाला जावे तो वह २५ से ५०% तक निकलता है आहार के उपरान्त सदैव रक्तस्थ स्नेहार्भो ( lipoid ) की वृद्धि रोगी में नहीं देखी जाती जो स्नेहप्रचूषण की करती है । पर जब दो चार बार यकृत् का प्रचूषणी शक्ति बढ़ती हुई देखी जाती है। उतरता । इससे बार्कर तथा रहोड्स ने यह निष्कर्ष निकाला है कि स्नेह के प्रचूषण का अभाव ही स्प्रू में अतीसार या स्नेहातीसार ( steatorrhoea ) का मूलभूत कारण है।
जो स्प्रू से पीडित पक्ष में ही मतदान
अन्तः निक्षेपण कर
दिया जाता है तो यह अधिक मात्रा में नहीं
साथ ही मल भी
अधिक स्नेहपूर्ण
है
हो जाया करती क्रिया न होने के
आहतपरीक्षा से यकृत् का मन्द क्षेत्र ( area of dulness ) घटा हुआ मिलता है इसके दो कारण हैं। एक तो यह कि यकृत् में कुछ अपुष्टि हो जाने के कारण यकृत् का आकार कुछ घट जाता है दूसरे उदर में वायु के अधिक एकत्र हो जाने से उदर फूला फूला रहने लगता है जिससे मन्दता की पुष्टि नहीं हो पाती ।
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प्रत्येक स्प्रू के रोगी के साथ एनीमिया या अरक्तता का रहना एक सर्वसाधारण घटना है । प्रौढ व्यक्तियों में जब यह उपद्रव साथ साथ हो जाता है तो मृत्यु कुछ सप्ताहों में ही हो जा सकती है। ऐसे रुग्णों में रक्त में ऋजुरुह (normoblasts) बढ़ जाते हैं । मारात्मक अरक्तता ( pernicious anaemia ) में रक्त का जो स्वरूप बनता है वैसा ही स्मू में भी बन जाता है । अर्थात् शोणवर्तुल देशना ( haemoglobin index ) बहुत उच्च रहती है । घातक या मारात्मक अरक्तता से इसमें यही भेद होता है कि यहाँ अरक्तता अशोणांशिक वृहद्रक्तीय प्रकार ( nonhaemolytic megalocytic type ) की होती है । और अल्प फानडेन पढ़ा जाता है तथा रक्तकण के आकार में वृद्धि हुई रहती है । अर्निथ गणना में बहुत ही थोड़ा अन्तर आ पाता है ।
ऊपर अतीसार और ग्रहणी सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण तथ्यों का उल्लेख करके अग्निविकार से प्रत्यक्ष सम्बद्ध अब हम अर्श का विचार करेंगे ।
अर्श प्रकरण (Haemorrhoids)
अर्श का अभारतीय नाम हीमोर हौइड्स या पाइल्स अथवा बवासीर है । यह एक अवस्था है जब अत्यल्प आधारवाली अर्शकारी सिराएँ प्रफुल्लित या अपस्फीत ( varicose ) तथा परमपुष्ट ( hypertrophied ) हो जाती हैं । अन्तराश ( internal piles ), मलाशय ( reotum ) के भीतर और श्लेष्मलकला के नीचे उत्तरीय गुद सिराओं ( superiorhaemorroidal veins ) के द्वारा बनते हैं और बहिरर्श (external piles) अधरगुदसिराओं ( inferior haemorrhoi
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