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विकृतिविज्ञान ५. वीर्याविरुद्धमनीयात् ६. इष्टे देशे चेष्टसर्वोपकरणञ्चाश्नीयात् ७. नातिद्वतमश्नीयात्
८. नातिविलम्बितमश्नीयात् ९. अजल्पन्नहसन् तन्मना भुञ्जीत १०. आत्मानमभिसमीचय भुञ्जीत ।
आहार और मात्रा फिर आगे चलकर कुक्षि को ३ भागों में विभक्त करने का आदेश है जिसमें से एक भाग मूर्त आहारों के लिए दूसरा जल के लिए और तीसरा वातपित्तश्लेष्म के लिये खाली रखने के लिए इङ्गित किया गया है। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी कुक्षि का ध्यान रखकर आहारादि की मात्रा का इसी दृष्टि से नियमन और नियन्त्रण करना चाहिए। इस मात्रावत् आहार से आयुर्वेद निम्नाङ्कित लाभ देखता है
१. कुक्षेरप्रपीडनम् आहारेण । २. हृदयस्यानवरोधः। ३. पार्श्वयोरविपाटनम् ।
४. नातिगौरवं उदरस्य। ५. प्रीणन मिन्द्रियाणाम् ।
६. क्षुत्पिपासोपरमः। ७. स्थानासनशयनगमनोच्वासप्रश्वासहास्यसंकथासु सुखानुवृत्तिः । ८. सायं प्रातश्च सुखेन परिणमनम्। ९. बलवर्णोपचयकरत्वम् । हीन मात्रा में ली गई आहारराशि निम्नलिखित हानि करती है। १. बलवर्णोपचयक्षयकरम् ।
२. अतृप्तिकरम् । ३. उदावर्तकरम् । ४. अनायुष्यमवृष्यमनौजस्यम्
५. शरीरमनोबुद्धीन्द्रियोपघातकरम् । ६. सारविधमनम्।
७. अलदम्यावहम् । ८. अशीतेश्च वातजानां विकाराणामायतनम् ।
अतिमात्र आहारराशि के सम्बन्ध में चरक विमान द्वितीय अध्याय में निम्न गद्यांश मिलता है
अतिमात्रं पुनः सर्वदोषप्रकोपणमिच्छन्ति कुशलाः। यो हि मूर्तानामाहारजातानां सौहित्यं गत्वा द्रवस्तृप्तिमापद्यते। भूयस्तस्यामाशयगतावातपित्तश्लेष्माणोऽपवहारेणातिमात्रेणातिप्रपीड्यमानाः सर्वे युगपत् प्रकोपमापद्यन्ते । ते प्रकुपितास्तमेवाहारराशिम् अपरिणतमाविश्य कुक्ष्येकदेश. माश्रिताः विष्टम्भयन्तः सहसा वाप्युत्तराधराभ्यां मार्गाभ्यां प्रच्यावयन्तः पृथक् पृथगिमान् विकारान् अभिनिवर्तयन्त्यतिमात्रभोक्तुः। तत्र वातः शूलानाहाङ्गमर्दमुखशोषमूभ्रिमाग्निवपम्यसिराकुञ्चनसंस्तम्भनानि करोति, पित्तं पुनवरातिसारान्तर्दाहतृष्णामदभ्रमप्रलपनानि श्लेष्मा तु च्छरोचकाविपाकशीतज्वरालस्यगात्रगौरवाणि।
उपर्युक्त वाक्यों में विविध विकारों की उत्पत्ति के आदिकारण पर प्रकाश डाला गया है। आयुर्वेद विकारों की उत्पत्ति में प्रमुख कारण वात-पित्त-कफ दोषत्रयी की साम्यावस्था में वैषम्य मानता है। यह वैषम्य किस प्रकार आहार को यथा मात्रा सेवन न करने से होना सम्भव है इस ओर इङ्गित किया गया है। हमारा सम्पूर्ण विज्ञान दोषसाम्य और उसके परिणामस्वरूप धातुसाम्य की कल्पना से स्वास्थ्य की
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