________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
विकृतिविज्ञान हारीत ने निम्न शब्दों में इन कारणों को व्यक्त किया हैस्निग्धातिशीतगुरुशीतलपिच्छिलान्नं दुष्टाशनातिविषमाशनपानभक्ष्यम् ।
अद्यादजीर्णमथशोकविषैर्भयैर्वा शोकार्तिदुष्टपयसा तु विपर्ययेषु ॥ वाग्भट के मत से अतीसारोत्पत्ति के निम्न कारण है
...'स सुतरां जायतेऽत्यम्बुपानतः । कृषशुष्कामिषासात्म्यतिलपिष्ट विरूढकैः ॥
मद्यरूक्षातिमात्रान्नैरोंभिः स्नेहविभ्रमात् । कृमिभ्यो वेगरोधाच्च'......। अतीसार की निरुक्ति करते हुए डल्हण लिखता है
अतिरत्यर्थवचने सरतिर्गति कर्मणि, तस्मादत्यन्तसरणादतीसार इति स्मृतः ।। कि अतीसार दो शब्दों के द्वारा बनता है। अति और सरण । अति का अर्थ बहुत तथा सरण का अर्थ गति करना अर्थात् जिसमें अत्यन्त गति हो हलचल हो वह अतिसार कहलाता है। अतीसार में आँतों में बहुत हलचल मचती है। बार-बार टट्टी आती है, बार-बार मलाशय से मल का सरण होता रहता है अतः इसे अतीसार नामक संज्ञा दी गई है। अतीसार की सम्प्राप्ति के सम्बन्ध में शास्त्रकारों के निम्न वाक्य प्रमाण हैं१. संशम्यापां धातुरन्तः कुशानुं वर्ची मिश्रो मारुतेन प्रणुन्नः । वृद्धोऽतीवाधः सरत्येव यस्माद्वयाधि घोरन्तं त्वतीसारमाहुः ॥ एकैकशः सर्वशश्चापि दोषैः शोकेनान्यः षष्ठ आमेन चोक्तः । केचित् प्राहुर्नेकरूप प्रकारं नैवेत्येवं काशिराजस्त्ववोचत् ॥
दोषावस्थास्तस्य नैकप्रकाराः काले काले व्याधितस्योद्भवन्ति ।। (सुश्रुत) २. दौर्बल्यतां विषमभोजनकेन चाप्सु संभिद्यते मलमजीर्ण निन्ति चाग्निः । सञ्जायते हि मनुजस्य तदातिसारो हत्वोदराग्निं मनुजस्य तदातिसारः ।।
सजायते स तु पुनर्बहलो मलेन स्यात्पञ्चधा निगदितो मुनिभिविधिज्ञैः॥ (हारीत ) ३.""""तद्विवैः कुपितोऽनिलः । विस्रन्सयत्यधोऽब्धातुं हत्वा तेनैव चानलम् ।। व्यापद्यानुशकृत्कोष्ठं पुरीपं द्रवतां नयन् । प्रकल्पते तिसाराय ........।
(अष्टाङ्गहृदय ) ४. दोषाः सन्निचिता यस्य विदग्धाहारमूच्छिताः। अतीसाराय कल्पन्ते..."( चरक )
इन प्रमाणित वाक्यों को दृष्टिपथ में रख कर चलने से हम निम्न आयुर्वेदीय तथ्यों को प्राप्त करते हैं:१. अपाधातु से कायद्रव श्लेष्मपित्तरक्त (डल्हण ) तथा रस जल मूत्र स्वेद मेदः
कफ पित्त रक्तादि (माधवकर ) लिये जाते हैं। २. यह अपाधातु गुर्वतिस्निग्धादि कारणों से बढ़ा करती है। ३. अपाधातु शरीरस्थ जाठराग्नि को मन्द कर देती है। ४. अपाधातु स्वयं मल के साथ मिल कर उसे पतला करती है । ५. यह पतला मल वायु के द्वारा अधोभाग की ओर प्रेरित किया जाता है । ६. पतले मल का बार-बार वायु के द्वारा निकालना यही अतीसार का रूप है। ७. अतीसार एक घोर व्याधि मानी जाती है।
For Private and Personal Use Only