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अग्नि वैकारिकी
६७७
संसृष्टमेभिर्दोषैस्तु न्यस्तमप्स्ववसीदति । पुरीषं भृशदुर्गन्धि विच्छिन्नबामसंशितम् ॥ एतान्येव तु लिङ्गानि विपरीतानि यस्य तु। लाघवञ्च मनुष्यस्य तस्य पकं विनिर्दिशेत् ॥
अन्न या आम के अजीर्ण से क्षुब्ध और विमार्गगामी दोष धातुसंघ (रक्तादिक) और मलों को कोष्ठ में ले जाकर नाना वर्ण के तथा बार-बार शूल के साथ जिस अतीसार को जन्म देते हैं वही आमातीसार है। इन दोषों से व्याप्त जो मल पानी में डालने पर डूब जाय, जिसमें बहुत दुर्गन्ध हो और जो छिन्न भिन्न या पिच्छिल हो तो वह आम कहलाता है। इनसे विपरीत लक्षण वाला लाघव मल वाला अतीसार पक्कातीसार माना जावेगा पर कफात्पक्कोऽपि मजति कहकर अष्टाङ्गहृदयकार ने जल में मल के दुषने का कारण कफ को भी बतलाया है। ____ सानिपातिक अतीसार के वर्णन के साथ ही आमातीसार और पक्कातीसार का भी कई शास्त्रकार वर्णन कर देते हैं। दुर्गन्धमप्स्वपि निमग्नममेध्यमाम् कहकर ऐसा मल जो दुर्गन्धित हो, पानी में डालने से डूब जावे और देखने में खराब लगे वह आमातीसार है और इसके विपरीत लक्षणों वाला पक्कातीसार हो जाता है।
माधवकर ने इन्हीं तथ्यों को सामने रखकर सुश्रुत का निम्न उद्धरण उपस्थित किया है:
संसृष्टमेभिर्दो पैस्तु न्यस्तमप्स्ववसीदति । पुरीष भृशदुर्गन्धि पिच्छिलं चामसंज्ञितम् ।। एतान्येव तु लिङ्गानि विपरीतानि यस्य वै । लाघवं च विशेषेण तस्य पक्कं विनिर्दिशेत् ॥
__ असाध्य लक्षण सान्निपातिक अतीसार सदैव कष्टसाध्य हुआ करता है पर बहुधा वह असाध्य भी हो जा सकता है। उस अवस्था में इसके जो जो लक्षण सम्भव हैं उनका संग्रह सुश्रुत ने निम्न रूपों में कर दिया है:
पक्कजाम्बवसङ्काशं यकृत्खण्डनिभं तनु । घृततैलबसामजावेशवारपयोदधि । मांसधावनतोयाभं कृष्णं नीलारुणप्रभम् । मेचकं स्निग्धकपूरं चन्द्रकोपगतं धनम् ।। कुणपं मस्तुलुङ्गाभं सुगन्धि कुथितं बहु । तृष्णादाहतमःश्वासहिक्कापाङस्थिशूलिनम् ।। संमूर्छारतिसंमोहयुक्तपक्कवलीगुदम् । प्रलापयुक्तं च भिषग्वर्जयेदतिसारिणम् ।।
असंवृतगुदं क्षीणं दूराध्मातमुपद्रुतम्। गुदे पक्कं गतोष्माणमतिसारकिणं त्यजेत् ॥ और भी
श्वासशूलपिपासात क्षीणं ज्वरनिपीडितम् । विशेषेण नरं वृद्धमतीसारो विनाशयेत् ।। अतीसार के उपद्रवों की दृष्टि से उसकी असाध्यता को व्यक्त करते हुए लिखा गया
शोथं शूलं ज्वरं तृष्णां कासं श्वासमरोचकम् । छर्दि मूर्छा च हिक्काञ्च दृष्ट्वातीसारिणं त्यजेत् ॥ उग्रादित्य ने अतीसार की असाध्यता पर निम्न वचन कहे हैं:
१. शोकादतिप्रबलशोणितमिश्रमुष्णमाध्मानशूलसहितं मलमुत्सृजन्तम् ।
तृष्णाद्युपद्रवसमेतमरोचकात कुक्ष्यामयः क्षपयति क्षपितस्वरं वा ॥ २. बालातिवृद्धकृशदुर्बलशोषिणां च कृच्छ्रातिसार इति तं परिवर्जयेत् । सर्पिप्लीहामधुवसायकृतासमानं तैलाम्बुदुग्धदधितक्रसमं सवन्तम् ।।
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