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अग्नि वैकारिकी ९. रोगी की गुदा में शूल होता है । १०. उसे वातिक कोप के अन्य लक्षण जैसे शोष, श्वास या कास भी मिलते हैं।
पैत्तिक ग्रहणी इसके निम्नलिखित लक्षण विविध शास्त्रकारों ने स्वीकार किये हैं : १. कट्वजीर्णविदाह्यम्लक्षाराद्यैः पित्तमुल्बणम् । अग्निमाप्लावयद्धन्ति जलं तप्तमिवानलम् । सोऽजीर्ण नीलपीताभं पीताभः सार्यते द्रवम् । पूत्यम्लोदारहृत्कण्ठदाहारुचितृडर्दितः ॥
(चरक) २. पित्तात् सदाहैः। ( सुश्रुत ) ३. पित्तेन नीलपीताभं पीताभः सृजति द्रवम् । पूत्यम्लोद्गारहृत्कण्ठदाहारुचितृडदितः।। ।
( वाग्भट ) ४. पूत्यम्लोद्गारहृत्कण्ठदाहास्तृट्छ्वासरुक्क्लमाः । अजीर्णं पीतनीलाभं पित्ताद्वै स्रवति द्रवम् ॥
(सिद्धविद्याभूः) ५. विदाहि शीर्ण सरुजं तृपात्तं दुर्गन्धपीतारुणनीलकालम् ।
संसृज्यते यस्य मलो विमिश्रः पित्तोद्भवा सा ग्रहणीति संज्ञा ॥ ( हारीत ) ६. पीतं भृशोष्णं बहुगन्धि पित्तात् । (वैद्यविनोद ) ___कटु, अजीर्णकारक, विदाहोत्पत्तिकारक जैसे आधे पके भुने चावलादि, अम्ल द्रव्य, क्षार जैसे यवक्षार, लवण, तीक्ष्ण पदार्थों के प्रयोग करने से पित्त प्रकुपित हो जाता है जो स्वयं तरल होने के कारण जाठराग्नि को आप्लावित करके उसी प्रकार नष्ट कर देता है जिस प्रकार तप्तजल आँच के अँगारे को आप्लावित करके बुझा देता है, न कि तप्त जल की गर्मी से अंगारे में गर्मी आती है।
इस प्रकार पित्त के कोप से युक्त जाठराग्नि जिसकी बुझी हुई पड़ी है ऐसे रोगी को पैत्तिक ग्रहणी घेर लेती है। इस पैत्तिक ग्रहणी के निम्न लक्षण देखने में आते हैं
१. पैत्तिक ग्रहणी से पीडित रोगी का वर्ण पीला पड़ जाता है। २. वह अजीर्ण अर्थात् कच्चा मल निकालता है।
३. वहीमल पीला, नीला, अरुण अथवा नील काला (बैंगनी) इन चार वर्षों में से किसी भी प्रकार का हो सकता है । वैसे तो पीताभावाला मल ही आता है पर पीत नीलाभ दोनों प्रकार का पृथक पृथक् या मिलकर भी आ सकता है। गुलाबी बैंगनी या रंग लिए हुए भी मल आ सकता है, चारों वर्ण विमिश्रित भी हो सकते हैं।
४. मल पतला (द्रवरूप) होता है। ५. पैत्तिक ग्रहणी से पीडित रोगी को दुर्गन्धियुक्त खट्टी डकारें आती हैं। ६. उसके हृदयप्रदेश और कण्ठ में दाह रहा करता है। ७. उसे भोजन में अरुचि पाई जाती है। ८. उसे प्यास बहुत सताती है। ९. कभी कभी उसे श्वास की गति भी बढ़ी हुई पाई जाती है। १०. रोगी को एक प्रकार का आलस्य या थकावट जिसे क्लम कहते हैं घेरे
रह सकता है। ११. रोगी का मल अत्यन्त उष्ण होता है !
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