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बुफलसदृशं सन्निपातः
( हारीत)
विकृतिविज्ञान कृष्णं श्वेतं वा वराहमेदः सदृशमनुबद्धवेदनमवेदनं वा समासव्यत्यासादुपवेश्यते शकृद्ग्रथितमाम सकृदपि वा पक्कमनतिक्षीणमांसशोणितबलो मन्दाग्निर्विहतमुखरसश्च, तादृशमातुरं कृच्छ्रसाध्यं विद्यात् । (चरक)
२. तन्द्रायुक्तो मोहसादास्यशोषी वर्चः कुर्यान्नैकवर्ण तृषार्तः । ___ सर्वोद्भूतं सर्वलिङ्गोपपत्तिः कृच्छ्रश्चायं बालवृद्धेष्वसाध्यः॥ ( सुश्रुत ) ३. सर्वात्मा सर्वलक्षणः ( अष्टांगहृदय) ४. वराहस्नेहमांसाम्बुसदृशं सर्वरूपिणम् । कृच्छसाध्यमतीसारं विद्याद्दोषत्रयोद्भवम् ॥
(माधवकर) ५. वराहवासासदृशं तिलाभं मांसधावनाभातम् पक्वजम्बूफलसदृशं सन्निपातः प्रवहताम् ।। ६. सर्वात्मकं सकलदोषविशेषयुक्तं विच्छिन्नमच्छमतिसिक्थमसिक्थकं वा । ( उग्रादित्याचार्य) ७. वाराहमांसाम्बु समं त्रिदोषाद्विधादतीसारमनेकरूपम् ।
तन्द्रातृषादाहमदास्य शोषभ्रमान्वितो मोहसमन्वितो वा ।। (वैद्यविनोद ) ८. सर्वैस्तु सर्वरुक- (अञ्जननिदान)
सानिपातिक अतिसार के सम्बन्ध में जिसने भी अपनी लेखनी चलाई है उनमें चरक ने जितनी योग्यतापूर्वक विषय का प्रतिपादन किया है वैसा अन्यत्र नहीं दिखलाई देता । सुश्रुत, वाग्भट, अञ्जननिदानकारों ने सर्वलक्षणयुक्त ऐसा मानकर छोड़ दिया है । उपर्युक्त साहित्य को पढ़कर हम निम्न परिणाम पर पहुँचते हैं :
१. सान्निपातिक अतिसार के मल के सम्बन्ध में कुछ भी स्पष्ट नहीं किया जा सकता। उसकी उपमा सुअर की चर्बी, मांसजल, तिल या पकी जामुन के साथ दी जा सकती है। पीला, हरा, नीला, मजीठिया, लाल, काला, सफेद सभी प्रकार के वर्ण मिल सकते हैं । सन्निपातातीसार का मल इतने वर्षों से युक्त हो यह आवश्यक नहीं । विविध रोगियों का परीक्षण करने पर किसी में लाल रंग, किसी में मजीठिया और किसी में मांस के धोवन के समान या शूकर वसा के सदृश मिला करता है । कभी कभी एक ही रोगी में एक बार के मल में ही कई वर्ण मिल सकते हैं। मल बंधा हुआ प्रायः होता है । कभी कभी वह विच्छिन्न भी हो सकता है। कभी उसमें सिक्थ (कण) मिलते हैं, कभी नहीं भी मिलते, कभी वह बिल्कुल स्वच्छ भी हो सकता है।
२. मल बंधा हुआ या गांठदार हो सकता है। ३. मल करते समय किसी को वेदना होती है किसी को नहीं भी होती। ४. रोगी को तन्द्रा आ जाती है। ५. उसे प्यास बहुत लगती है। ६. उसका मुख सूख जाता है। ७. वह मोह से ग्रसित रहता है। ८. दाह भी पाया जा सकता है। ९. मद या भ्रम भी रह सकता है।
(५) आमातीसार तथा पक्कातीसार अतीसार के २ रूप और भी हैं जिनमें साम और निराम अतीसार आते हैं। सुश्रुत ने इस सम्बन्ध में निम्नलिखित साहित्य प्रदान किया है:
अन्नाजीर्णात् प्रद्रुताः क्षोभयन्तः कोष्ठ दोषा धातुसंधान्यलांश्च । नानावणे नैकशः सारयन्ति शूलोपेतं षष्ठमेनं वदन्ति ॥
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