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अनि वैकारिकी
पित्तातिसारी यस्त्वेतां क्रियां मुक्त्वा निषेवते । पित्तलान्यन्नपानानि तस्य पित्तं महाबलम् ॥ रक्तातिसारं कुरुते रक्तमाशु प्रदूषयत् । तृष्णा शूलं विदाहं च गुदपाकं च दारुणम् ॥ ( चरकसंहिता चि. स्था. अ. १९ ) जो पित्तातिसार से पीडित व्यक्ति योग्य उपचार को छोड़ कर पित्तल अन्न पानादिक सेवन करता है उसका महाबलवान् हुआ पित्त रक्त को तुरत दूषित करके रक्तातीसारको उत्पन्न कर देता है । इसमें तृष्णा, शूल, दाह और दारुण गुदपाक के उपद्रव देखे जाते हैं ।
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माधवकर ने भी इसी का समर्थन निम्न सूत्र द्वारा किया है
पित्तकृन्ति यदाऽत्यर्थं द्रव्याण्यश्नाति पैत्तिके । तदोपजायतेऽभीक्ष्णं रक्तातीसार उल्बणः ॥ प्रचुर मात्रा में पित्तकारक पदार्थों का निरन्तर सेवन ही रक्तातीसारकारक है । अतः रक्तातीसार को कोई अलग अतीसार नहीं मानना चाहिए वह तो पित्तातीसार का ही एक रूप है |
विभिन्न अतीसारों की सम्प्राप्तियों पर संक्षिप्त विचार
चरक ने वातिक, पैत्तिक और श्लैष्मिक तीनों प्रकार के अतीसारों की उत्पत्ति में विविध वातकारक, पित्तकारक अथवा श्लेष्मावर्द्धक पदार्थों का अत्यधिक सेवन महत्त्व - पूर्ण माना है । वह कहता है कि जब व्यक्ति वातातपव्यायामादि का अधिक सेवन करता है, रूक्षाल्पप्रमिताशी होकर वातकारक तीक्ष्ण मद्य व्यवायादि का नित्य प्रयोग करता है और वेगों को रोकता है तब इन सभी वातकारक कारणों से वायु कुपित होकर निम्न कार्य करता है
१. द्रवत्वादूष्माणमुपह्त्य—
तरल होने से पाचकाग्नि का नाश करके ।
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9. सर्वप्रथम वायु रोगी की पाचकाग्नि को नष्ट कर देता है ।
२. मूत्र और स्वेद को मलाशय तक लाकर मल को पतला कर देता है । मूत्र और स्वेद के द्वारा जो जलीयांश शरीर से बाहर जाता था वह क्रिया बन्द या कम हो जाती है तथा सम्पूर्ण जल मल को पतला करने में लग जाता है ।
३. मलके पतला होने और पाचकाग्नि की क्रिया शान्त होने से वातिक अतीसारोत्पत्ति हो जाती है ।
पैत्तिक अतीसार की उत्पत्ति में अम्ल लवण - कटुक- क्षारीय, उष्ण, तीक्ष्ण पदार्थों का अति मात्रा में सेवन, अग्नि-सूर्यसन्ताप या लू का शरीर पर बहुत अधिक प्रभाव होना; अधिक क्रोध, ईर्ष्या आदि करने से पित्त प्रकुपित हो जाता है । पित्त को तरल पदार्थ माना गया है अतः -
३. अतीसाराय कल्पते
पैत्तिक अतीसारोत्पत्ति करता है ।
२. औष्ण्यात्, द्रवत्वात् सरत्वाच्च पुरीषाशयमाश्रित्य भित्त्वा पुरीषम् - पित्त अपनी उष्णता, तरलता तथा सरता के गुणों से युक्त होने से मलाशय में जाकर मल का भेदन करके - पतला बनाकर ।
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